न तो वह गाल उस झन्नाटेदार तमाचे को कभी भूल पाएगा जिसके अंगुलियों की अपराध की सजा उसे मिली और न ही उन आंखों से वह दृश्य कभी ओझल हो सकेगा जो स्वयं उस दुल्हन के साहस की साक्षी हंै। एक विवाह समारोह में वरमाला रस्म के समय दूल्हे को वरमाला पहना कर दुल्हन ने स्टेज पर पैर टिकते ही पलट कर उस युवक को जोरदार तमाचा जड़ा जिसने अचानक प्रकट होकर दुल्हन को गोद में उठा लिया था। झापड़ खाकर बौखलाये युवक ने दुल्हन से पूछा, क्या हुआ? जवाब मिला, बद्तमीजी करते हो। जवाब सुनते ही युवक भाग खड़ा हुआ। दूल्हा तो हक्का-बक्का था ही। दुल्हन के तेवर देख वह युवक भी दुबक लिया जिसने दूल्हे का पहले ऊपर उठाया था। वीडियो में देखा जा सकता है कि स्वयं दूल्हा भी साथ खड़े अपने परिचित युवक से अनुरोध कर रहा था कि वरमाला के समय वह उसे ऊपर न उठाए।
इन दिनों सोशल मीडिया में वरमाला का यह वीडियो खूब देखा जा रहा है। लोग मजे ले रहे हैं। खास बात यह है कि दुल्हन के साहस की प्रशंसा की जा रही है। आखिर, वरमाला के दौरान अक्सर दिखाई देती हुड़दंग के दौरान यदि कोई बदमाशी कर बैठता हो तो इस तरह का जवाब देने का साहस कितनी दुल्हन कर पातीं होंगी? उक्त घटना से उन लोगों को अवश्य सबक मिला होगा जो अपने मित्रों और रिश्तेदारों के यहां विवाह समारोहों के दौरान वरमाला कार्यक्र्रम को वर-वधु के बीच अनावश्यक होड़ में बदलने के लिए उन्हें उठाने स्टेज पर आ धमकते हैं। जबकि ऐसे माहौल में अधिकांश दुल्हनों को असहज देखा जाता है।
हाल ही, एक विवाह समारोह में सम्मिलित होने का अवसर मिला। वरमाला कार्यक्रम में नजारा ही हट कर था। न शोर-शराबा था न ही झूमा-झटकी। मंच पर दूल्हा और दुल्हन मालाएं लिए खड़े थे। उनसे कुछ दूरी पर दो पंडित मंत्रोचारण कर रहे थे। विवाह समारोह में सम्मिलित लोग नीचे खड़े वरमाला रस्म का आनंद ले रहे थे। मंत्रोचारण सम्पन्न होते ही पंडितों ने इशारा किया और दूल्हा-दुल्हन ने एक-दूसरे के गले में माला पहना दी। लोगों तालियां बजा कर प्रसन्नता व्यक्त की। दोनों पक्ष के लोगों ने एक-दूसरे को बधाई दी। वरमाला की रस्म जिस शालीनता से सम्पन्न हुई और अवसर की गरिमा का ध्यान रखा गया उसकी लोगों ने जमकर प्रशंसा की। इस दौर के चलन से हट कर हुए ऐसे कार्यक्रम की वजह जाननी चाही तो बताया गया कि वर की मां और मामा, जो काफी सख्त किस्म के इंसान माने जाते हैं, ने पहले ही स्पष्ट कर रखा था कि वरमाला के समय मंच पर वर और वधु के अलावा कोई व्यक्ति नहीं होना चाहिए। यह अलग बात है कि वरमाला में ऐसी शालीनता और सादगी कुछ लोगों का पसंद नहीं आई होगी।
सोशल मीडिया में इस समय विवाह समारोहों के सैंकड़ों वीडियो भरे पड़े हैं। यूट्यूब पर ही ऐसे वरमाला रस्म के वीडियो सैंकड़ों की संख्या में होंगे जिन्हें देख हंसी आती है। अफसोस भी होता है। कुछेक पर शर्म महसूस हुई। इन वीडियो को देखकर लगता है कि कम लोग ही वरमाला रस्म के महत्व और उसकी गरिमा जानते- समझते हैं। अनेक वर-वधु खुद नहीं जानते की वरमाला रस्म का उद्देश्य क्या होता है। एक वीडियो में दोस्तों की सलाह पर दूल्हा ऐसा अकड़ और तन कर खड़ा हुआ कि दुल्हन उसे वरमाला पहना ही नहीं पा रही थी। उचक कर माला पहनाने की कोशिश में दुल्हन गिर पड़ी। एक अन्य वीडियो में साफ दिखाई देता है कि दूल्हा-दुल्हन को उठा लेने वाले लोग उनका