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लाकार, निर्देशक, स्क्रिप्ट रायटर, मुक्त पत्रकार व प्रिंट मीडिया में दर्जेदार ग्राफिक्स डिज़ाइनर हैं. वह अपने फेसबुक वाल पर रोचक जानकारी प्रस्तुत करते रहते हैं. देश की भीषण समुद्री दुर्घटना ” रामदास नौका दुर्घटना ” के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्रस्तुत कर रहे हैं तेजसमाचार.कॉम के पाठकों के लिए. ( संपर्क – 9657701792 )
टाइटैनिक जहाज का इतिहास हमेशा बहुत ही उत्सुकता के साथ सुना और सुनाया जाता है. लेकिन भारत के इतिहास में विशेषता महाराष्ट्र के इतिहास में घटित हुई रामदास जहाज की दुर्घटना के बारे में बहुत कम लोगों के पास को ही जानकारी है. 17 जुलाई 1947 को एस. एस. रामदास नाव दुर्घटना घटित हुई. इस दुखद दुर्घटना को आज लगभग 71 वर्ष पूरे हो रहे हैं, किंतु इसे दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि लोग टाइटेनिक जहाज दुर्घटना को तो याद रखते हैं, किंतु भारत की इस घटना का उल्लेख कहीं नहीं हो पाता.
स्वतंत्रता काल से पहले संसाधनों की कमी होने के कारण समुद्र यातायात का मार्ग जनता के लिए सस्ता एवं सुलभ हुआ करता था. मुंबई गोवा यह राष्ट्रीय महामार्ग वर्ष 1936 में बनकर तैयार हुआ. फिर भी जनता को नौका यातायात अधिक सुलभ लगा करता था. उस समय कोकण के किनारे का क्षेत्र यात्री एवं सामान यातायात करने वाले नौका, जहाज के लिए अधिक पैमाने में प्रयोग किया जाता था. समीप में ही कुलाबा, रत्नागिरी जिले के सभी छोटे बंदरगाह 12 माह यातायात के लिए सुलभ होने के कारण यह इलाका वैभवशाली हुआ करता था.
कोंकण क्षेत्र के अंतर्गत रहने वाले पुरुष वर्ग व्यवसाय के चलते मुंबई में आना-जाना किया करते थे. फिर भी संपूर्ण परिवार कोंकण में रहने के कारण यह लोग जल मार्ग से ही लौटना पसंद करते थे. जो सिलसिला आज लगभग समाप्त हो चुका है. उस समय व्यवसाय के लिए व्यापारी अपने सामान को लाने का कार्य भी इस जल मार्ग से किया करते थे. बारिश के दिनों में सिर्फ मुंबई के समीप के जल यातायात क्षेत्र प्रारंभ रहते थे. कम समय में पैसे की बचत करते हुए यात्रा करने के लिए लगातार कुलाबा, रत्नागिरी जिले के आसपास के लोग इस मार्ग का सुलभ प्रयोग करते थे. रिवर्स, करंजा, चौल, रेवदंडा, अलीबाग, श्रीवर्धन, दिघी, रोहा, महालसा,खेल, मंडणगड, आदि इलाकों के लोग मुंबई, गिरगांव, भायखला, लालबाग, आदि इलाकों में व्यापारी गतिविधियों के लिए आवागमन करते थे. इस सारी प्रक्रिया के अंतर्गत वह प्रति सप्ताह जल मार्ग से आना जाना ही पसंद करते थे. वह भी विशेष रूप से रामदास नाव के माध्यम से कोकण इलाके के मुंबई व गोवा तक जाने के लिए मुंबई स्टीम नेविगेशन अर्थात BSN कंपनी द्वारा रामदास, रोहिदास, जयंती व चंपावती इन बड़ी नावों को यातायात के लिए प्रयोग करते थे. उसमें भी विशेष रूप से रामदास नाव् मुंबई से गोवा मार्ग पर नियमित चक्कर लगाया करती थी.
