6 सितंबर से विविधवत पितृपक्ष शुरू हो रहा है. पितृपक्ष अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता ज्ञापित करने का विशिष्ट अवसर होता है. श्राद्ध का अर्थ है श्रद्धापूर्ण व्यवहार और तर्पण का अर्थ है तृप्त करना. इन दिनों में किये जाने वाले तर्पण से पितर घर-परिवार को आशीर्वाद देते हैं. श्राद्ध दिनों को कनागत भी कहते हैं. इस दौरान शुभ कार्य या नये कपड़ों की खरीदारी नहीं की जाती. शास्त्रों के अनुसार मनुष्य के लिए तीन ऋण कहे गये हैं. देव, ऋषि और पितृ ऋण. इनमें से पितृ ऋण को श्राद्ध करके उतारना आवश्यक होता है. वर्ष में केवल एक बार श्राद्ध सम्पन्न करने और कौवा, श्वान (कुत्ता), गाय और ब्राह्मण को भोजन कराने से यह ऋण कम हो जाता है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पितृपक्ष में देवताओं के उपरांत मृतकों के नामों का उच्चारण कर उन्हें भी जल देना चाहिए. ब्राह्मणपुराण में लिखा है कि आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में यमराज यमपुरी से पितरों को मुक्त कर देते हैं और वे संतों और वंशजों से पिण्डदान लेने को धरती पर आ जाते हैं.
श्राद्ध पक्ष में पितर, ब्राह्मण और परिजनों के अलावा पितरों के निमित्त गाय, श्वान और कौए के लिए ग्रास निकालने की परंपरा है. गाय में देवताओं का वास माना गया है, इसलिए गाय का महत्व है. श्वान और कौए पितरों के वाहक हैं. पितृपक्ष अशुभ होने से अवशिष्ट खाने वाले को ग्रास देने का विधान है. हिन्दू शास्त्रों के अनुसार कौवे को सर्वाधिक महत्व दिया गया है. इसके अनुसार माना जाता है कि पितरों के लिए निकाला गया भोग कौवे को खिलाना चाहिए. यदि कौवा यह भोग तुरंत ग्रहण कर लेता है, तो माना जाता है कि हमारे पूर्वज या पितरों तक वह भोग पहुंच गया है. यदि कौवा यह भोग ग्रहण नहीं करता, तो माना जाता है कि या तो हमारे पितर प्रसन्न नहीं है, या फिर उनकी कोई इच्छा अधूरी रह गई है, जिसे वह आपके माध्यम से पूर्ण करना चाहते है. ऐसे में हमें अपने पितरों की इच्छा पूर्ण करने का संकल्प लेना चाहिए.
-पितरों से मांगे माफी
कई बार जाने-अनजाने जीवंत समय हमसे हमारे पिता तुल्य व्यक्ति के प्रति ऐसे कर्म हो जाते है, जिससे वे आहत होते है. मृत्यु के उपरांत भी उनके मन में वह बात सलती रहती है. ऐसे में यदि हम अपने पितरों से क्षमा याचना कर हृदय में दुख का भाव लाते है, तो हमारे पितर बड़े मन से दया कर हमें क्षमा कर देते है. इस समय उनके द्वारा जीवंतावस्था में व्यक्त की गई इच्छा को पूर्ण करने का हमें संकल्प लेना चाहिए.
– जीवंतावस्था में किसी को भी आहत न करें
जब व्यक्ति जीवंत होता है, तब हमें किसी को भी आहत नहीं करना चाहिए. अमूमन देखा गया है कि जनरेशन गेप के नाम पर हम अपने घर के बड़े बुजुर्गों के मनों को अाहत करते है. अपने माता-पिता का ध्यान नहीं रखते. जिन माता-पिता ने जीवन भर हमारी इच्छाओं को पूर्ण करने के लिए अपना सर्वस्व जीवन व्यतीत कर दिया, ऐसे माता-पिता को उनकी वृद्धावस्था में कभी भी किसी के भी कहने पर कष्ट नहीं देना चाहिए. जब वे अपने पुत्रों से कष्ट पाते है, तब उनके मन से अपने ही पुत्रों के प्रति बददुआ निकलती है और मृत्यु के पश्चात उनकी आत्मा संतुष्ट नहीं होती.