सुदर्शन चक्रधर महाराष्ट्र के मराठी दैनिक देशोंनती व हिंदी दैनिक राष्ट्र प्रकाश के यूनिट हेड, कार्यकारी सम्पादक हैं. हाल ही में उन्हें जीवन साधना गौरव पुरस्कार से सम्मानित किया गया. अपने बेबाक लेखन से सत्ता व विपक्ष के गलियारों में हलचल मचा देने वाले सुदर्शन चक्रधर अपनी सटीक बात के लिए पहचाने जाते हैं. उनके फेसबुक पेज से साभार !
चार साल पहले ‘चाय’ से चली चर्चा ‘गाय’ होते हुए ‘विकास’ कर गई…. और अब ‘पकौड़े’ पर आकर ठहर गई! बेरोजगारों को मिल गया एक नया रास्ता…. क्योंकि ‘पकौड़ा’ बन गया हमारे देश का ‘राष्ट्रीय नाश्ता’! वाकई इस पकौड़े का शतशः आभार है, ….क्योंकि इसी पर अब देश के करोड़ों बेरोजगारों का भार है! इसीलिए हे इंजीनियरिंग, डॉक्टरी, ग्रेजुएट, एमबीए आदि-इत्यादि करने वालों, अपनी-अपनी डिग्रियों पर मारो हथौड़े! ….और बिनधास्त बेचो पकौड़े! वैसे भी आप लोगों की डिग्रियां अब किसी काम नहीं आएंगी, …क्योंकि वह तो पकौड़े संग चटनी खाने-चाटने में ही बतौर रद्दी चली जाएंगी! इसीलिए मां-बाप का लाखों रुपया अपनी उच्च शिक्षा में खर्च करने वाले युवा मित्रों,…. अपनी बेरोजगारी के जख्मों पर और ना बरसाओ कोड़े, …और बेचने लगो पकौड़े!
आप माने या न मानें, लेकिन कटु-सत्य यही है कि अब यह पकौड़ा, ‘राष्ट्रवादी सरकार’ के राष्ट्रवादी विकास का ‘राष्ट्रीय चेहरा’ बन चुका है. इसकी गूंज सिर्फ गांव-गलियों में नहीं, बल्कि सड़क से लेकर देश की संसद तक में सुनाई दे रही है. रेडियो, टीवी स्टूडियो से लेकर बड़े-बड़े कवि सम्मेलनों तक में इसकी चर्चा हो रही है. हमें विश्वास है कि भविष्य में ‘सार्क सम्मेलन’ और ‘यूएन की बैठक’ में भी इस पर जरूर सार्थक चर्चा होगी. इसीलिए पकौड़े को अब कमजोर मत समझिए. वह कोई मामूली नहीं है. उसके भरोसे तो अब बड़े-बड़े डिग्रीधारी डॉक्टरों, इंजीनियरों, ग्रेजुएटों या एमबीए वालों का पेट-परिवार चल सकता है. हर साल दो करोड़ बेरोजगारों को नौकरी मिले, या ना मिले… लेकिन इस पकौड़े से करोड़ों युवाओं को रोजगार मिल सकता है!
इस सप्ताह हमारा देश के कई शहरों-महानगरों में जाना हुआ. लगभग सभी शहरों में कई कांग्रेसी पकौड़ा तलते-बेचते नजर आए. हमने उत्सुकतावश पूछा, “भाई, ये पकौड़े आप लोग क्यों बेच रहे हो? सरकार की यह योजना तो सिर्फ बेरोजगारों के लिए ही है!” वे बोले,- “श्रीमान, चार साल से हम भी बेरोजगार बैठे हैं! अब पकौड़ा नहीं बेचेंगे, तो क्या करेंगे?” मतलब साफ है कि इस पकौड़े ने दलगत राजनीति को दल-दल से निकाल कर उनके भी दिल-से-दिल मिला दिए हैं! फिर भी एक बड़े (थके-हारे) कांग्रेसी ने पकौड़े बेचने वालों की तुलना भिखारी से कर दी, तो संसद में ‘शाही आवाज’ गूंजी,- “पकौड़ा बेचने में कोई शर्म नहीं! इससे बड़ा पुण्य का कोई कर्म नहीं! क्योंकि इस देश में जब एक ‘चाय वाला’ प्रधानमंत्री बन सकता है, तो भविष्य में कोई पकौड़े वाला राष्ट्रपति भी बन सकता है!” जय हो इस ‘पकौड़ा पॉलिटिक्स’ की!
यह कैसी विडंबना है मित्रों….! कि मां बाप कहते हैं उच्च शिक्षा लो, ऊंचे-ऊंचे पदों वाली नौकरी करो! मगर सरकार कहती है कि तुम बेरोजगार लोग सिर्फ पकौड़ा तलो! क्योंकि अब हमने (सरकार ने) सुशिक्षित बेरोजगारों को ‘सरकारी दामाद’ बनाना छोड़ दिया है! ….और सारी नौकरियों को ‘आरक्षण तंत्र’ से जोड़ दिया है. जिनके पास होगा ‘सर्टिफिकेट आरक्षण का’… वही मजा ले सकता है सरकारी तिजोरी के भक्षण का! वैसे भी सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर महाराष्ट्र सरकार उन 11हजार700 शासकीय कर्मचारियों को नौकरी से बेदखल करने जा रही है, जो बोगस जाति प्रमाणपत्र (एससी-एसटी) बनवा कर ‘सरकारी दामाद’ बने थे. दो-दो दशकों से सरकारी नौकरी करने वाले ये लोग अब पकौड़ा बेचने के सिवा और क्या करेंगे? राष्ट्र और महाराष्ट्र में नौकरी भर्ती भी बंद है. उसके लिए भी सुशिक्षित बेरोजगार जगह-जगह आंदोलन कर रहे हैं. जयपुर में सरकारी चपरासी बनने के लिए इंजीनियर-एमबीए भी कतार में लग रहे हैं! ऐसी हो गई है हमारी ‘पकौड़ा-शिक्षा!’ अब तो यह भी डर है कि चाय वालों का ‘वोट बैंक’ बनाने के बाद ये लोग कहीं ‘पकौड़ा वालों का वोट बैंक’ तो नहीं बना लेंगे? …तो ऐसे में, अगर भविष्य में समोसा वालों, दारू वालों और पान-गुटखा वालों का भी नंबर आ जाए, तो कोई आश्चर्य नहीं होगा! – सुदर्शन चक्रधर 96899 26102