डी.डी.न्यूज़ के वरिष्ठ संवाददाता अशोक श्रीवास्तव द्वारा हाल ही के संपन्न हुए चुनाव की राजनीति व उभर रही अवसरवादी , लोलुप पत्रकारिता पर अपना कटाक्ष किया है । पेश है अशोक श्रीवास्तव की बेबाक कलम से..
देश की आम जनता, पत्रकारों और बुद्धिजीवियों से ज़्यादा बुद्धिमान है। बीते दो दिनों में इस मेरा यह विश्वास और बढ़ गया है। 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव आते ही कुछ बुद्धिजीवी और पत्रकार जिस तरह छाती पीट पीट कर रो रहे हैं वह वाकई शर्मनाक है। इन नतीजों की अलग अलग तरह से व्याख्याएं हो रही हैं और नतीजों के निहितार्थ तलाशते तलाशते कोई कॉर्पोरेट जगत तक पहुँच गया है तो किसी को पाकिस्तान के संस्थापक जिन्ना की याद आ रही है। किसी को लग रहा है कि उत्तर प्रदेश की जनता साम्प्रदायिक हो गई तो किसी को लग रहा है कि मणिपुर के लोग आला दर्जे के बेवक़ूफ़ और स्वार्थी हैं जिन्होंने ईरोम शर्मीला को हरा दिया। वगैरह वगैरह।
ईरोम शर्मीला से ही शुरू करता हूँ। वो बेहद जुझारू आंदोलनकारी महिला हैं इससे कौन इंकार कर सकता है। अपनी इस अनूठी तपस्या से उन्होंने देश और दुनिया में नाम और सम्मान कमाया। लेकिन ज़रूरी तो नहीं हर आंदोलनकारी को जनता स्वीकार कर ले ? एक आंदोलनकारी को जनता ने सर आँखों पर बैठाया लेकिन उसका अंजाम क्या हुआ ? जिन मुद्दों पर लोगों को आंदोलित किया गया वो मुद्दे आंदोलनकारी से नेता बने एक व्यक्ति की अति महत्वकांक्षा के नीचे दब कर मर गए। फिर ईरोम ने जो संघर्ष किया आज मणिपुर के लोग अगर उस मुद्दे को अप्रासंगिक मानते हैं तो ये उनकी सोच और समझ है। ऐसा करने से मणिपुर के लोग बेवक़ूफ़ और स्वार्थी क्यों हैं भाई। ईरोम का पूरा सम्मान करते हुए एक और बात दिल्ली में कई दिन चर्चा चली, कई बातें उठीं कि किन कारणों से ईरोम ने अपना अनशन ख़त्म किया। दिल्ली में तो ये चर्चाएं बंद हो गईं कही ऐसा तो नहीं कि मणिपुर में ये चर्चाएं कहीं ज़्यादा तेज़ हो।
बात अब उत्तर प्रदेश की, मेरे कई साथी पत्रकार बहुत दुखी और परेशान हैं नतीजों से। कुछ का दर्द समझ सकता हूँ। बहुत सारे पत्रकारों को बीते एक साल में बहुत तरह से ओब्लाइज किया गया,इसलिए ज़मीन से कट कर इन पत्रकारों ने अखबारों में , टीवी चैनलों और सोशल मीडिया पर “यू पी को ये साथ पसंद है” की हवा बनाने की कोशिश की वो धरी रह गयी । इसलिए उनका दुःख समझा जा सकता है। मैं मानता हूँ कि अखिलेश इन चुनावों में एक बेहतर नेता बन कर उभरे हैं और अगर वो सपा की सफाई करके सड़कों पर संघर्ष करेंगे तो उनका भविष्य बहुत अच्छा है। लेकिन क्या सिर्फ इसके कारण उत्तर प्रदेश के 4 साल के कुशासन को भूल जाएं लोग ? एक मुख्यमंत्री जो बलात्कार के आरोपी मंत्री को लगातार ढोता रहता है , उसके लिए वोट मांगने जाता है क्या लोग उसे सिर्फ इसलिए वोट दें कि कथित सेक्युलरवाद को बचाना है ? ये मुख्यमंत्री तब भी खामोश था जब एक माँ – बेटी दोनों के साथ बलात्कार होता है और आजम खान जैसा नेता इसे राजनीतिक नौटंकी कहता है। क्या उत्तर प्रदेश के लोग ये सब भूल जाते ?
