अकोला(तेज़ समाचार के लिए अवेस सिद्दीकी) : जहां अकोला की जनता विविध प्रकार की नई समस्याओं से बुरी तरह जूझ रही है। ट्रैफिक व आवारा पशुओं के बाद स्थानीय जनता इन दिनों आवारा व खूंखार कुत्तों की समस्या से बुरी तरह जूझ रही है। आमजन के लिए जी का जंजाल बनी इस समस्या से निपटने के लिए न तो प्रशासन इच्छाशक्ति दिखा रहा है तथा न ही इस समस्या का पक्का तोड़ आम जनता को सामने नजर आता है।
इस कारण दिनों-दिन नगर में व आस-पास में बढ़ रही आवारा व खूंखार कुत्तों की फौज से जनता खौफजदा है, क्योंकि खूंखार कुत्ते अब आम जनता को काटने व डराने से ऊपर आदमखोर बनने की ओर अग्रसर हैं जो कि खौफनाक स्थिति है। इसके बावजूद प्रशासन इस समस्या से निपटने व जनता को राहत प्रदान करने की ओर कोई विशेष ध्यान नहीं दे रहा है। वहीं आवारा कुत्तों की नसबंदी को लेकर नगर निगम व पशु पालन विभाग में पेंच फंस गया है। वर्णनीय है कि पहले क्षेत्र में आवारा कुत्तों की संख्या बढऩे पर नसबंदी जैसी कवायद विभागीय स्तर पर शुरू की जाती थी परन्तु पिछले कई वर्षों से दोबारा इस मुहिम को कब छेड़ा गया था, नई पीढ़ी को तो स्मरण भी नहीं होगा।
यही कारण है कि नगर का कोई चौराहा, बाजार या गली शायद ही ऐसी बची होगी जहां आवारा व खूंखार कुत्तों की भरमार नजर न आए। इस पर भी आलम यह है कि आवारा कुत्ते अक्सर झुंडों के रूप में गलियों व बाजारों में बेखौफ घूमते हैं। जानकारी के अनुसार नगर में कुत्तों की संख्या का आंकड़ा एक हजार से ऊपर को छू चुका है जो कि निश्चित रूप से भयावह स्थिति है। बावजूद इसके इस समस्या से निपटने के लिए फिलहाल कोई भी विभाग मुस्तैदी दिखाता नहीं दिख रहा है।
नगर निगम व पशु पालन विभाग की आपसी खींचतान में पिस रही है जनता
चूंकि आवारा कुत्तों की समस्या पर काबू पाना नगर कौंसिल प्रशासन के अधीन आता है जबकि आवारा कुत्तों की नसबंदी पशु पालन विभाग का कार्य है परन्तु पशु पालन विभाग के पास महज पशु चिकित्सक व सहायक ही उपलब्ध, जबकि नसबंदी पर आने वाला खर्चा व कुत्तों की धरपकड़ हेतु पर्याप्त संसाधन का जिम्मा नगर निगम का है जिसे सरकार की ओर से फंड इस बाबत दिया जाता है। ऐसे में न तो निगम प्रशासन ने पिछले कई वर्षों से आवारा कुत्तों की नसबंदी के लिए पहल की तथा न ही पशु पालन विभाग। पशु पालन विभाग भी ढिलमुल रवैया अपनाए हुए है कि जब निगम अभियान शुरू करेगा तब नसबंदी की प्रक्रिया शुरू की जाएगी। ऐसे में 2 विभागों की आपसी खींचतान के बीच में जनता पिस रही है, जिसके लिए आवारा कुत्तों की फौज सिरदर्द बनी हुई है।
क्या कहता है नगर कौंसिल
कहा कि कुत्तों की नसबंदी निगम प्रशासन का नहीं अपितु वैटर्नरी अस्पताल का दायित्व है। इसके अतिरिक्त पशु पालन विभाग जो भी आवारा कुतों की धरपकड़ हेतु मैन पॉवर व अन्य सहायता की मांग करेगा वह मुहैया करवाई जाएगी।
क्या कहता है पशु पालन विभाग
इस संबंध में पशु पालन विभाग अनुसार उनका विभाग केवल कुत्तों की नसबंदी समय-समय पर सरकार अथवा प्रशासन के निर्देश जारी होने पर करता है परन्तु एक कुत्ते की नसबंदी पर 1000 से 2000 रुपए का खर्चा आता है। जिसका जिम्मा निगम प्रशासन का है कि वह इसके लिए फंड जुटाए। इसके बाद ही जाकर आवारा कुत्तों की नसबंदी की जाएगी।
क्या कहता है सेहत विभाग
इस संबंध में सिविल अस्पताल का कहना है कि सिविल अस्पताल में डॉग बाइटिंग के केसों में बढ़ौतरी हुई है। हालांकि डॉग बाइटिंग के अधिकांश मामले गर्मियों में अधिक व सॢदयों में कम आते हैं । जनवरी माह से दिसम्बर (अब तक) के महीनों में डॉग बाइटिंग के करीब 500से ऊपर मामले सामने आए हैं जिनका ईलाज किया गया है। इनमें से कई रैबीज के भी हैं जिनका उपचार पूरा कोर्स किया गया