नई दिल्ली ( तेजसमाचार संवाददाता ) – केंद्र ने उच्चतम न्यायालय से कहा है कि ‘तीन तलाक’, ‘निकाह हलाला’ और बहु विवाह मुस्लिम महिलाओं के सामाजिक स्तर और गरिमा को प्रभावित करते हैं तथा उन्हें संविधान में प्रदत्त मूलभूत अधिकारों से वंचित करते हैं। शीर्ष न्यायालय के समक्ष दायर ताजा अभिवेदन में सरकार ने अपने पिछले रुख को दोहराया है और कहा है कि ये प्रथाएं मुस्लिम महिलाओं को उनके समुदाय के पुरुषों की तुलना में और अन्य समुदायों की महिलाओं की तुलना में ‘‘असमान एवं कमजोर” बना देती हैं। केंद्र ने कहा, ‘‘चुनौती के दायरे में आई तीन तलाक, निकाह हलाला और बहु विवाह जैसी प्रथाएं मुस्लिम महिलाओं के सामाजिक स्तर और गरिमा को प्रभावित करती हैं तथा उन्हें अपने समुदाय के पुरषों और दूसरे समुदायों की महिलाओं एवं भारत से बाहर रहने वाली मुस्लिम महिलाओं की तुलना में असमान एवं कमजोर बना देती हैं.” केंद्र ने कहा, ‘‘मौजूदा याचिका में जिन प्रथाओं को चुनौती दी गई है, उनमें ऐसे कई अतार्किक वर्गीकरण हैं, जो मुस्लिम महिलाओं को संविधान में प्रदत्त मूलभूत अधिकारों का लाभ लेने से वंचित करते हैं.”
‘लैंगिक असमानता का समुदाय पर दूरगामी प्रभाव’- केंद्र ने कहा कि ‘‘एक महिला की मानवीय गरिमा, सामाजिक सम्मान एवं आत्म मूल्य के अधिकार अनुच्छेद 21 के तहत उसे मिले जीवन के अधिकार के अहम पहलू हैं।’’ अभिवेदन में कहा गया, ‘‘लैंगिक असमानता का शेष समुदाय पर दूरगामी प्रभाव होता है। यह पूर्ण सहभागिता को रोकती है और आधुनिक संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों को भी रोकती है।’’
याचिकाओं की सुनवाई आगामी 11 मई को – एक संवैधानिक पीठ इन्हें चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई 11 मई को करेगी। केंद्र ने अपने लिखित अभिवेदन में इन प्रथाओं को ‘‘पितृ सत्तात्मक मूल्य और समाज में महिलाओं की भूमिका के बारे में चली आने वाली पारंपरिक धारणाएं’’ बताया।