पुणे. चिकित्सकों को अक्सर भगवान की बराबरी का दर्जा दिया जाता है क्योंकि उनमें लोगों की जान बचाने का हुनर होता है. पुणे के दो परिवारों के लिए यह कहावत वाकई सही साबित हो गई, जब पुणे के अस्पताल में दिमागी तौर पर मृत घोषित किए जा चुके दो मरीजों का सफलतापूर्वक इलाज संपन्न किया गया. अस्पताल के चिकित्सकों और हेल्थ केयर टीम ने समय पर प्रभावी तौर पर इन सर्जरीज को अंजाम देने में सफलता हासिल की.
पहले केस में 35 वर्षीय सुनयना भाटिया को पुणे के कोलंबिया एशिया अस्पताल लाया गया था. उन्हें कार्डियोरेस्पिरेट्री अरेस्ट हुआ था, जिसके लिए कार्डियोपल्मनरी रीससिटेशन (सीपीआर) किया गया था. अस्पताल के इमरजेंसी विभाग में आने के मिनटों भीतर ही मरीज को सर्जरी विभाग में ले जाया गया था. अस्पताल ने तत्काल प्रभाव से मरीज के परिजनों से मरीज के ब्रेन ट्यूमर को हटाने की स्वीकृति ली थी. स्वीकृति मिलते ही डॉ. प्रवीण सुर्वशे और उनकी टीम ने तुरंत सर्जरी शुरू कर दी थी.
मरीज की हालत और केस की गंभीरता के बारे में पुणे के कोलंबिया एशिया अस्पताल के न्यूरोसर्जन, सलाहकार डॉ. प्रवीण सुरवशे ने बताया, जब हम मरीज को सर्जरी के लिए लेकर गए तो वे दिमागी तौर पर लगभग मृत थीं. आपातकालीन सीपीआर की मदद से ऑक्सीजनेटेड खून को हृदय और दिमाग में निरंतर प्रवाह जारी रहा, जिससे आगे की जांचों के लिए हमें कुछ कीमती समय मिल गया था.
सीटी स्कैन से पता चला कि उनके दिमाग में बड़े हाइसोफेलस के साथ बड़े आकार का इंट्रावेंट्रिक्यूलर ट्यूमर था. ऐसे मामलों में दिमाग की कैविटी में ब्रेन ट्यूमर बनने लगता है, जिससे सेरेब्रोस्पाइनल फ्लूइड ( सीएसएफ ) का प्रवाह रुक जाता है, यह फ्लूइड दिमाग की कार्यप्रणाली के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. सीएसएफ के एक जगह एकत्रित होते रहने से स्कल पर दबाव बढ़ जाता है और इससे दिमाग स्थायी तौर पर भी डैमेज हो सकता है. इस सर्जरी की वजह से याददाश्त खोने या पैरालिसिस होने जैसी आशंकाओं के जुड़े होने के बावजूद हमने दिमागी तौर पर लगभग मृत स्त्री के ब्रेन ट्यूमर को निकालने के लिए तत्काल प्रभाव से यह सर्जरी की.
– 8 घंटे चला ऑपरेशन
8 घंटे तक चली इस लंबी प्रक्रिया में चिकित्सकों ने गहराई में पकड़ जमा चुके इस ट्यूमर को हटाने में सफलता हासिल की थी, इस दौरान दिमाग के आसपास किसी भी प्रकार की क्षति नहीं पहुंची थी. अगले ही दिन मरीज को होश आ गया था और उन्हें याददाश्त, आवाज संबंधित किसी प्रकार की समस्या नहीं थी. दिमाग द्वारा होने वाले दूसरे फंक्शंस भी सामान्य तौर पर चल रहे थे. 8 दिनों के बाद बिना किसी न्यूरोलॉजिकल समस्या के मरीज आराम से चलकर घर जा पाई थी.
– दुर्घटना में लगी थी दिमाग में चोट
दूसरे स्वतंत्र मामले में डॉ. प्रवीण सुरवशे ने 21 वर्षीय आर्शन झोयाब उस्मानी इस नौजवान की जान बचाई. एक सड़क हादसे का शिकार हुए इस लड़के को दिमागी तौर पर लगभग मृत घोषित किया गया था और उसके जीवित बचने की संभावना 5 प्रतिशत से भी कम रह गई थी. इस केस का विवरण देते हुए डॉ. प्रवीण सुरवशे ने बताया, जब मरीज को हमारे अस्पताल में लाया गया तो वह दिमाग के दाहिने हिस्से में एक्स्ट्राड्यूरल हैमरेज से जूझ रहा था. स्कल के अंदर ब्लीडिंग होने की वजह से इंट्राएक्रेनियल ब्लड क्लॉट बन गया था, जिससे स्कल के अंदर दबाव बढ़ता जा रहा था, जिससे दिमाग स्थायी तौर पर क्षतिग्रस्त हो सकता था व उसकी मौत भी हो सकती थी. मरीज को अस्पताल लाने के 20 मिनट के अंदर ही सर्जरी की प्रक्रिया को शुरू करते हुए उस क्लॉट को दिमाग से निकाला गया था. इस मामले में समय की महत्ता को नकारा नहीं जा सकता था, कुछ क्षणों की देरी से भी हजारों न्यूरॉन मृत हो सकते थे, जिससे मरीज के जीवित बचने की संभावना कम होती जाती.
– परिजन खुश
सर्जरी के सफल हो जाने से मरीज के परिजन व रिश्तेदार बेहद खुश हुए थे और उन्होंने इसे अपने बच्चे का दूसरा जन्म बताया था. बिना किसी न्यूरोलॉजिकल डिफेक्ट के उस युवा लड़के को सर्जरी के तीसरे दिन होश आ गया था. उसकी याददाश्त ठीक थी और उसने तुरंत अपने अभिभावकों को पहचान लिया था.
= अस्पताल के प्रति आभार
मरीज के पिता ने इस बाबत बताया, हम अपने बेटे का जीवन बचाने के लिए कोलंबिया एशिया अस्पताल के डॉ. प्रवीण सुर्वशे व उनकी पूरी टीम के बहुत आभारी हैं. निराशा के इन क्षणों में डॉ. सुर्वशे व उनकी टीम ने हमारी आशा को बनाए रखा. यह सिर्फ उनकी विशेषज्ञता और समय पर निर्णय लेने की काबीलिसत का ही नतीजा है कि हमारा बेटा आज जीवित है, इससे हमारा इस अस्पताल में मिलने वाले इलाज पर भरोसा मजबूत हो गया है. खुशहाल परिवार अपने बेटे को 10 दिन बाद अस्पताल से घर ले गया था, जब उसे डिस्चार्ज किया गया.