दिल्ली. 16 दिसंबर, 2012 को दिल्ली में हुए सनसनीखेज गैंगरेप और हत्या कांड के चार दोषियों की मौत की सजा सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखी है. अदालत ने फैसला सुनाते समय इस केस को बेहद बर्बर माना, साथ ही यह भी कहा कि अगर इस केस में फांसी न हो, तो किस केस में हो.
कोर्ट ने कहा कि इस अपराध ने चारों ओर सदमे की सुनामी ला दी थी और यह बिरले में बिरलतम अपराध की श्रेणी में आता है जिसमें बहुत ही निर्दयीता और बर्बरता के साथ 23 वर्षीय छात्रा पर हमला किया गया था. तीन सदस्यीय पीठ ने कहा, कि जिस तरह के मामले में फांसी आवश्यक होती है, यह मामला बिल्कुल वैसा ही है. पीठ ने कहा कि मुकेश, पवन, विनय शर्मा और अक्षय ठाकुर के खिलाफ गंभीर परिस्थितियां उनके बचाव में पेश की गई परिस्थितियों पर बहुत भारी हैं. न्यायाधीशों ने कहा कि वे निचली अदालत द्वारा सुनाई गई और बाद में दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा बरकरार रखी गई दोषियों की फांसी की सजा को बरकरार रख रहे हैं.
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों ने कहा कि इस अपराध ने पूरे देश की आत्मा को हिला कर रख दिया था. कोर्ट ने कहा यह बिरले में बिरलतम अपराध की श्रेणी में आता है जिसमें बहुत ही निर्दयीता और बर्बरता के साथ 23 वर्षीय छात्रा पर हमला किया गया था. शीर्ष अदालत ने कहा कि दोषियों ने पीड़ित की अस्मिता लूटने के इरादे से उसे सिर्फ मनोरंजन का साधन समझा. न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति आर भानुमति और न्यायमूर्ति अशोक भूषण की तीन सदस्यीय खंडापीठ ने 27 मार्च को इस मामले में दोषियों की अपील पर सुनवाई पूरी की थी. इस मामले में न्यायमूर्ति मिश्रा और न्यायमूर्ति भानुमति ने अलग अलग परंतु सहमति के फैसले सुनाये.
न्यायालय ने कहा कि इस अपराध की किस्म और इसके तरीके ने सामाजिक भरोसे को नष्ट कर दिया और यह बिरले में बिरलतम की श्रेणी में आता है जिसमें मौत की सजा दी जानी चाहिए. शीर्ष अदालत ने कहा कि पीड़ित ने संकेतों के सहारे मृत्यु से पूर्व अपना बयान दिया क्योंकि उसकी हालत बहुत ही खराब थी परंतु उसके इस बयान में तारतम्यता थी जो संदेह से परे सिद्ध हुयी. पीठ ने यह भी कहा कि पीड़ित और दोषियों की डीएनए प्रोफाइलिंग जैसे वैज्ञानिक साक्ष्य भी घटना स्थल पर उनके मौजूद होने के तथ्य को सिद्ध करते हैं. पीठ ने कहा कि चारों दोषियों, राम सिंह और किशोर की आपराधिक साजिश साबित हो चुकी है. इस वारदात के बाद उन्होंने पीड़ित और उसके दोस्त को बस से बाहर फेंकने के बाद उन पर बस चढ़ा कर सबूत नष्ट करने का प्रयास किया. न्यायालय ने यह भी कहा कि पीड़ित के साथ बस में यात्रा करने वाले उसके मित्र और अभियोजन के पहले गवाह की गवाही अकाट्य और भरोसेमंद रही.
– फांसी को अपराधियों ने दी थी चुनौती
चारों दोषियों ने अपनी अपील में दिल्ली उच्च न्यायालय के 13 मार्च, 2014 के फैसले को चुनौती दी थी. इस फैसले में उच्च न्यायालय ने चारों दोषियों को मौत की सजा सुनाने के निचली अदालत के निर्णय की पुष्टि की थी.
शीर्ष अदालत ने चारों दोषियों – मुकेश, पवन, विनय शर्मा और अक्षय कुमार सिंह की अपीलों पर 27 मार्च को अपना फैसला सुरक्षित रखा था. चारों ने 13 मार्च, 2014 को उच्च न्यायालय द्वारा दोषी ठहराये जाने और सुनाई गयी मौत की सजा के खिलाफ अपील की थी.
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट के के फैसले को बरकरार रखते हुए निर्भया कांड के दोषियों की फांसी की सजा को बरकरार रखा है. जहां एक तरफ लोगों ने इस फैसले का स्वागत किया है तो वहीं दोषियों के वकील ए पी सिंह ने कहा कि समाज को संदेश देने के लिए किसी को फांसी नहीं दे सकते. मानवाधिकारों की धज्जियां उड़ गई है.
इस मामले में छह आरोपी थे, जिनमें से पांचवें आरोपी ने जेल में आत्महत्या कर ली थी और एक आरोपी नाबालिग था, जिसे छह महीने सुधार गृह में रखे जाने के बाद रिहा कर दिया गया है.