कुछ लोगों को ये बुरा लग रहा है कि उत्तर प्रदेश के हिंदुओं ने एक साथ मिल कर एक पार्टी के लिए वोट कर दिया। इतने साल तक जब मुस्लिम एक साथ मिल कर एक पार्टी को हराने के लिए नेगेटिव वोट करते रहे तब उसे “टैक्टिकल” वोटिंग कहा गया। अब अगर हिन्दू जाति तोड़ कर एक पार्टी को जिताने के लिए वोट कर रहा है तो उसे “सांप्रदायिक” वोटिंग कहा जा रहा है। कह रहे है कि वोटर बहक गया !
पत्रकार बिरादिरी के लोग अब मुसलमानो को ये कह कर भड़काने की कोशिश कर रहे हैं कि विधानसभा में उनका प्रतिनिधित्व कम हो रहा है, और इसी बात के डर से जिन्ना ने पाकिस्तान माँगा था । तो क्या अब उत्तर प्रदेश में एक अलग आरक्षित मुस्लिम प्रदेश बनवाना चाहते हैं। एक सेलेब्रिटी एंकर कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में बहुसंस्कृतिवाद खतरे में है। मोदी को मुसलमानों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी। ये कैसी पत्रकारिता है ? मुसलमान अखिलेश के सेक्युलर राज में कौन सुरक्षित थे ? 400 से ज़्यादा दंगे किसके शासन में हुए ? और मोदी जी सिर्फ मुसलामानों की सुरक्षा सुनिश्चित क्यों करें ? सबकी सुरक्षा सुनिश्चित क्यों न करें ? उन दलितों की क्यों न करें जिनके घर एक जाति विशेष की सेक्युलर सरकार बनने पर जला दिए जाते हैं।
विडम्बना देखिये क़ि उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के मतदाताओं को सांप्रदायिक और “बहका हुआ” वो बुद्धिजीवी – पत्रकार बता रहे हैं जो “अब्सलूट” अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर “भारत तेरे टुकड़े होंगे इंशाल्लाह “का नारा लगाने वालों का भी समर्थन करते हैं और ऐसा नारा लगाने वाले को सिर्फ इसलिए नायक बना देते हैं क्योंकि वो उस नेता के विरोध में खड़ा है जिसका चेहरा आपको पसंद नहीं। जो आपके कहने पर किसी को “मलाईदार” मंत्रालय नहीं बांटता !
सच तो ये है कि इस बार पाँचों राज्यों में लोगो ने बहुत सोच समझ कर मतदान किया है। उत्तर प्रदेश में अगर अखिलेश को सबक सिखाया है तो पंजाब के लोगों ने अकाली भाजपा को भी अच्छा पाठ पढ़ाया है और बता दिया है कि सब चलता है अब नहीं चलेगा। पंजाब के लोगों ने तो आम आदमी पार्टी की जगह कांग्रेस को भरपूर समर्थन देकर अपनी परिपक्वता का परिचय दिया है।
इसलिए सेक्युलरवाद के नाम पर प्रपंच करने और चुनाव नतीजों पर प्रलाप करने वाले बुद्धिजीवी – पत्रकारों से अनुरोध है कि जनमत का सम्मान करना सीखिये। आँखे खोलिये देश बदल रहा है – हिंदुओं को उनकी जाति से पहचानना बंद कीजेए और मुसलमानों को भड़काना बंद कीजिये। और अपनी बंद होती दूकान को बचाने पर ध्यान दीजिए।