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कुमारस्वामी ने एक्टिंग भी सीख ली!

Tez Samachar by Tez Samachar
August 11, 2018
in Featured, विविधा
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कुमारस्वामी ने एक्टिंग भी सीख ली!

कर्नाटक के मुख्यमंत्री एच.डी. कुमारस्वामी ने अपने सियासी-रुलाई प्रसंग पर सफाई दी है। उनके स्पष्टीकरण से कांग्रेस ने अवश्य राहत महसूस की होगी लेकिन वह यह दावा करने की स्थिति में नहीं है कि कुमारस्वामी की बातों पर कितना भरोसा किया जा सकता है। हां, एक पखवाड़े के घटनाक्रम इस बात का प्रमाण अवश्य दे रहे हैं कि फिल्में बनाते और फिल्मों का वितरण करते-करते कुमारस्वामी ने अभिनय सीख लिया हैं। कुमारस्वामी के उस विलाप और उसके बाद दी जा रही सफाई से यह सवाल कम से कम कर्नाटकवासियों को जरूर कुरेद रहा होगा कि ऐसे बेहतरीन अभिनय की बारीकियां कुमारस्वामी ने किससे और कहां सीखीं? क्या अभिनय कला का यह ज्ञान उन्हें दूसरी पत्नी, कन्नड़ अभिनेत्री राधिका के सानिध्य में मिला या इसे कुदरत का करिश्मा मानें? हाल ही में कुमारस्वामी ने नईदिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से मुलाकात की थी। राहुल के साथ उनकी तस्वीरें अखबारों में छपीं हैं। हफ्ताभर पहले खुले आम आंसू बहाते देख जा चुके मुख्यमंत्री ने सफाई दी कि पिछले दिनों उन्होंंने गठबंधन सरकार को लेकर जो टिप्पणी की थी उसमें लक्ष्य कांग्रेस नहीं थी। कुमारस्वामी का कहना है कि जनता दल(सेकुलर) के कार्यक्रम में वह भाावुक हो गए थे। इसकी वजह उनका एक भावुक इंसान होना है लेकिन अपने भाषण में उन्होंने कांग्रेस या कांग्रेस के किसी नेता का नाम तक नहीं लिया। दक्षिण भारत में व्यापक आधार रखने वाले एक अंग्रेजी दैनिक का दिए इंटरव्यू में कुमारस्वामी ने आरोप लगाया कि मीडिया ने उनकी बात को तोड़-मरोड़ का प्रस्तुत किया है। बकौल कुमारस्वामी ऐसी रिपोर्टिंग से संदेश यह गया कि वह कांग्रेस के साथ गठबंधन सरकार बना कर परेशान हैं। कुमारस्वामी को यह भी शिकायत है कि मीडिया और समाज का एक विशेष वर्ग उनकी नीतियों का विरोध कर आम लोगों को गुमराह करने की कोशिश कर रहा है। वैसे शिकायती लहजे में आरोप लगाते समय उन्होंने एक सावधानी बरती। कुमारस्वामी ने स्पष्ट कर दिया कि उनका इशारा भारतीय जनता पार्टी की ओर नहीं हैं।

