दिवंगत पूर्वजों के निमित्त श्रद्धापूर्वक किए दान को ही श्राद्ध कहा जाता है. ब्रह्म पुराण में कहा गया है कि श्राद्ध के द्वारा प्रसन्न हुए पितृगण मनुष्यों को पुत्र, धन, विद्या, आयु, आरोग्य, लौकिक सुख, मोक्ष तथा स्वर्ग आदि प्रदान करते हैं. पितृश्वरों के आशीर्वाद से ही जन्म कुंडली में निर्मित पितृदोष के दुष्परिणामों से बचा जा सकता है.
आश्विन कृष्ण पक्ष में किए जाने वाले श्राद्ध पार्वण श्राद्ध कहलाते हैं जबकि वार्षिक श्राद्ध एकोदिष्ट होते हैं. याज्ञवल्क्य का कथन है कि श्राद्ध देवता श्राद्धकत्र्ता को दीर्घ जीवन, आज्ञाकारी संतान, धन विद्या, संसार के सुख भोग, स्वर्ग तथा दुर्लभ मोक्ष भी प्रदान करते हैं. वैसे तो गणेश विसर्जन के दूसरे दिन से श्राद्ध पक्ष या पितृपक्ष का शुभारंभ माना जाता है. लेकिन मंगलवार को चतुर्दर्शी का समय 12.41 बजे तक ही था. इसलिए 12.41 बजे के बाद से पितृपक्ष की शुरुआत हो चुकी है. लेकिन चुकि पूर्णिमा को सूर्योदय न मिलने के कारण 6 सितंबर को सूर्योदय मिलने के बाद ही इसे तिथि माना जाएगा और तभी से पितृपक्ष की शुरुआत मानी जाएगी. अत: 6 सितंबर से शुरू हुआ पितृपक्ष 19 सितंबर को समाप्त हो रहा है. इस बीच अपने पितरों को प्रसन्न किया जाता है. श्राद्ध कर्म के माध्यम से प्रसन्न हुए पितृगण मनुष्यों को पुत्र, धन, विद्या, आयु, आरोग्य, लौकिक सुख, मोक्ष तथा स्वर्ग आदि प्रदान करते हैं.
– श्राद्ध और तर्पण से तृप्त होते हैं पितृगण
विष्णु पुराण में कहा गया है कि श्राद्ध तथा तर्पण से तृप्त होकर पितृगण समस्त कामनाओं को पूर्ण कर देते हैं. श्राद्ध में पितरों की तृप्ति ब्राह्मणों के द्वारा ही होती है अत: श्राद्ध के अवसर पर दिवंगत पूर्वजों की मृत्यु तिथि को निमंत्रण देकर ब्राह्मण को भोजन, वस्त्र एवं दक्षिणा सहित दान देकर श्राद्ध कर्म करना चाहिए. इस दिन पांच पत्तों पर अलग-अलग भोजन सामग्री रखकर पंचबलि करें. इसके बाद अग्नि में भोजन सामग्री, सूखे आंवले तथा मुनक्का का भोग लगाएं. श्राद्ध में एक हाथ से पिंड तथा आहूति दें परन्तु तर्पण में दोनों हाथों से जल देना चाहिए. शास्त्रों के अनुसार वर्ष में जिस भी तिथि को वे दिवंगत होते हैं, पितृपक्ष की उसी तिथि को उनके निमित्त विधि-विधान पूर्वक श्राद्ध कार्य सम्पन्न किया जाता है. इसका निर्वहन दिवंगतों के प्रति श्रद्धांजलि का भी द्योतक है.
– श्राद्ध काल में क्या करना चाहिए
श्राद्ध के दौरान कुछ नियमों का भी पालन किया जाए तो पितृ प्रसन्न होकर आशीर्वाद देने लगते हैं. ग्रंथों के अनुसार श्राद्ध अपने ही घर में करना चाहिए, दूसरे के घर में करने का निषेध है. श्राद्ध केवल अपरान्ह काल में ही करें. श्राद्ध में दुहिता पुत्र, कुतपकाल (दिन का आठवां भाग) तथा काले तिलों को सबसे पवित्र वस्तुएं माना है.
श्राद्ध में क्रोध और जल्दबाजी बिल्कुल नहीं करनी चाहिए. श्राद्ध काल में गीताजी, श्रीमद्भागवत पुराण, पितृ सूक्त, पितृ संहिता, रुद्र सूक्त, ऐंन्द्र सूक्त, मधुमति सूक्त आदि का पाठ करना मन, बुद्धि एवं कर्म तीनों की शुद्धि के लिए अत्यन्त फलप्रद है. श्राद्ध काल में ॐ क्रीं क्लीं ऐं सर्वपितृभ्यो स्वात्म सिद्धये ॐ फट.. ॐ सर्व पितृ प्रं प्रसन्नो भव ॐ का जाप भी लाभ देता है. इस काल में शांति का खासा महत्त्व भी है
पितृपक्ष में वर्जित है ये काम
- पितृपक्ष के दौरान कुछ काम वर्जित होते हैं. मान्यता है कि इन्हें करने से पितृ नाराज होते हैं और श्राप देते हैं.
- सूर्य के रहते दिन के समय में कभी न सोएं.
- पितृपक्ष में प्रणय प्रसंग से बचें.
- पान का सेवन कदापि न करें.
- पितृपक्ष में लहसुन प्याज से बना भोजन न करें.
- कांच के बर्तनों का इस्तेमाल न करें.
- मांस और मदिरापान पितृपक्ष में वर्जित है.
- तांबूल अर्थात तंबाकू युक्त किसी भी पदार्थ का सेवन न करें.
- शुभ कार्य जैसे की विवाह, गृहप्रवेश से बचें.
- पुरुष वर्ग दाड़ी तथा बाल न कटवाएं.
– ये काम करने से प्रसन्न होते है पितर
- सूर्योदय से पहले जागने का प्रयास करें.
- जमीन पर गद्दा लगाकर सोएं.
- तुलसीपत्र का नित्य सेवन करें.
- शुद्ध घी में बने पकवान ही पितृ निमित करें.
- तेज बोले तथा गालीगलौज करने से बचें.
- सूती तथा धुले हुए कपड़े पहनें.
- घर की दक्षिण दिशा में नित्य तेल का दीपक करें.
- सौंदर्य प्रसाधनों का कम से कम इस्तेमाल करें.