मुजफ्फरनगर-खतौली. शनिवार को मुजफ्फरनगर के खतौली रेलवे स्टेशन के पास हुए कलिंग-उत्कल एक्सप्रेस ट्रेन हादसे की जांच में रिपोर्ट में कई चौकानेवाले खुलासे हुए है. सबसे अहम बात यह है कि इस ट्रैक को मरम्मत किया जाना था, लेकिन ट्रैक ब्लॉक की परमिशन नहीं दी गई. यदि मात्र 20 मिनट का ब्लॉक दे दिया जाता, तो यह हादसा नहीं होता और इतने लोगों की जान नहीं जाती है. यह भी सामने आया है कि यह पूरी तरह से स्थानीय रेलवे प्रशासन की गंभीर लापरवाही थी.
ज्वाइंट इंवेस्टिगेशन टीम की रिपोर्ट में कई चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं. साथ ही इस बात का भी खुलासा हुआ है कि हजारों-लाखों लोगों को सफर कराने वाली रेल के ट्रैक पर किस कदर लापरवाही बरती जाती है. ज्वाइंट रिपोर्ट में दावा किया गया है कि हादसा रेलवे लाइन के कटे होने और उसमें गैप बन जाने के कारण हुआ, लेकिन ऐसा होने के पीछे जो वजहें बताई गई हैं, जो काफी चौंकाने वाली हैं.
– सुरक्षा सिस्टम में भयंकर चूक
जिस ट्रैक से सौ किलोमीटर से भी ज्यादा की रफ्तार से मुसाफिरों से भरी ट्रेन गुजरनी हो, वहां रेलवे के मेंटेनेंस इंजीनियर किस तरह लापरवाही से ट्रैक को काट देते हैं. जिम्मेदार अफसर इससे बेपरवाह अनजान बने रहते हैं, जो रेलवे के सुरक्षा सिस्टम की एक भयंकर चूक को उजागर कर रही है. इतनी सूचना को जिस बेपरवाही से आगे पास किया जाता है, कंट्रोल रूम में बैठे कर्मचारी भी उसी लापरवाही के अंदाज में अनदेखा कर देते हैं. इसका खामियाजा खतौली ट्रेन हादसे की शक्ल में है. जब ज्वाइंट जांच कमेटी खतौली में घटना स्थल पर पहुंची, तो इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में जो खुलास किया उसके अनुसार, एक्सीडेंट की सूचना मिलने के बाद पांच तकनीकी अफसरों की ज्वाइंट टीम घटनास्थल पर पहुंची. इसमें अलग-अलग डिपार्टमेंट के अफसर शामिल थे. दिलचस्प बात यह है कि जांच के बाद हादसे के लिए जिस विभाग को जिम्मेदार ठहराया गया, उसका एक अफसर भी टीम में शामिल रहा, लेकिन उसने रिपोर्ट पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया.
ज्वाइंट रिपोर्ट के मुताबिक इंजन समेत शुरू के पांच कोच तो सुरक्षित निकल गए थे. इंजन से सातवें कोच S-10 और छठे कोच S-9 एक्सीडेंट के बाद एक-दूसरे से 295 मीटर की दूरी पर मिले. लगातार 11 कोच डीरेल हुए, जिसमें कोच S-1 से S-9 के साथ ही पार्ट कार और एसी कोच B-1 भी शामिल हैं. डीरेल हुए S-2 कोच पार्ट कार के ऊपर चढ़ा हुआ था. एक्सीडेंट की वजह प्वाइंट ऑफ ड्रॉप है, जो तीसरे और चौथे भाग के बीच मिला. यहां ज्वाइंट इंवेस्टिगेशन टीम ने पाया कि इसी पीओडी पर चल रहा काम हादसे की वजह बना. क्योंकि यहां रेल लाइन का एक सिरा हेक्सा ब्लेड से कटा हुआ था. इसे जोड़ने के लिए नट बोल्ट लगाए जाने थे. एक सिरे पर छेद कर दिया गया था और दूसरे सिरे पर नट बोल्ट लगाने के लिए छेद किया जाना था, जिसके लिए चॉक से रेल लाइन पर निशान बनाया गया था. साथ ही लेवल बनाने के लिए रेल लाइन के नीचे एक लकड़ी का टुकड़ा भी लगाया गया था. मतलब यह हुआ कि मरम्मत के लिए रेल लाइन को काटा गया था और इसे जोड़न की कवायद चल रही रही थी कि ट्रेन पूरी रफ्तार से आ गई.
जांच कमेटी को प्वाइंट ऑफ ड्रॉप यानी घटना की जगह से नट बोल्ट, पॉवर हेक्सा, ड्रिल मशीन और स्लेज हेमर मिला. सबसे खास बात यह है कि जांच कमेटी को पटरी पर चेतावनी के लिए लगाया जाने वाला रेड बैनर फ्लैग घटनास्थल पर फोल्ड मिला. अगर काम कर रहे लोगों ने इस फ्लैग को ट्रैक पर लगा दिया होता, तब भी यह हादसा टल सकता था. रिपोर्ट में कहा गया कि जेई मोहनलाल मीणा के बयान के मुताबिक ट्रैक पर परमानेंट वे के जेई प्रदीप कुमार ग्लूड ज्वाइंट का रिपेयर कर रहे थे और इसके लिए 20 मिनट का ब्लॉक मांगा गया था. अगर ये ब्लॉक मिल जाता, तो यह हादसा टल सकता था. एसपीएम ग्राफ के मुताबिक जांच कमेटी ने हादसे के वक्त ट्रेन की स्पीड 107 किलोमीटर प्रति घंटा पायी. ज्वाइंट कमेटी ने अपनी जांच रिपोर्ट मे लिखा कि हादसे की वजह रेल लाइन का कटा हुआ होना है. दायीं तरफ की रेल लाइन को काटा गया था, जिससे उसमें गेप बन गया. इस गैप को फिश प्लेट लगाकर नट बोल्ट से जोड़ा जाना था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और ट्रेन हादसे की शिकार हो गई.