नई दिल्ली ( राजेश बादल ) – शायद उन्नीस सौ अठहत्तर का साल था | मैंने बुंदेलखंड में ख़तरनाक़ बन चुकी डाकू समस्या पर लंबा आलेख तैयार किया | इसमें कुछ फरार डाकुओं के साक्षात्कार भी थे | आलेख दैनिक भास्कर को भेजा | छप गया | लेकिन मेरा नाम राजेश की जगह प्रकाश बादल छपा था | फुल पेज का आलेख -वह भी गलत नाम से | मेरे दुःख और ग़ुस्से का ठिकाना न था | दो महीने तक भोपाल आने जाने का ख़र्च जमा किया | क़रीब सौ रूपए इकट्ठे हो गए तो राजनगर -भोपाल बस में बैठ गया | सुबह पहुंचा | सीधे भास्कर दफ्तर जा पहुंचा | पुराने भोपाल में | इतनी सुबह अखबार के दफ़्तर में भला कौन मिलता ? बैठा रहा | आठ बजे के आसपास रमेश जी आए | वो शायद वहीं रहते थे | सबसे पहले पहुँचते होंगे शायद | मैं मिला और अपना ग़ुस्सा उतार दिया | रमेश जी ने ज़ोरदार ठहाका लगाया | मेरे घाव पर जैसे नमक छिड़क दिया | कुछ बोलने ही वाला था कि रमेश जी ने कहा ,भाई जवान हो | पत्रकारिता में कलम से ग़ुस्सा निकालना सीखो | ज़ुबान से नहीं | ग़लतियाँ आदमी से ही होतीं हैं | मैं उनका मुँह ताक रहा था | रमेश जी के एक वाक्य ने जैसे मन्त्र दे दिया | उनतालीस साल बाद रमेश जी की यह बात मेरे दिमाग़ में गहरे बैठी हुई है |
इस घटना के पांच -छह साल बाद उनसे फिर इंदौर में मुलाक़ात हुई | फिर ठहाका लगाया | बोले -कहिए प्रकाश बादल जी क्या हाल हैं ? तब मैं नई दुनिया में सह संपादक हो गया था | इंदौर से भास्कर शुरू होने जा रहा था | रमेश जी चाहते थे कि मैं भास्कर ज्वाइन करूँ | लेकिन तब तक राजेंद्र माथुर जी नवभारत टाइम्स के प्रधान संपादक हो गए थे और उसके कुछ क्षेत्रीय संस्करण निकालना चाहते थे | मुझे माथुरजी ने कहा था कि मैं अपनी नई भूमिका के लिए तैयार रहूँ | मैंने रमेश जी को यह बात बताई | बोले ,तब तो आपको नवभारत टाइम्स ही जाना चाहिए | राजेंद्र माथुर देश के सबसे अच्छे संपादक हैं | हमने तो उन्हें भास्कर में लाना चाहा था ,लेकिन यह संभव नहीं हो पाया | इसके बाद कुछ साल हमारा संपर्क टूटा रहा | एक बार नवभारत टाइम्स जयपुर में मुख्य उपसंपादक था तो रमेशजी से फिर मुलाक़ात हुई | संक्षिप्त सी | मैं उन्नीस सौ इक्यानवे में भोपाल दैनिक नई दुनिया में समाचार संपादक /विशेष संवाददाता के तौर पर काम करने जा पहुँचा | इसके बाद क़रीब बीस साल तक उनसे लगातार मुलाक़ातें होतीं रहीं | भास्कर में अदभुत बदलाव के शिल्पी के रूप में रमेश जी का योगदान कभी नहीं भुलाया जा सकता | बेटों के सक्रिय सहयोग के दम पर भास्कर एक सूर्य की तरह मध्यप्रदेश की पत्रकारिता में चमकने लगा | जब दूसरे राज्यों में भास्कर ने पंख फैलाए तो लोग दंग रह गए | आज भास्कर जिस स्थिति में है,उसके मूल में रमेशजी ही हैं | आधुनिकतम तकनीक और विलक्षण कारोबारी समझ ने उन्हें एक अनूठा संयोजक बना दिया था |
प्रिंट के बाद टेलिविजन के लिए जब भी मुझे कारोबारी ख़बरों के लिए विशेषज्ञ राय कैमरे पर रिकॉर्ड करनी होती तो उन्हें ही फ़ोन करता था | हरदम मुस्कराता चेहरा | जब भी मिलते ,कहिए प्रकाश बादल जी ! क्या हाल हैं ? कहते – तुम्हारे टीवी में जाने से प्रिंट मीडिया का बड़ा नुकसान हुआ है | वापस लौट आओ | अफ़सोस ! उनके रहते यह संभव नहीं हुआ | भोपाल उत्सव के ज़रिए उन्होंने अपने कुशल संयोजन और गहरी सांस्कृतिक समझ की छाप छोड़ी थी | चैंबर ऑफ कॉमर्स को उनका सदैव मार्गदर्शन मिलता रहा | बुंदेलखंड उनकी साँसों में बसा था | इस पिछड़े इलाक़े की सांस्कृतिक और साहित्यिक गतिविधियों को उन्होंने हमेशा संरक्षण दिया | उनका जाना देश के मीडिया जगत से तकनीक और कारोबार के समन्वय शिल्पी का जाना है | रमेश जी को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि | अब मुझे प्रकाश बादल कोई नहीं कहेगा |