सुदर्शन चक्रधर महाराष्ट्र के मराठी दैनिक देशोंनती व हिंदी दैनिक राष्ट्र प्रकाश के यूनिट हेड, कार्यकारी सम्पादक हैं. हाल ही में उन्हें जीवन साधना गौरव पुरस्कार से सम्मानित किया गया. अपने बेबाक लेखन से सत्ता व विपक्ष के गलियारों में हलचल मचा देने वाले सुदर्शन चक्रधर अपनी सटीक बात के लिए पहचाने जाते हैं. उनके फेसबुक पेज से साभार !
इस सप्ताह हमने गणतंत्र दिवस भी मनाया और ‘गुंडा-तंत्र’ भी देखा. गणतंत्र-पर्व से पहले चार राज्यों के ‘तंत्र’ का ‘जौहर’ कर जाना इन सूबों की सरकारों के लिए शर्मनाक नहीं, तो और क्या था? व्यवस्था ने उन लोगों के सामने घुटने टेक दिए, जो 800 साल पहले दिवंगत हो चुकी ‘देवी’ की ‘आन-बान-शान’ के लिए कुर्बान होने पर आमादा तो दिखते हैं, मगर अपने ही घर-परिवार/समाज में ‘कन्या भ्रूण’ को ‘कुर्बान’ करने से भी नहीं चूकते हैं ! विडंबना देखिए कि जिन चार राज्यों में नारी सम्मान की बड़ी-बड़ी डींगें हांकी गयीं, उन्हीं राज्यों में पुरुषों की तुलना में ‘स्त्री जन्मदर’ काफी कम है! जरा सोचिए कि ऐसा क्यों है? जहां ‘कन्या-भ्रूण’ को जन्म लेने से पहले ही कुचल-मसल दिया जाता हो, वहां ‘दिवंगत महारानी’ के सम्मान और राजपूताना स्वाभिमान का सवाल उठाना भी बेमानी लगता है! यकीन मानिए, यह सब राजनीति है. सफेदपोश सत्ताधीशों का ‘वोट-बचाओ’ षडयंत्र है! जिन्हें देश-प्रदेश में चैन से रहना नहीं है, वे ही सड़कों पर टायर जला कर या ‘तिरंगा रैली’ में पाकिस्तानी झंडा लहरा कर ‘अमन के अपहरण’ की कुत्सित कोशिश करते हैं!
गणतंत्र दिवस के अवसर पर मध्यप्रदेश के शुजालपुर में उत्साहियों ने ‘तिरंगा रैली’ निकाली, किंतु इसमें कुछ समाजकंटकों ने पाकिस्तानी झंडा भी लहरा दिया! इससे बवाल मच गया. तनाव फैल गया. उधर, उत्तरप्रदेश के कासगंज में गणतंत्र दिवस के दिन ही ‘तिरंगा यात्रा’ के दौरान दो समुदायों में झड़प और भिड़ंत हो गई. विवाद इतना बड़ा कि पुलिस को फायरिंग करनी पड़ी. जिसमें एक युवक की मृत्यु हो गई और कई घायल भी हुए. फिर क्या था? राजनीति होने लगी. स्थानीय सांसद और विधायक भी धरने पर बैठ गए. कर्फ्यू लग गया. सुरक्षा बल के जवान बुलाने पड़े. वह तो अच्छा है कि उत्तरप्रदेश में विधानसभा के चुनाव हो चुके हैं, अन्यथा यहां भी हालात ‘पद्मावत’- प्रभावित चार राज्यों जैसे हो जाते! अब तो यह तय लगता है कि जिन राज्यों में चुनाव होने वाले हैं, वहां-वहां सांप्रदायिक झड़पें और हिंसक घटनाएं थमने वाली नहीं हैं. बल्कि जाति-समुदाय और धर्म के सम्मान से इन घटनाओं को जोड़ने की सियासत तेज होती जाएंगी. इसलिए सतर्क हमें ही रहना होगा!