15 जुलाई को बेंगलुरू में आयोजित जदसे के कार्यक्र म में मुख्यमंत्री कुमारस्वामी जिस तरह फफके और आंसुओं की झड़ी लगा दी, उससे सार यही निकाला जा रहा था कि गठबंधन सरकार चलाने में उन्हें परेशानी आ रही है। राजनीति रंगरूट तक जानते हैं कि किसी गठबंधन सरकार के अगुआ की भावभंगिमा और संवाद अदायगी से किस प्रकार के संदेश आते हैं। यदि वह खुले आम कहे कि उसे सरकार चलाने में परेशानी आ रही है तो सीधा मतलब होगा कि मुख्यमंत्री को सहयोगी राजनीतिक दल से या तो आपेक्षित सहयोग नहीं मिल रहा या फिर सहयोगी दल उसके कामकाज में अड़ंगा लगाता है। संभव है कि सहयोगी दल मुख्यमंत्री से ऐसी मांग कर रहा हो जिसे स्वीकार करना उनकी प्रतिष्ठा, मान और राजनीति के हित में न हो। कुमारस्वामी अपने कार्यकर्ताओं के सामने रोये हैं। इस रुलाई के अपने मायने हैं। क्या सिर्फ दो माह के अंदर कुमारस्वामी के मस्तिष्क में कोई और खिचड़ी पकनी शुरू हो गई है? यहां जदसे कार्यक्रम में कुमारस्वामी द्वारा व्यक्त किए गए शब्दों को जस का तस प्रस्तुत करना सही होगा। कुमारस्वामी ने मंच से रोते हुए कहा था, दुनिया को बचाने के लिए जिस तरह भगवान शिव ने जहर पीया था, उसी प्रकार वह गठबंधन सरकार का जहर पी रहे हैं। मुख्यमंत्री बन कर मैं खुश नहीं हॅंू। मैं गठबंधन सरकार का दर्द जानता हॅूं । मैंने विषकण्ठ बन कर इस सरकार का सारा दर्द निगल लिया है।

भाजपा को सत्ता से दूर रखने के लिए कांग्रेस ने तीसरे नंबर पर रही जदसे के नेता एच.डी.कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री पद देकर गठबंधन सरकार बना ली थी। कुमारस्वामी 23 मई को कर्नाटक के मुख्यमंत्री बने थे लेकिन शपथ समारोह के दो दिन बाद से ही राजनीति के पंडित भविष्यवाणी कर रहे हैं कि यह दोस्ती लंबी नहीं चल पाएगी। इस तरह को बातों को बल कुमारस्वामी के पिता और पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी.देवेगौड़ा के एक बयान से मिल गया। देवेगौड़ा का कहा है कि कुमारस्वामी के शपथ समारोह में छह विपक्षी दलों के नेताओं की मौजूदगी का यह मतलब नहीं है कि 2019 का लोकसभा चुनाव विपक्ष दल सभी राज्यों में मिलकर लड़ेंगे। इस टिप्पणी ने कांग्रेस और जदसे की दोस्ती के खोखलेपर का प्रमाण दे दिया। दोनों पार्टियों के बीच भावनात्मक जुड़ाव जैसी कोई बात ही नहीं है। पहले पिताश्री ने जदसे की सोच सामने रखी और उसके बाद पुत्र अपने कार्यकर्ताओं के समक्ष रो पड़े। कांग्रेस और जदसे के बेमेल गठबंधन की नींव इतनी जल्दी चटक गई। यह रिश्ता कितने दिन खिंच पाएगा? मिलकर चुनाव लडऩे की बात छोडि़ए, लोकसभा चुनावों तक भी दोनों पार्टियां साथ चल लें तो भी बड़ी बात होगी। कर्नाटक कांग्रेस में ही ऐसे अनेक नेता हैं जिनकी राय में कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री बनवाना एक अदूरदर्शिता पूर्ण कदम है। इससे फिलहाल पार्टी राज्य में भाजपा को सत्ता दूर रखने में भले ही सफल हो गई हो लेकिन उसकी छवि खराब हुई है। गठबंधन सरकार के सत्तारूढ़ होने के तुरंत बाद शुरू हो गई खींचतान से कांग्रेस की इमेज मटियामेट हो रही है। उनका मानना है कि देवेगौड़ा के बयान और कुमारस्वामी की सियासी-रुलाई से कांगे्रस के विरूद्ध एक नकारात्मक संदेश गया है। कर्नाटक कांग्रेस के एक असंतुष्ट नेता का कहना है कि हमारे जो नेता भाजपा के येदियुरप्पा के विरूद्ध भ्रष्टाचार के आरोपों की बात करते रहे हैं। उन्होंने कुमारस्वामी से हाथ मिलाने से पहले उनकी फाइल ही पलट ली होती। उन पर एक माइनिंग घोटाले को लेकर आरोप लगाया जा चुका है। 2006 में मुख्यमंत्री रहते एक प्राइवेट सोसायटी को 80 एकड़ जमीन आवंटित करते हुए पद के दुरुपयोग का आरोप भी कुमारस्वामी पर लगा है।

