बलिया. बागी बलिया की धरती के लाल राजीव मिश्र ने जिले के साथ पूरे पूर्वांचल का नाम चमकाने का काम किया है. जिदंगी के चार दशक भी अभी तक पूरे नहीं किए इस रिसर्च स्कॉलर ने अब तक 35 बार न सिर्फ रक्तदान कर पूर्वांचल में एक कीर्तिमान बनाया है, बल्कि यूपी के युवाओं को रक्तदान महादान का पाठ पढ़ाने का भी काम किया. चिकित्सा विज्ञान के अनुसार रक्तदान को बढ़ावा देने के लिए एक यूनिट खून से तीन लोगों की जिंदगी बचाने की जो बात कही जाती है, उसके हिसाब से अब राजीव ने 35 यूनिट ब्लड डोनेट करके 105 लोगों की जिंदगी बचाने का काम किया.
रक्तदान के इस महादानी को अब तक दर्जनों सम्मान मिल चुका हैं, लेकिन पूर्वांचल के युवाओं में इस महादानी को इलाहाबाद के डीएम संजय कुमार ने इसी सप्ताह सम्मानित करने का काम किया. रक्तदान महादान कहा जाता है लेकिन लोग खून देने में तमाम भ्रम के चलते हिचकते है, ऐसे माहौल में महादानी बने राजीव मिश्र ने एनबीटी संग बातचीत करते हुए इसके पीछे की कहानी बतायी. राजीव के महारक्तदानी बनने की कहानी सुनने के बाद हो सकता है अगली बार किसी जरूरतमंद को खून की आवश्यकता तो हो आप हिचकने की बजाए न सिर्फ आगे आएंगे बल्कि इसको बढ़ावा देने का काम करेंगे.
बलिया जिले के बसंतपुर गांव के मूलनिवासी भारतीय सेना में कैप्टन रहे बलेश्वर मिश्र के बेटे राजीव की जिंदगी में रक्तदान करने का जुनून बड़े भाई की मौत के बाद सवार हुआ. भाई की मौत एपेन्डिक्स से होने के बाद राजीव ने खून दान करके लोगों की जिंदगी बचाने की सौगंध खायी. सरहद की रक्षा करने वाले बलेश्वर के इस बेटे ने फिर लोगों की जिंदगी की रक्षा के लिए रक्तदान करने का सिलसिला इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के लिए 2008 में आने के दौरान प्रारंभ किया. चिकित्सा विज्ञान के अनुसार रक्तदान को बढ़ावा देने के लिए एक यूनिट खून से तीन लोगों की जिंदगी बचाने की जो बात कही जाती है,उसके हिसाब से अब राजीव ने 35 यूनिट ब्लड डोनेट करके 105 लोगों की जिंदगी बचाने का काम किया.
– इंसान मजहबी होता है खून नहीं
जाति-धर्म से ऊपर उठकर इंसानियत में विश्वास रखने वाले राजीव का कहना है इंसान मजहबी होता है, लेकिन उसका खून मजहब नहीं देखता है. मैं सभी धर्मों में विश्वास करता हूं. मंदिर हो या मजार मत्था टेकने में गुरेज न करने वाले राजीव का कहना है उसके रक्तदान के बाद तमाम ऐसे लोगों की जान बची, जिनका कोई अपना नहीं था अस्पताल में. लावारिश पड़े लोगों को खून देने के बाद उनकी जान बचने की जब खबर मिलती थी तो दिल में इतनी खुशी होती है कि उसको शब्दों में नहीं बता सकता हूं. राजीव चाहते हैं कि रक्तदान में उनका नाम गिनेस बुक में दर्ज हो.
– दूसरों का दर्द देखकर भूल जाता हूं दर्द
जनसंचार में रिसर्च कर रहे राजीव से जब यह पूछा कि इतना रक्तदान करते हैं, खून देते वक्त पीड़ा नहीं होती है क्या? जवाब था कि दर्द होता है लेकिन सोचता हूं कि मेरे थोड़े से दर्द से किसी के परिवार का बड़ा दर्द कम हो जाएगा, उससे बड़ी खुशी क्या होगी. मां इंदुमति मिश्रा राजीव के रक्तदान के प्रमाणपत्र को देखकर खुश होने के साथ नाराज होती है इतना खून निकलवाते है, इससे तुम कमजोर होते जा रहे हो. मां को राजीव दिलासा देते हुए कहते हैं कि बड़े भैया की तरह किसी का भाई-बहन या मां-बेटी खून की कमी से दुनिया नहीं छोड़ेगी, इससे बड़ी खुशी और क्या हो सकती मां. बेटे की यह बात सुनकर मां राजीव को गले से लगा लेती है.
– दिनेश चंद्र मिश्र, बलिया