बात साल-दो साल पुरानी है। मैं अपने एक पुराने मित्र से मिलने गया था। वह कुछ तनाव में दिखे। कुरेदने पर बताया कि उनकी मार्डर्न पुत्रवधु ने अपने लिए अलग कार की फरमाइश की है। पुत्रवधु को ब्यूटीपार्लर, शॅापिंग या फिर सहेलियों से मिलने जाना होता है। चंूकि पुत्रवधु को शहर में ही उपयोग के लिए कार की जरूरत थी अत: कहा गया कि टाटा नेनो ले देते हैं। लेकिन, वह नेनो के नाम से बिदक पड़ीं। पुत्रवधु का कहना था कि हुण्डई या मारूति की कोई सिडान चाहिए। मित्र ने बताया कि बहूरानी नेनो को सस्ती कार बताकर इसे अपने स्टेट्स के अनुरूप नहीं मान रही हंै। उच्च मध्यम वर्गीय परिवार वाले अपने मित्र की व्यथा सुनकर मुझे उस सवाल का जवाब मिल गया जो टाटा नेनो को लेकर पिछले समय से मन में उठ रहा था। धुंध साफ हो गई। मैं अब समझ पाया कि टाटा समूह का एक बेहतरीन प्रयास भारत में ही क्यों सफलता नहीं हो सका। टाटा नेनो के साथ जुड़ी विडम्बना देखिए, आए दिन डिस्काउंट, रिबेट और छूट के लिए दबाव डालने वाले हम लोग कार के मामले में अलग नजरिया रखते है। यहां सस्ती का अर्थ घटिया, स्तरहीन, अविश्वसनीय और कमजोर मान लिया जाता है।
अखबार के पहले पन्ने के एक कोने पर सिंगल कॉलम खबर छपी थी। मान कर चलें कि बहुत से पाठकों की नजर ही उस खबर पर न पड़़ी हो। जिन लोगों ने खबर पढ़ी होगी, उनमें से 90 फीसदी के मन में खबर पर किसी प्रकार की प्रतिक्रिया न आई हो। शेष 10 फीसदी में से आधे अधिक लोगों में ही अस्तित्व बचाए रखने जूझ रही टाटा नेनो के प्रति सहानुभूति अवश्य उमड़ी हो। खबर में कहा गया है कि सन् 2008 में लॉन्च हुई नेनो पर संकट के बादल दिख रहे हैं। जून माह में केवल एक नेनो कार का उत्पादन हुआ है। गत माह एक भी नेनो का निर्यात नही किया गया। अपने लॉंच से पहले ही सारी दुनिया में आकर्षण का केन्द्र बन गई रतन टाटा की ड्रीम कार-नेनो की मांग गायब हो जाने पर आश्चर्य है। टाटा मोटर्स ने कहा है कि नेनो का उत्पादन बंद करने के बारे में अभी कोई फैसला नहीं हुआ है। आटोमोबाइल क्षेत्र के विशेषज्ञों का मानना है कि टाटा मोटर्स के सामने सीमित विकल्प हैं। जैसे, नेनो का उत्पादन बंद करने की घोषणा कर दे अथवा कोई बड़ा बदलाव लाकर नेनो की रीलॉंचिंग का निर्णय ले। यह भी संभव है कि अगले कुछ वर्षों तक टाटा मोटर्स मांग पर ही नेनो सप्लाई का निर्णय ले सकती है। खास नेनो के लिए बनाए गए गुजरात के साणंद प्लांट में अब टाटा मोटर्स अपने अन्य नए मॉडलों का उत्पादन करने लगी है।
अपने आगमन से पहले नेनो ने दुनियाभर का ध्यान जिस तरह अपनी ओर खींचा, वह अभूतपूर्व था। बड़े-बड़े कार निर्माता हैरान थे कि मात्र एक लाख रुपये में कार दे पाना कैसे संभव है? नेनो की बुकिंग के लिए उमड़ी भीड़ मोटर साइकिल और कार बाजार के उन दिग्गजों की नींद उड़ा देने वाली थी जिन्हें नेनो से खतरा महसूस हो रहा था। लेकिन नेनो का जादू जिस तेजी से टूटा वह आश्चर्यजनक रहा। इसके लिए अनेक कारणों को जिम्मेदार माना जा रहा है। मसलन, पश्चिम बंगाल के सिंगूर में नेनो प्लांट के खिलाफ तृणमूल कांगे्रस जैसे राजनीतिक दलों की मोर्चाबंदी और विरोध के चलते प्लांट को गुजरात के साणंद में स्थानांतरित किए जाने से उत्पादन कार्यक्रम खडख़ड़ा गया। इससे एक लाख नेनो कार की आपूर्ति का कार्यक्रम 22 सप्ताह के विलम्ब से शुरू हो सका। समय रहते आपूर्ति नहीं हो पाने से प्रतिद्वंद्वियों और विघ्र संतोषी तत्वों को पर्दे के पीछे से नेनो के विरूद्ध नकारात्मक प्रचार का मौका मिल गया। यह प्रचारित किया गया कि एक लाख रुपये में कार के नाम से चार पहियाके वाला आटो रिक्शा दिया जा रहा है। नेनो खरीदने का मन बना रहे लोगों को उनके आसपास लोग हतोत्साहित करते रहे। यह टिप्पणी आम हो चली थी कि इससे अच्छा तो मोटर साइकिल अथवा सेकेण्ड हैंड आल्टो या मारूति 800 ली जा सकती है। आपूर्ति शुरू होने के कुछ माह के अंदर दो-तीन नेनो कारों में आग लगने की घटनाओं ने रही-सही कसर पूरी कर दी। एक आटोमोबाइल विशेषज्ञ का कहना है कि नेनो एक खामीरहित उत्पाद है। लगभग तीन लाख नेनो कारों में से मात्र तीन कारों में आग लगने से उसे खारिज नहीं किया जाना था। उधर, इस दुष्प्रचार को भी बल मिला कि कीमत कम रखने के लिए नेनो में सस्ते, घटिया और चीनी पुर्जे लगाए जा रहे हैं।