वजन नहीं सम्भाल पा रहे थे। कहीं वरमाला का साइज इतना बड़ा देखने में आया कि वह दूल्हे के गले में टिक ही नहीं पाई, सरक कर नीचे जा गिरी। एक वीडियो में दूल्हे राजा इतना अकड़े-तने खड़े दिखाई देते हैं कि वह दुल्हन की ओर देख तक नहीं रहे थे। एक तुनक-मिजाज दूल्हा देखने को मिला। कम कद की दुल्हन जब दो-तीन प्रयासों के बाद भी उसके गले में वरमाला डालने में कामयाब नहीं हुई तो गुस्साए दूल्हे ने वरमाला तोड़ कर फेंक दी। वरमाला कार्यक्रम को हास्यास्पद बना देने के लिए हुड़दंगी ब्रिगेड के साथ दोनों पक्ष के बड़े-बूढ़े बराबरी से जिम्मेदार हैं जो आमतौर पर मौन दिखते हैं। यदि पहले ही वर-वधु को वरमाला का महत्व, रस्म की सादगी और गरिमा के विषय में बता दिया जाए तो अप्रिय स्थिति से बचा जा सकता है।
वरमाला और जयमाला एक ही हैं। जयमाल से जयमाला शब्द बना अर्थात विजय प्राप्त करने पर विजयी को पहनाने की माला। वह माला जिसको स्वयंवर के समय कन्या उस व्यक्ति के गले में डालती थी जिसे उसने पति के रूप में चुना है। कालान्तर में इसी जयमाला को वरमाला कहा जाने लगा। वरमाला या जयमाला का महत्व इसी तथ्य से समझा जा सकता है कि प्राचीन काल से ही स्त्री को अपना पति चुनने का अधिकार प्राप्त था। स्त्री द्वारा किसी पुरूष को माला पहनाने मात्र से मान लिया जाता था कि दोनों का विवाह हो गया। पृथ्वीराज चौहान और राजकुमारी संयोगिता का विवाह केवल एक माला पहनाये जाने से सम्पन्न मान लिया गया था। श्रीराम द्वारा शिव का धनुष तोड़ दिए जाने पर सीताजी ने भी उन्हें माला पहनाई थी। द्रौपदी ने भी अर्जन को माला पहनाई थी। यह एक प्राचीन रस्म है जो हमारी संस्कृति और परम्परा से जुड़ी हुई है। जयमाला या वरमाला के हमारे वैदिक साहित्य में अनेक संदर्भ हैं। कहीं यह रस्म फेरों के बाद कराई जाती है और कहीं फेरों से पहले। वरमाला रस्म प्रेम की प्रतीक है। यह वैवाहिक संबंध की पवित्रता को दर्शाती है। कहा जाता है कि जयमाला या वरमाला कार्यक्रम को फूलों की मालाओं का आदान-प्रदान मात्र मानना उचित नहीं होगा। वरमाला से यह संदेश जाता है कि वर और वधु जीवनसाथी के रूप में एक-दूसरे को स्वीकार कर जीवनभर साथ रहने के लिए तैयार हैं। वधु स्नेहपूर्वक वरमाला वर को पहनाती है और वर भी वधु को वरमाला पहना कर उसे जीवनसाथी के रूप में अपनाता है। एक खास बात यह है कि समूचे भारत में जयमाला या वरमाला की रस्म अपनी मजबूत मौजूदगी दर्शाती रही। दक्षिण भारत में माला तुलनात्मक रूप से अधिक मोटी होती है। उत्तर भारत में इसे थोड़ा पतला देखा गया है। आमतौर पर वरमाला तैयार करने में गुलाब,चमेली और अन्य सुगंधित फूलों का उपयोग किया जाता है। फिल्मों का प्रभाव मानें या समय के साथ आया बदलाव लेकिन यह भी एक तथ्य है कि पहले सिर्फ वधु ही वर को माला पहनाती थी, आज वर भी वधु को माला पहनाता है।
स्पष्ट है कि वरमाला रस्म के अपने मायने और महत्व है। इसमें स्नेह, प्रेम, समर्पण, निष्ठा और विश्वास सब कुछ छलकता है। वैवाहिक बंधन में बंधने जा रहे वर और वधु में एक-दूसरे के प्रति आदरभाव होता है। लेकिन, शोर-शराबे, हुड़दंग और अनावश्यक जोर आजमाइश क्या प्रेमरस में पगी भावनाओं की मौन अभिव्यक्ति का मार्ग अवरूद्ध नहीं कर देती है?
अनिल बिहारी श्रीवास्तव
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