पुणे (तेज समाचार डेस्क). छत्रपति शिवाजी महाराज के ऐतिहासिक किलों के कारण महाराष्ट्र को एक ऐतिहासिक पहचान मिली है. लेकिन शिवाजी महाराज के अनेक किले ऐसे है, जिनका इतिहास में तो उल्लेख मिलता है, लेकिन वास्तविकता में इन किलों का अस्तित्व विस्मृतियों में खो चुका है. लेकिन कई ऐसे इतिहास प्रेमी है, जो इन समय की गर्त में खो चुके किलों की खोज में आज भी प्रयत्नशील है. ऐसा ही एक किला था, ‘ढवलगढ़’. पुणे के पर्वतारोही ओंकार ओक ने वह स्थान खोज निकाला है, जहां यह किला शिवाजी के काल में शान से आसमान को छूता था. इन पर्वतारोहियों ने इस किले की स्थाननिश्चिती की है, जहां किले के अवशेष भी मिले है.
ओंकार ओक ने बताया कि पुरंदर तहसील के आंबले गांव के पास यह ढवलगढ़ किला है. इस किले पर ढवलेश्वर का सुप्रसिद्ध मंदिर है. साथ ही किले की सुरक्षा दीवार, टूटा हुआ दरवाजा, पानी की 4 टंकियां, चुने की भट्टियां आदि अवशेष आज भी है. हालांकि ये सभी अवशेष आज पूरी तरह से धुमिल हो गए है, लेकिन कुछ अवशेष आज भी कुछ मात्रा में मौजूद है. इस किले पर जाने के लिए दो मार्ग है. पहला मार्ग सासवड़ से चौफुला गांवा से वाघापुर से आंबले है. आंबले गांव से गढ़ की तलहटी तक का यह मार्ग कच्चा रास्ता है. दूसरा मार्ग पुणे-सोलापुर रोड पर उरुली कांचन से डालिंब गांव से है. इस मार्ग से ट्रेकिंग कर जाया जा सकता है.
– किल्ले पुरंदर किताब में है संदर्भ
इतिहास संशोधक कृष्णाजी वामन पुरंदरे के किल्ले पुरंदर नामक किताब में ढवलगढ़ किले का उल्लेख मिलता है. गजट में इस किले का कहीं भी उल्लेख नहीं होने से यह किला आज भी विलुप्त था. इस कारण स्थानीय लोग भी इसे किला न मान कर पुरातन कालीन मंदिर के रूप में ही जानते थे. लेकिन यहीं वह जगह है जहां ढवलगढ़ किला था.
ओंकार ओक ने बताया कि वे यहां पक्षियों के निरीक्षण के लिए आए थे. इस समय यहां किले के अवशेष उन्हें दिखाई दिए. इसके बाद नाम के आधार पर किले की कड़ियां जुड़ती गई. इसके बाद इस बारे में उन्होंने पुणे के डॉ. सचिन जोशी को इसकी जानकारी दी और डॉ. जोशी भी उनकी इस मुहिम में उनके साथ हो लिए. आज हम दांवे के साथ ही सकते है कि यहीं वह जगह है, जहां ढवलगढ़ किला था.