अगर कोई आपसे कहे कि मेरी गलतियों पर भी चुपचाप रहा करो, वरना मैं तुम्हारी ही पोल खोल दूंगा! क्योंकि मेरे पास तुम्हारी ‘कुंडली’ है! ऐसे कथन या धमकी सरासर ब्लैकमेलिंग की श्रेणी में आते हैं. अक्सर ‘भाई टाइप के लोग’ (माफिया-डॉन-मवाली आदि) ऐसी ही शब्दावली का इस्तेमाल करते हैं. इसलिए अच्छे-अच्छे तुर्रम भी उनसे डरते हैं. लेकिन जब किसी राज्य या राष्ट्र का प्रमुख ही ऐसी धमकी भरी वाणी से अपने विरोधियों को डराने लगे, तो इसे क्या कहा जाए?
भारत के प्रधानसेवक नरेंद्र मोदी ने उत्तरप्रदेश के चुनाव में भरी जनसभा में विपक्षी दलों के नेताओं को ‘तुम्हारी कुंडली मेरे पास है’… जैसे शब्दों में धमकी दी थी. लगभग इन्हीं शब्दों में महाराष्ट्र के मुख्यसेवक देवेंद्र फडणवीस ने यहां के विपक्ष को धमकी दी है. इसकी जानकारी खुद पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने मीडिया को देकर चौंका दिया. पृथ्वीराज का महाराष्ट्र के ‘महाराजा’ पर गंभीर आरोप है कि जब भी हम किसी मामले की जांच की मांग करते हैं, तो वे (महाराजा) हमें धमकाते हुए ब्लैकमेल करने की कोशिश करते हैं कि आपकी ‘कुंडली’ मेरे पास है. क्या लोकतंत्र में ऐसे ‘महाराजा’ द्वारा विरोधियों को डराना-धमकाना शोभा देता है?
यह सच है कि हर राज्य में सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच कभी भी किसी भी मुद्दे पर जमती नहीं है. सिर्फ सभी निर्वाचित जनप्रतिनिधियों की वेतनवृद्धि के मुद्दे पर ही ये सफेदपोश एकजुटता दिखाते हैं और अपने वेतन-भत्ते रातो-रात बढ़वा लेते हैं. जनता और राज्य की समस्याएं और राजकोषीय घाटे के प्रति तब पक्ष-विपक्ष के सारे आंख वाले भी ‘धृतराष्ट्र’ बन जाते हैं. तब राजशाही की कुछ ‘गांधारियां’ भी अपनी आंखों पर जबरन पट्टियां चढ़ाकर शासक-राजा की गलतियों के प्रति अंधी बन जाती हैं. महाभारत काल से यही चला आ रहा है. महाराष्ट्र के महाराजा-काल में भी ऐसी ही ‘मंडली’ सामने आई है, जो विरोध करने वालों की ‘कुंडली’ दबा कर बैठी है.
समझ में नहीं आता कि विरोधियों की ‘कुंडली’ दबाकर रखने में इन महाराजाओं को क्या फायदा मिल रहा है? अगर अपने राज में ये जनता का वाकई भला चाहते हैं, तो साफ-साफ बोल क्यों नहीं देते? …और एक ही बार में उनकी सारी पोल (कुंडली) खोल क्यों नहीं देते? क्या विरोधियों की कुंडली दबाकर ये सत्ताधीश उन्हें ब्लैकमेल नहीं कर रहे हैं? क्या इस प्रकार की ‘डॉन मानसिकता’ से राज्य का भला हो सकता है? अगर पिछली सरकार में हुए भ्रष्टाचारों की ‘कुंडली’ इन के पास है, तो उसे दबा-छुपाकर वाकई ये मंडली जनता के साथ अन्याय और धोखा कर रही है. अब तो इन्होंने खुद को ‘पारदर्शी सरकार’ कहलाना भी बंद कर देना चाहिए.
दूसरी ओर इनके ‘धनुषधारी’ सहयोगी भी इन पर ब्लैकमेल करने के आरोप लगा चुके हैं. इस तरह राज्य के दोनों-तीनों पक्ष, ‘महाराजा’ की सरकार पर ब्लैकमेलिंग करने का आरोप लगा रहे हैं. इससे आम जनता और राज्य के काम प्रभावित हो रहे हैं. हमें तो समझ में नहीं आता कि ये शासक हैं या ब्लैकमेलर? कुछ सफेदपोश, राज्य के नौकरशाहों की शिकायत कर उन्हें भी पदोन्नति से वंचित करने की चेतावनी देते हैं. मजा यह कि अपने ‘महाराजा’ का आदेश भी अब कोई नहीं मानता. औरों की छोड़िए, यहां के चौथे नंबर का ‘शैक्षणिक सिपहसालार’ भी अपने ‘मुखिया’ की बात नहीं सुनता. ऐसे में अफसरों और कर्मचारियों को क्यों दोष दिया जाए? पूरा शासन-प्रशासन, इस अंधी सरकार में बहरा हो गया है. राज्य का ‘महाराजा’ ही जब राष्ट्र के ‘प्रधान महाराजा’ की तरह ‘फेंकू और धमकीबाज’ निकल जाए, …तो इस राज्य का भगवान ही मालिक होगा! उम्मीद है कि हमारे देवेंद्र राजा, अपने ‘बॉस’ (नरेंद्र महाराजा) के पदचिन्हों पर चलने से बचेंगे!
सुदर्शन चक्रधर 96899 26102