
नेताओं के इस ‘गिरगिटिया’ रवैये को आखिर क्या कहा जाए? खुद राहुल गांधी ने मोदी से गले-मिलन के बाद लोकसभा में कहा, ‘यह है हिंदू होने की पहचान.’ जबकि उन्होंने कुछ दिन पहले ही अपनी कांग्रेस को ‘मुस्लिम पार्टी’ कहा था. मतलब साफ है कि हमारे तमाम राजनेता अपने चुनावी फायदे के लिए ही ‘हिन्दू-मुस्लिम’ का राग अलापते हैं. लेकिन कब तक ये लोग दोनों समुदायों के बीच नफरत की ज्वाला भड़काकर एक-दूसरे से लड़वाते रहेंगे? आखिर कब तक यह देश ‘हिन्दू-मुस्लिम’ के भंवरजाल में उलझा रहेगा? राहुल गांधी ने लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर हुई चर्चा के दौरान भी ‘हिन्दू-हिन्दू’ किया. ठीक है कि उन्होंने भाजपा और मोदी पर तंज कसते हुए ऐसा कहा. किंतु उनका ‘हिन्दू-हिन्दू’ करना एवं कहना जरूरी था क्या? क्या किसी गंभीर राजनेता को यह शोभा देता है? ऐसे में मोदी-शाह और राहुल में क्या फर्क रह गया? क्या भाजपा-कांग्रेस की सांप्रदायिक सियासत से देश का सत्यानाश नहीं हो रहा है? अगर कोई एक दल ऐसी नफरत की राजनीति करता है, तो दूसरा उस आग में घी क्यों डालता है? आखिर कौन रोकेगा इन्हें? …और कब?
सवाल है कि क्या लाख कोशिशें करने के बाद भी यह देश ‘हिन्दू पाकिस्तान’ बन सकता है? ….नहीं, कभी नहीं! फिर ये शशि थरूर, मणिशंकर अय्यर, सीताराम येचुरी, गिरिराज सिंह, और सलमान खुर्शीद जैसे नेताओं की जमात क्यों इस देश में भ्रम फैला रही है? क्यों बार-बार देश की जनता को बरगलाया जा रहा है? ये वही लोग हैं, जिन्होंने नरेंद्र मोदी को राज करने का मौका दिया. अमित शाह को इतना कद्दावर बनाया. संघ को लोकप्रिय करवाया. उन्होंने ही मोदी को हिंदुओं के बीच ऐसा रक्षक बनाया कि समझदार हिंदुओं की बुद्धि भी इस जिद्द में फंस गई कि देश भले ही ‘सीरिया’ बन जाए, मगर नरेंद्र मोदी अब अनिवार्य है. याद रखिए कि ये वही लोग हैं, जिन्होंने 71 साल पहले मोहम्मद अली जिन्ना को मुसलमानों का रहनुमा मानकर ‘अखंड हिंदुस्तान’ का विभाजन करवाया और पाकिस्तान बनवा डाला था!
अब विपक्ष के ‘हीरो’ राहुल गांधी की बात. मुझे कई पाठक फोन पर कहते हैं कि आप हमेशा नरेंद्र मोदी की बुराई करते हो, तो कभी-कभार राहुल गांधी की तारीफ भी करके बताइये. इसका मौका आज मिला है. राहुल ने संसद में बहुत अच्छा भाषण दिया. उनके हाव-भाव, भाषाशैली और मोदी सरकार पर प्रहार करने के अंदाज भी अच्छे लगे, लेकिन बाद में उनकी कुछ हरकतों ने ही उनके किए-कराए पर पानी फेर दिया. एक तो उन्होंने ‘राफेल डील’ पर फ्रांस के राष्ट्रपति का नाम लेकर झूठ बोला, जिसका खंडन खुद फ्रांस सरकार ने कर दिया. मजा यह कि उन्होंने अपने भाषण में खुद को ‘पप्पू’ भी कहा. फिर भाषण खत्म करते ही प्रधानमंत्री की कुर्सी तक जाकर उन्होंने मोदी को ‘उठो-उठो’ कहा. जब मोदी नहीं उठे, तो राहुल झट से उनके गले लिपट गए. जिसे भाजपा वाले ‘जादू की झप्पी’ और ‘गले पड़ गए’ बोल रहे हैं. उनकी मंशा/भावना भले ही अच्छी रही होगी, लेकिन उनकी इस हरकत पर लोकसभा अध्यक्ष ने भी नाराजगी जता दी.
….और हद तो तब हो गई, जब अपनी सीट पर जाकर उन्होंने सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया को ‘प्रिया प्रकाश वारियर’ वाले अंदाज में आंख मार दी. उनका यह व्यवहार ऐसा लगा, मानो सब को मूर्ख बना दिया हो! क्या लोकतंत्र के मंदिर में राहुल का आंख मारना उचित था? क्या वे ‘अंखियों से गोली मारे…’ (फ़िल्म ‘दूल्हे राजा’ में गोविंदा-रवीना) जैसा मनोरंजन करवा रहे थे? नतीजा यह हुआ कि राहुल पर अब ‘अपरिपक्व’ होने और बचपना करने का ठप्पा और लग गया है. साथ ही मोदी के गले मिलने (गले पड़ने) वाली हरकत पर भी देश भौंचक है.
मशहूर शायर डॉ. बशीर बद्र ने कहा है –
“कोई हाथ भी ना मिलाएगा, जो गले मिलोगे तपाक से,
ये नए मिजाज का शहर है, जरा फासले से मिला करो।”
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