नई दिल्ली ( तेज़ समाचार प्रतिनिधि ) – भारतीय शिक्षण मंडल तथा इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (इग्नू) के संयुक्त तत्वावधान मे “ भारत बोध ” केंद्रित संवाद व्याख्यान श्रंखला के उद्घाटन सत्र का आयोजन इंडिया हेबिटेट सेंटर के सभागार में किया गया. समारोह के मुख्य अतिथि प्रकाश जावड़ेकर माननीय शिक्षामंत्री , भारत सरकार , मुख्यवक्ता डॉ. एच. आर. नागेन्द्र , कुलाधिपति स्वामी विवेकानंद योग अनुसंधान संस्थान विश्वविद्यालय , बेंगलूरु , स्वामी आत्मप्रियानंद , कुलपति रामकृष्ण मिशन विश्वविद्यालय कलकत्ता थे .
समारोह मे इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रविन्द्र कुमार , भारतीय शिक्षण मंडल के अध्यक्ष डॉ. सच्चिदानंद जोशी , तथा भारतीय शिक्षण मंडल के संगठन मंत्री श्री मुकुल कानिटकर भी मंच पर उपस्थित थे.
केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री माननीय प्रकाश जावड़ेकर जी ने इग्नू द्वारा स्थापित डिजिटल पाठ्यक्रम का विमोचन करते हुए इग्नू के इस नवाचार की प्रशंसा की. उन्होने कहा कि भारत की शिक्षा भारत केन्द्रित होनी चाहिए. दुनिया को याद करते समय भारत को जरुर याद रखना चाहिए. स्थानीय ज्ञान से प्रारम्भ कर के वैश्विक ज्ञान तक पहुँचने से विद्यार्थियों की समझ बढती है. उन्होने राजस्थान का उदाहरण देते हुए कहा कि राजस्थान मे पहले जिले का भूगोल व इतिहास पढ़ाया जाता है , तत्पश्चात क्षेत्र का , राज्य का , देश का तथा विश्व का अध्यापन होता है. देश के प्रत्येक गाँव , प्रत्येक जिले में जानने योग्य असंख्य जानकारियाँ है , जिनका सम्प्रेषण शिक्षा के माध्यम से विद्यार्थी तक होना चाहिए.
समारोह के विशिष्ट अतिथि स्वामी आत्मप्रियानंद जी ने भारत व्दारा आध्यात्म आधारित भौतिक विकास की दृष्टि का महत्व बताते हुए कहा कि आज का भौतिकवाद पूर्णरूप से अवैज्ञानिक है तथा विश्व को अशांति ओर ले जा रहा है. भारत की विविधता को स्वीकार करने की प्रवृत्ति ही भारत की वास्तविक पहचान है. समस्त विविधताओं को स्वीकार कर उसमे एकात्मता की खोज का विज्ञान ही वेदांत है. यही एकत्व विज्ञान है. भारत युगों-युगों से इस जीवन पद्धति को जीता आया है. उपनिषदों व गीता के माध्यम से कभी एकत्व विज्ञान की शिक्षा भारत विश्व को देता आया है.
भारतीय शिक्षण मंडल के संगठन मंत्री मुकुल कानिटकर ने अपने उद्बोधन से स्वामी विवेकानंद के भारतीय व्याख्यान का उदहारण देते हुए कहा कि प्रत्येक राष्ट्र का एक स्वाभाव होता है उसी पर आधारित जिस तंत्र का निर्माण किया जाता है उसे ही स्वतंत्र कहते है. भारत का स्वभाव आध्यात्मिक है. आध्यात्मिकता ही भारतीय संस्कृति का आधार है. भारत के मूल भाव को लोगों तक पहुंचाकर ही भारत के विकास का तंत्र स्थापित करने की योजना बनानी चाहिए. एक आम भारतीय भारतीयता को जानता ही नहीं जीता भी है. परन्तु आज बौद्धिक जगत में कार्य करने की आवश्यकता है. भारत की शिक्षा देशानुकुल तथा युगानुकुल होनी चाहिए. धन्यवाद ज्ञापन भारतीय शिक्षण मंडल के अध्यक्ष प्रो. सच्चिदानंद जोशी ने किया.