ऐसे में भारतीय स्वतंत्रता काल के लगभग 1 माह पूर्व सुबह का समय कोंकण वासियों के लिए अत्यधिक अत्यधिक दुखद, भयानक साबित हुआ. 17 जुलाई 1947 का शनिवार अमावस्या होने के कारण कोंकण वासियों के लिए एक काली रात बनकर आया. मुंबई के भाऊ का धक्का बंदरगाह से रामदास नाव यात्रियों को लेकर कोकण के लिए रवाना हुई. मुंबई से कुछ ही दूरी पर स्थित का शाखा खड़का इलाके के पास तूफान की एक बड़ी लहर ने रामदास नाव को खुद में समेट लिया. इस घटना में नाव में यात्रा करने वाले लगभग 1000 यात्रियों में से 625 यात्री समुद्र में डूब कर मर गए. इस भीषण दुर्घटना में 232 यात्रियों का जीवन अत्यधिक प्रयत्नों से बचाया जा सका.
रामदास नाव यह विशेष शैली की 1979 फुट लंबी 29 फुट चौड़ी व 406 टन वजन की विशालकाय नाव थी. वर्ष 1936 में स्कॉटलैंड में बनाई गई इस रामदास नाव को वर्ष 1942 में युद्ध कार्य के लिए सरकार द्वारा इसे खरीदा गया था.
बारिश के दिनों में साफ वातावरण होने के दौरान ही यह रामदास नाव हमेशा की तरह यात्रियों को लेकर मुंबई से सुबह लगभग 8:30 बजे निकली. लगभग 9 समुद्री मील के अंतर को पार करते हुए आधा घंटा ही हुआ था कि समुद्र में चल रही यह विशालकाय नाव अचानक तिरछे स्वरुप में चलने लगी. विशेष बात यह है कि मुंबई से इतनी बड़ी संख्या में लोग एक साथ कोंकण के लिए यात्रा नहीं किया करते थे. किंतु 17 जुलाई 1947 को अमावस्या का दिन होने के कारण ग्रामीण परंपराओं के अनुसार लोगों द्वारा अपने अपने घर जाने के लिए एक साथ यात्रा प्रारंभ की गई. लगभग 673 यात्रा टिकट खत्म हो गए थे. रामदास नौका को चलाने वाले स्टाफ, होटल कर्मचारी व अधिकारी मिलकर 70 लोग एवं इसी प्रकार से अन्य मुफ्त में यात्रा करने वाले लोग मिलाकर लगभग 800 यात्री इस नौका में यात्रा करने का अनुमान व्यक्त किया जाता है. अचानक रामदास नौका के मार्ग में वातावरण का तेज बदलाव देखा गया और 50 मील प्रति घंटे की रफ्तार से तूफान निर्माण हो गया. जिसका परिणाम ऊंची तेज लहरों के साथ तेज बारिश, आंधी तूफान देखा गया. इस प्राकृतिक रौद्र रूप के चलते नाव के बड़े-बड़े कपड़े के पर्दे फट कर उड़ गए. जिससे बारिश का पानी नाव के भीतर समाने लग गया. और तेजी के साथ पानी भरने के कारण नाव समुद्र तल की दिशा में जाने लग गई. देखते-देखते रामदास नौका अनियंत्रित होते हुए समुद्र में डूब गई.
इस घटना में 625 लोगों के मरने की जानकारी मिली. जबकि 232 यात्रियों का जीवन बच निकला. 17 जुलाई 1947 की इस घटना में घटनास्थल के आसपास मौजूद मछुआरों ने 75 यात्रियों के प्राण बचाए. नाव में मौजूद महिला और बच्चों के शव तक बरामद नहीं हुए. बताया जाता है कि अनेक शवों को तो समुद्र की बड़ी-बड़ी मछलियों ने हजम कर डाला था. इस घटना में नाव के कप्तान शेख सुलेमान व चीफ ऑफिसर आदम भाई खिड़की से कूदने के कारण बच गए थे. शेख सुलेमान तैरते तैरते अलीबाग तक पहुंच गए. और वहां से उन्होंने मुंबई कार्यालय में तार करते हुए घटना की जानकारी दी. इसी बीच पांडु कोशा कोली नामक यात्री भी तैरते हुए मुंबई पहुंचा और उसने दुर्घटना की जानकारी मुंबई बंदरगाह के अधिकारियों को दी. इन दोनों यात्रियों के चलते ही इस घटना की जानकारी लोगों को सकी थी. अन्यथा रामदास नाव के इस भीषण दुर्घटना की जानकारी शायद ही कभी किसी को हो पाती.