दुष्प्रचार का जवाब देने में टाटा मोटर्स की मार्केटिंग पूरी तरह से नाकाम रही। आटोमोबाइल सेक्टर के दिग्गज मानते हैँ कि दो-तीन नेनो कारों में आग लगने की घटनाओं को लेकर शुरू हुए नकारात्मक प्रचार का समय रहते सटीक जवाब देकर खरीददारों का विश्वास बनाए रखा जाना था। आखिर, टाटा समूह के प्रति भारत में गहरा भरोसा देखा जाता है। नेनो के नाकाम होने पर मोटिवेशनल स्पीकर डा. विवेक बिन्द्रा ने बड़ा सटीक और तथ्यपूर्ण विश्लेषण प्रस्तुत किया है। वह कहते हैं कि मीडिया ने नेनो के आगमन से पहले ही उसे वल्र्ड्स चीपेस्ट कार की जो टैग लाइन दे दी वही नेनो के लिए मुसीबत बन गई। यहां चीपेस्ट शब्द का उपयोग सस्ती यानी कम कीमत की बताने के लिए किया गया होगा। नेनो के मामले में चीपेस्ट से संदेश गया कि यह एक घटिया और अविश्वसनीय कार है। नेनो के मौजूदा मालिकों से बात कीजिए। उनमें से अधिकांश इसके प्रदर्शन से काफी संतुष्ट नजर आते हैं। कई लोगों ने माना कि नेनो पर रख-रखाव का खर्च न के बराबर है। कुछ नेनो कार मालिकों सवाल किया कि आपको दो लाख से भी कम कीमत पर कार चाहिए फिर उससे अपेक्षा बीस-तीस लाख रुपये वाली कार जैसी करना कहां तक सही हो सकता है? कम कीमत पर यह एक अच्छी कार है। टाटा मोटर्स ने इतनी कम कीमत पर काफी कुछ दे दिया। डा. बिन्द्रा आगे कहते हैं कि नेनो को बाजार में उतारते समय ध्यान छोटे मझौले शहरों के साथ ग्रामीण इलाकों टारगेट बाजार के रूप में रखा गया था। लेकिन विपणन रणनीतिकार भूल गए कि नेनो की क्षमता और डिजायन छोटे परिवारों और शहरी सडक़ों के लिए उपयुक्त है। आमतौर पर ग्रामीण परिवार बड़े होते हैं। वहां सडक़ें भी ठीक नहीं रहतीं। नेनो अपनी कद-काठी के चलते ग्रामीण क्षेत्रों में सम्भावित खरीदारों की आवश्यकता के अनुरूप नहीं मानी गई। नतीजा यह रहा कि नेनो ग्रामीण क्षेत्रों के ग्राहकों का विश्वास नहीं जीत सकी।
मीडिया की कृपा से चिपकी चीपेस्ट टैगलाइन के कारण भी इसे काफी नुकसान हुआ। कहा जाता है कि ब्रिटिश काल से ही एक हीनभावना शहरी आबादी में अक्सर देखी जाती रही है। यहां हैसियत का सच्चा-झूठा दिखावा बहुत आम बात है। पश्चिमी दुनिया में कार को किसी के स्टेट्स से जोड़ कर नहीं देखा जाता है। हमारे यहां सोच इससे भिन्न देखी जाती है। किसी के कपड़ों और कार से उसकी हैसियत आंकी जाती है। हमारे यहां कार खरीदते समय जरूरत से ज्यादा स्टेट्स दिखावे की मानसिकता का दबाव होता है। ऐसा लग रहा है कि इसी दबाव ने कार के सम्भावित ग्राहकों को नेनो से दूर रखने में अहम भूमिका निभाई है। बहरहाल, टाटा नेनो के भविष्य को लेकर जल्द ही कोई निर्णय लिए जाने की आशा बाजार में की जा रही है। दो माह पहले एक मीडिया रिपोर्ट में कहा गया था कि मांग कम हो जाने से डीलर्स ने नेनो के लिए आर्डर देना बंद कर दिया है। कहते हैं कि एक छोटी और सस्ती कार बनाने का विचार रतन टाटा के मस्तिष्क में उन मध्यमवर्गीय परिवारों को देख कर आया था जो अपने दुपहिया वाहन का उपयोग कार की तरह करते हैँ। दुपहिया वाहन पर सपरिवार सवारी करते हुए ऐसे लोग कई बार जोखिम उठाते हैं। रतन टाटा की नीयत पर संदेह का सवाल ही नहीं उठता। उनका मकसद मध्यम वर्ग के लोगों को एक सुरक्षित वाहन उपलब्ध कराना ही रहा होगा। लेकिन टाटा नेनो को वैसा प्रतिसाद नहीं मिला जिसकी अपेक्षा की जा रही थी। यह तय है कि भविष्य में भारतीय बाजार और उपभोक्ताओं के मिजाज को समझने के लिए नेनो एक सही उदाहरण मानी जाएगी।
अनिल बिहारी श्रीवास्तव
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