बुंदेलखंड के ललितपुर की कवियत्री डॉ. ऋतू दुबे तिवारी की दो नई कवितायें ख़ास तेजसमाचार डॉट कॉम के पाठकों के लिए ! डॉ. ऋतू दुबे तिवारी National Institute of Social Communications, Research and Training, इंदिरापुरम में सहायक प्राध्यापिका पद पर कार्यरत हैं. वह राष्ट्रीय स्तर की कुशल मंच संचालिका हैं.
01 ) – नश्वर सौंदर्य—
उसने मुझे देखा,उसे मैं ख़ूबसूरत लगी
उसने मुझे सुना वो मेरा मुरीद हो गया
और जब मैं अपने विचारों के लिए लड़ी
तो वो मुझ पे मर मिटा …
मेरा शरीर, मुस्कान और आँखें ही
मेरा सोंदर्य नहीं…
मैं इससे कहीं ज्यादा हूँ ..
तुम समय निकालो और खोजो मुझे
मेरे विचार,सोच और मेरा जुझारूपन
मुझे आकर्षक बना देता है
और भर देता है मुझे उस आलौकिक नूर से
जिसके आगे मेरा नश्वर सौंदर्य कुछ भी नहीं.
02 ) – अधिकार —
कल रात यूँ ही जब
खिड़की से झांक के देखा आसमान को,
आंखों में भर गया उसका बूंद-बूंद रिसता प्रेम!
गर्म गालों से बहती वो बूँदे जो,
गर्दन के छोर पर जा कर विलुप्त सी हो गईं..
यूँ कि सोख लिया हो उन्हें
मेरे सीने की गर्माहट नें..
या छुपा लिया हो आसमान का प्रेम
दुनियाँ की नज़रों से!
वैसे ही जैसे एक औरत न जाने कितने
ही प्रेम निवेदन घबरा कर ,नज़रें चुरा कर
बिसार देने का प्रयास करती है!
बिना उस प्रेम की पैदाइश का सच जाने,
बिना सच्चे और झूठे का फ़र्क किये!
प्रेम ठुकराना ही तो सिखाया है समाज ने उसे!
रक्त और बिस्तर से परे और भी रिश्ते होते हैं,
ये सुनती तो है मगर,
दुनियाँ यकीं करने कहाँ देती है
उसे इस सत्य की सत्यता पर!
क्योंकि एक औरत सिर्फ़ सपने देख सकती है,
उन्हें पूरे होते देखना उसकी नियति में नहीं!
उसके प्रेम-गीत निर्झर में गुनगुनाने के लिए हैं,
उसको प्रेम करने का अधिकार कहां?