रामदास नाव में अधिकतर लोग परल लालबाग गिरगांव परिसर के निवासी थे. यह लोग मूलतः कोकण के रहने वाले बताए जाते हैं. महाराष्ट्र व देश के इतिहास में जलमार्ग की यह भीषण दुर्घटना दर्ज की गई. रामदास नाव की दुर्घटना के बाद यात्री नियमों में बदलाव किए गए. वहीं दूसरी ओर रेवस बंदरगाह पर इस घटना को लेकर कोई जानकारी नहीं थी. 17 जुलाई 1947 के सुबह रेवस बंदरगाह से मुंबई की ओर रोजाना की तरह ताजी मछलियां लेकर छोटी-छोटी नौकाएं आ रही थी. सुबह लगभग 8:30 बजे के दौरान कुछ मछली पकड़ने वाले मछुआरे समुदाय के लोग मछलियां लेकर रवाना हुए. उस समय का वह माल ₹2000 कीमत का बताया जाता है. यानी कि आज की स्थिति में लाखों का माल लेकर मुंबई की दिशा की ओर यह मछुआरे रवाना हुए. रेवस बंदरगाह के पास जब उनकी नौकाएं पहुंचे तो उन्होंने एक चमत्कारी दृश्य देखा. समुद्र के ऊपरी भाग में असंख्य मछलियां व लोगों के शव तैरते हुए जा रहे थे.
कुछ लोग जान बचाने के लिए समुद्र में तैरने का प्रयास भी करते दिखाई दिए. यह सारा घटनाक्रम देखकर मछुआरों की इन टोलियों ने अपने माल को फेंक कर लोगों को बचाना व अपनी नाव में आश्रय देना प्रारंभ कर दिया. मानवीय जीवन के आगे अपने माल की परवाह ना करते हुए मछुआरों ने अपना मानवीय मूल्य प्रस्तुत किया. और रामदास नाव के डूबने की घटना के 75 लोगों को बचा कर उन्हें जीवनदान दिया.
रामदास नौका की दुर्घटना से पहले वर्ष 1927 में तुकाराम वा जयंती नाव इसी प्रकार से जल मार्ग में डूब गई थी. उस दुर्घटना में लगभग 2000 यात्रियों के मारे जाने की जानकारी भी मिलती है .यह सारी घटनाएं निश्चित रूप से प्रख्यात टाइटेनिक जहाज के डूबने का स्मरण कराती हैं. इन दोनों घटनाओं में अंतर की विशेष बात यह है कि टाइटैनिक जहाज के अवशेष खोजने के लिए लगभग एक 73 वर्ष खर्च किए गए. किंतु रामदास नाव के कुछ अवशेष दुर्घटना के लगभग 10 वर्ष अर्थात वर्ष 1957 में मुंबई के बेलॉर्ड पिअर समुद्र किनारे पर अपने आप आकर अटक गए. इस दुर्घटना कि कमोडोर मिल्स के नेतृत्व में जांच के लिए एक समिति भी बनाई गई थी. BSN कंपनी ने आगे जाकर सिंधिया कंपनी में अपना विलीनीकरण कर लिया. नाव् पर वायरलेस तकनीक ना होने की बात भी सिद्ध हुई थी. जिसके कारण बाद में दूरसंचार उपकरणों को यात्री नाव पर लगाना अनिवार्य कर दिया गया था. इसी घटना के चलते मछुआरों की पूर्णिमा परंपरा तक मछली मारने व समुद्र में जाने का प्रतिबन्ध भी सरकार ने लागू कर दिया.
दुर्घटना का समुद्री विश्लेषण मराठी मासिक ‘दर्यावर्दी’ने अपने अगस्त – सितम्बर 1947 के अंक में दो लेखों के माध्यम से किया. प्रख्यात चित्रकार रघुवीर मुलगावकर व दीनानाथ दलाल दोनों ने ‘दर्यावर्दी’ पत्रिका का मुख्यपृष्ठ तैयार किया.