सियासी-रुलाई पर कुमारस्वामी की सफाई किसी को संतुष्ट नहीं कर सकी। कुमारस्वामी ने एक तीर से दो लक्ष्य भेदने की कोशिश की है। वह कर्नाटक के मतदाताओं के समक्ष बेचारा बनने की कोशिश कर रहे हैं वहीं उन्होंने कांग्रेस को अप्रत्यक्ष चेतावनी दे दी। खास बात यह है कि कांग्रेस नेता और उपमुख्यमंत्री जी. परमेश्वर ने कुमारस्वामी के बयान को महत्व नहीं दिया। परमेश्वर ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा, वह(कुमारस्वामी) ऐसा कैसे कह सकते हैं। मुख्यमंत्री को खुश रहना चाहिए। वह खुश रहेंगे तब ही तो हम सभी खुश रहेंगे। केन्द्रीय मंत्री अरूण जेटली की प्रतिक्रिया गजब की रही। जेटली ने कहा कि कुमारस्वामी के आंसू एक सबक देते हैं। उनकी डायलाग डिलेवरी ने हिन्दी फिल्मों के टे्रजडी ऐरा की याद दिला दी। कर्नाटक के घटनाक्रम बताते हैं कि सिद्धांतविहीन और अवसरवादी गठबंधन का परिणाम क्या होता है। जेटली की प्रतिक्रिया का सबसे महत्वपूर्ण अंश वह है जिसमें उन्होंंने चौधरी चरणसिंह और चंद्रशेखर की अगुआई में बनी सरकारों का जिक्र किया है। जेटली ने सच कहा है कि भारत जैसे विशाल देश में गठबंधन सरकार संभव है किन्तु ऐसे गठबंधनों का केन्द्र मजबूत और स्थिर होना चाहिए। जेटली की बात तर्कपूर्ण और वास्तविकता से भरी है। कोई भी गठबंधन उसी स्थिति में एक स्थिर और ईमानदार सरकार दे सकता है जब उसका आधार सैद्धांतिक रूप से परिभाषित हो। विरोधाभाषी मिजाजों से भरे गठबंधन जल्द ही चरमरा जाते हैं। हमारे लोकतंत्र का इतिहास में ऐसे उदाहरणों से भरा पड़ा हैं। 12 मई को कर्नाटक विधानसभा के चुनावों के लिए मतदान से पूर्व तक जदसे और कांग्रेस एक-दूसरे के खिलाफ काफी तल्ख प्रचार कर रहे थे। मतगणना के बाद भाजपा सबसे बड़ा दल बन कर उभरी। कांग्रेस बहुमत से काफी दूर थी। जदसे तीसरे नंबर की पार्टी थी। सत्ता से बाहर होते देख कांगे्रस ने जदसे से हाथ मिला लिया। कुमारस्वामी की भाग्य से छींका उसी तरह टूटा जैसा देवेगौड़ा साथ हुआ था। घर बैठे मुख्यमंत्री पद मिलता देख कुमारस्वामी खुद को रोक नहीं पाए। यह एक सिद्धांतविहीन और अवसरवादी गठबंधन है जिसमें दोनों भागीदारों के मिजाज लंबी पारी के लिए मेल नहीं खाते। कुमारस्वामी टाइट रोप वाकिंग की रिहर्सल कर रहे हैं। वह कई बार रो सकते हैं और कई बार रोने की एक्टिंग करेंगे। आशंका बीच में टपक पडऩे की भी हैै। देखें वह कितने सफल हो पाते हैं?

अनिल बिहारी श्रीवास्तव
एल वी – 08, इंडस गार्डन्स,
गुलमोहर के पास, बाबडिय़ा कलां,
भोपाल – 462039
मोबाइल: 9425097084 फोन : 0755 2422740

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