बड़ी अजीब स्थिति में देश आ फंसा है. मामला नौकरी का हो, शिक्षा का हो या प्रमोशन का… अथवा नागरिकता का…! भारत देश में ‘घोड़ों को घास’ खाने मिल रही है और ‘गधों को च्यवनप्राश’ खिलाया जा रहा है. जो असली हकदार हैं, उन्हें हाशिए पर डाला जा रहा है और जो नकली हैं, उन्हें बगलगीर किया जा रहा है. कुछ उदाहरणों से यह बात स्पष्ट होती है कि भारत में ‘बुराई का बोलबाला’ और ‘अच्छाई का मुंह काला’ हो रहा है. तभी तो असम में खतरनाक संगठन ‘उल्फा’ का चीफ परेश बरुआ नामक एक भगोड़ा आतंकवादी अभी तक भारतीय नागरिक बना हुआ है, जबकि देश के पांचवें राष्ट्रपति रहे फखरुद्दीन अली अहमद का परिवार भारतीय नागरिकता सूची (एनआरसी ड्राफ्ट) से बाहर हैं. उसी तरह सीमा पर लड़ रहे हमारे कुछ जांबाज जवानों (सैनिकों) को भी इस भारतीय नागरिकता लिस्ट से बाहर रखा गया है. और तो और, असम में सत्ताधारी दल भाजपा का एक विधायक अनंत कुमार के साथ ही एक पूर्व महिला मुख्यमंत्री भी भारतीय नागरिक नहीं हैं!
यह कैसी विडंबना है कि अब 40 लाख अवैध घुसपैठियों अथवा बांग्लादेशियों की सूची में असली और सच्चे भारतीयों का नाम भी शामिल कर लिया गया है. दिल्ली में पत्रकारिता कर रहे असम के मूल निवासी संदीप चौधरी तो भारतीय नागरिक हैं, किंतु असम में रह रहे उनके माता-पिता और भाई-बहन भारतीय नागरिक नहीं हैं. मतलब साफ है कि ‘एनआरसी’ (राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर) बनाने में कई गलतियां सरकार से हुई हैं. जबकि इसके लिए सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में 55 हजार कर्मचारियों की टीम ने 1200 करोड़ रुपए खर्च कर उक्त सूची बनाई. इस ड्राफ्ट में जिन 40 लाख लोगों को भारतीय नागरिक नहीं माना गया, उनमें करीब 32 लाख मुसलमान और 8 लाख हिंदू हैं. इस तरह हिंदू-मुस्लिम करने के पीछे चुनावी राजनीति (यानी वोट बैंक) एक बड़ा कारण है. केंद्र और राज्य की भाजपा सरकारें ‘बांग्लादेशी घुसपैठियों’ का बवाल मचा कर 2019 के चुनाव के लिए हिंदू वोटों को साधना चाहती है. इसके विपरीत ‘बंगाली बाघिन’ कहलाने वाली ममता बनर्जी मुसलमान वोटों को पाने के लिए तमाम हथकंडे अपना रही हैं और केंद्र को गृहयुद्ध की धमकियां दे रही हैं.
जबकि केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह कई बार बोल चुके हैं कि एनआरसी का ड्राफ्ट अंतिम नहीं है और इससे बाहर गए लोगों को अपनी भारतीय नागरिकता साबित करने का पूरा पूरा अवसर दिया जाएगा. अर्थात अपने ही देश का नागरिक साबित करने के लिए हमें ही प्रमाण जुटाने होंगे. अगर महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, बिहार, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, उत्तरप्रदेश और कश्मीर में ‘एनआरसी’ का फार्मूला लागू किया गया, तो देश के इन राज्यों में कम से कम तीन या चार करोड़ घुसपैठिए (अवैध बांग्लादेशी) पाए जाएंगे. बीच-बीच में ये अवैध बांग्लादेशी हमारे-आपके शहरों-कस्बों से पकड़ाए भी जाते हैं. फिर सरकार इनको जेलों में रखकर पालती है. मुफ्त में खिलाती-पिलाती है. क्योंकि बांग्लादेश की सरकार इन्हें अपना नागरिक मानने से इनकार कर देती है. इसलिए अगर कुछ ‘भक्तों’ को यह लग रहा होगा कि इन सभी दो-तीन करोड़ बांग्लादेशियों को भारत देश से बाहर खदेड़ दिया जाएगा, तो यह उनकी गलतफहमी है. किसी भी ’56 इंची’ छाती वाले में इतनी हिम्मत नहीं है कि वह सीमा पर ले जाकर इन घुसपैठियों को उनके देश में धकेल सके…!
इस बीच ‘विकिलीक्स’ ने एक बड़ा खुलासा करते हुए बताया है कि इन बांग्लादेशी घुसपैठियों को संरक्षण देने और उन्हें अपना ‘वोट बैंक’ बनाने में कांग्रेस पार्टी और उसकी सुप्रीमो सोनिया गांधी का बड़ा योगदान है. अब कांग्रेस इसका खंडन-मुंडन कर रही है, जबकि भाजपा इसे भी चुनावी मुद्दा बना रही है. लेकिन सच यही है कि भाजपा सरकार ने यह मुद्दा पूरी तरह 2019 के चुनाव के लिए ही उठाया है. इसमें एक कटु-सत्य यह भी है कि इन्हीं 40 लाख घुसपैठियों के कारण ही असम में 15 से 20 प्रतिशत बेरोजगारी बढ़ी है. यानी वहां भी ‘गधों को च्यवनप्राश’ खाने मिल रहा है. मोदी सरकार को अगर हिंदुओं की इतनी ही चिंता है, तो वह कश्मीर से विस्थापित कश्मीरी पंडितों को उनके मूल निवास में बसाने के लिए गंभीर प्रयास क्यों नहीं कर रही है? क्यों उन्हें उनके हक (अधिकार) से वंचित रखा जा रहा है? देश के ये ‘घोड़े कब तक घास’ खाते रहेंगे? जरा सोचिए….
राष्ट्रकवि स्व. ‘नीरज’ ने कहा था –
जो लूट ले कहार ही दुल्हन की पालकी,
हालत यही है आजकल हिंदुस्तान की ।
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