गणतंत्र दिवस से पहले दो दिनों तक आधा देश जलता रहा और प्रशासन तमाशा देखता रहा. सवाल यह है कि एक फिल्म के विरोध के नाम पर देश के आधा दर्जन राज्यों के तंत्र को ‘गुंडा-तंत्र’ ने ‘हाईजैक’ कैसे कर लिया? क्या इसमें उन राज्य-सरकारों की मूक सहमति नहीं थी? क्या एक समाज के ‘वोट बैंक’ को बचाने के लिए सत्ताधीश – सफेदपोशों का यह पाप, माफ करने योग्य है? कुछ मल्टीप्लेक्सों में आग लगाना, वहां तोड़-फोड़ करना, सैकड़ों गाड़ियां फूंक देना और स्कूल के मासूम बच्चों की बस पर पथराव करना …. कहां का न्याय है? क्या यह सुप्रीम कोर्ट के आदेश और संविधान की धज्जियां उड़ाना नहीं है? क्या कानून- व्यवस्था को हाथ में लेकर आम जनता का पिसा जाना, उन्हें नुकसान पहुंचाना जायज है? क्या सरकारी संरक्षण में इसे ‘आतंकी प्रदर्शन’ नहीं कहा जाना चाहिए? क्या अब भी आप उक्त घटनाओं में गलिच्छ राजनीति की बदबू महसूस नहीं करते? अगर करते हैं, तो ऐसी राजनीति और राजनेताओं का धिक्कार क्यों नहीं करते?
ऐसी घटनाएं चाहे कासगंज की हो या शुजालपुर की, अथवा देश के सबसे बड़े सिनेमाई संग्राम की, … सब की जड़ में देश की वह ‘सियासत’ घुसी हुई है, जो आज भी अंग्रेजों की ‘फूट डालो और राज करो’ की नीतियों पर चल रही है! यह ‘वोट बैंक’ बनाने, उसे बरकरार रखने या खींचने की पॉलिसी है मित्रों… इसे हवा देने वालों से सावधान रहना होगा! अन्यथा ऐसे बवाल- विवाद – तमाशे होते ही रहेंगे …. और सम्मान- स्वाभिमान के नाम पर लोकतंत्र को हर बार सूली पर चढ़ाया ही जाता रहेगा! आज चार- पांच राज्यों में अराजकता फैलाई गई, 2019 तक पूरे देश को इस आग में झोंका जाने लगे, तो आश्चर्य नहीं होगा! सौ बात की एक बात यही है कि यह सब देश के असली मुद्दों- समस्याओं से जनता का ध्यान भटकाने की बड़ी साजिश है! मगर इसे कब समझेंगे हम?
अगर बह रही अमन की गंगा, बहने दो!
मत फैलाओ देश में दंगा, रहने दो!
भगवा- हरे रंग में न बांटो हमको —
मेरे घर में एक तिरंगा, रहने दो!! – सुदर्शन चक्रधर
बहोत वर्षो पहले एक फिल्म आयी थी मुगले आज़म अपने ज़माने के हिसाब से सबसे महँगी फिल्म मानी जाती है
ऐतिहासिक पार्श्वभूमि पर बनी फिल्म थी।
आज भी कई इतिहासकार फिल्म के कथानक को सही नहीं मानते लेकिन उससे फिल्म की महानता पर फर्क नहीं पड़ता फिल्म खूब चली और आज तक चल ही रही है।
अब वर्तमान दौर में एक दूसरे कथानक पर नजर डाली जाय।
इतिहास में देश की स्वतंत्रता में क्या हुवा सब जानते है लईकिन तात्कालिक नेटयों को जिस तरह से मंडित किया जा रहा है उसमे व् ८०० साल पहले की जौहर कर चुकी देवी को लेकर माहौल ख़राब करने वालो में समानता है दोनों ही इतिहास को झुठलाकर स्वयंभू इतिहास का निर्माण करना चाहते है। जिसका मुख्यकारण की इनका अपना कोई इतहास नहीं।
और वह तथाकथित इतिहास बनाने का सबसे आसान तरीका गुंडा राज है।
हिंदुस्तान के मशहूर शायर राहत इन्दोरी जी का एक शेर है जो की अपने आप में सारी कहानी बयां करता है।
सुनें कि नई हवाओं की सौहवत विगाड़ देती है
कबूतरों को खुली छत बिगाड़ देती है
जो जुर्म करते हैं इतने बुरे नहीं होते
सजा न देके अदालत बिगाड़ देती है
मिलाना चाहा है इंसा को जब भी इंसा से
तो सारे काम सियासत विगाड़ देती है
@sanjay sharma तेजसमाचार अपने सम्माननीय बौद्धिक पाठकों की मर्यादित टिप्पणी का स्वागत करता है.