अकोला (अवेस सिद्दीकी): शादीयो के सिजन मे पनीर का परचलन बढ जाता है,जिसके मुद्देनजर पनीर निर्माता कंपनीया नए हतकंडे अपना रही है सूत्रो द्वारा प्राप्त जाणकारी के अनुसार शहर एवं ग्रामीण क्षेत्रो मे सिंथैटिक पनीर का उपयोग किया जा रहा है गए 12 फरवरी को पडोस प्रांत के गुरदासपुर के फैक्टरी में छापेमारी के दौरान सिंथैटिक पनीर का भारी जखिरा बरामद हुआ है उस पर भी तुर्रा यह है कि संबंधित फैक्टरी के मालिक ने हैरान करने वाला खुलासा किया है कि वह प्रतिदिन 12 क्विंटल सिंथैटिक पनीर बनाता एव इसकी सप्लाई पंजाब के साथ पड़ोसी प्रांतों में भी कीरता था। इस रहस्योद्घाटन से पनीर जैसी खाद्य सामग्री जो कि डेली नीड में आता है,
वहीं शादी-समारोहों में पनीर की अक्सर डिमांड व भारी खपत रहती है, ऐसे में इससे तैयार लजीज व्यंजन मानवीय अंगों को भारी आघात पहुंचाते है इन हानिकारक पदार्थों से सेहत पर बुरा प्रभाव पड़ता है तथा नियमित सेवन से मानवीय शरीर की पाचन शक्ति डैमेज हो सकती है। सामान्य पनीर की जगह सिंथैटिक पनीर बनाने में घातक रसायनों एव सामग्री का प्रयोग किया जाता है। हालांकि इसकी लागत कम होती है परन्तु तैयार करने व बेचने वाला अच्छ मुनाफा कमाता है क्योंकि आम लोगों को इसकी गुणवत्ता एव पहचान संबंधी आसानी से पता नहीं चलता। इससे 90 प्रतिशत रूप से आंखें बंद करके आसानी से मार्कीट एव लोगों में खपत हो जाती है।दुसरे प्रांत के सिंथैटिक पनीर की फैक्टरी का मामला प्रकाश में आने के बाद अब राज्य के हर व्यक्ति की नजर अपने घर में उपलब्ध दूध-दही और पनीर पर टिकी है कि कहीं यह नकली या मिलावटी तो नहीं? कहीं यह कैमिकल से तैयार तो नहीं किया गया? क्योंकि सुत्रो की माने तो प्रांत में अभी बहुत सारी ऐसी फैक्टरियां चल रही हैं जोकि सिंथैटिक पनीर तथा सिंथैटिक दूध बनाती हैं जिनकी अभी तक अन्न औषध विभाग तथा पुलिस प्रशासन को सूचना तक नहीं है इन परिस्थितियों में जनता को स्वास्थ्य के मामले में सावधान होकर जागरूक होना होगा कि कहीं उनके घर में उपलब्ध दूध, दही, पनीर आदि सिंथैटिक तो नहीं? प्रांत में दूध एवं पनीर को लेकर अनेकों आशंकाएं जताई जा रही हैं। ऐसे में मौजूदा समय में संतुलित आहार का उत्पाद माने जाने वाले दूध की शुद्धता को लेकर कई सवाल खड़े हो गए हैं। कालांतर में जो दूध मानवीय शरीर को ताकतवर बनाता था, वही आज शरीर में अनेक प्रकार की बीमारियों की जड़ें पैदा कर रहा है, क्योंकि दूध बेचने के गोरखधंधे में जुटे लोग मात्र चंद रुपयों के लिए इसमें विभिन्न केमिकल मिला इसे जहिरीला बना देते है। इस संदर्भ मे पुलीस एवं खाद्य औषधी प्रशासन द्वारा पनीर एवं दूध निर्माता तथा विक्रेताओ पर छापेमारी कर पनीर एवं दूध की जांच करणी चाहीए।
वहीं विशेषज्ञ इस बात को लेकर भी हैराण हैं कि इतना दूध ही प्रांत एवं जिले में नहीं है जितने दूध के उत्पाद आदि बनाए जा रहे हैं। ऐसे में स्पष्ट है कि कहीं न कहीं फल-फूल रहे इस गोरखधंधे में झोल तो अवश्य है। यानि जनता के लिए जिंदगी या खुली मौत है।
तो दुसरी ओर खाद्य एवं औषधी प्रशासन की उदासीनता का यह आलम है की जिले मे धडल्ले से अन हेल्थी फूड बेचा जारहा है साथ ही प्रतिबंधीत खाद्य पदार्थो की बिक्री भी जोरो पर है सुत्रो की माने तो इन विक्रेताओ द्वारा खाद्य एवं औषध विभाग के अधिकारियो को मोटी रकम पहूंचाई जाती है जिस्के चलते कारवाई से परहेज कीया जाता है
अगर दूध के बाद सिंथैटिक पनीर यानी कि नकली पनीर बनाने की बात की जाए तो नकली पनीर का धंधा करने वाले लोग 150 रुपए में 5 किलोग्राम तक पनीर तैयार कर लेते हैं। जानकारी के अनुसार थोड़े से दूध में सोडियम बाइकार्बोनेट डाल कर उसके घोल में वैजीटेबल ऑयल मिलाया जाता है तथा फिर उसे बेकिंग पाऊडर से ‘फाड़कर’ कंटेनर में जमा दिया जाता है जो कि कुछ घंटे बाद पनीर के रूप में तैयार हो जाता है। नकली पनीर सब्जी में या फिर चाइनीस फूड में पकने के बाद नकली होने का अंदाजा बिल्कुल नहीं लगाया जा सकता।
क्या कहते हैं जिला अन्न औषध अधिकारी
अन्न औषध अधिकारी नितीन नवलकर ने जिले मे चल रहे विभिन्न खाद्य पदार्थो के संदर्भ मे कारवाई से पल्ला झाडते हुए बताया कि इस संदर्भ मे अब तक कोई शिकायत नही आई तथा विभाग मे कर्मचारियो की कमी के चलते उचित कारवाई मे देरी होती है,मिलावटखोरी के विरुद्ध मुहिम तेज की गई है, जांच के लिए विभिन्न व्यापारिक प्रतिष्ठानों एव दुकानों पर पनीर एवं दूध के सैंपल एकत्रित किए जा रहे हैं।

