सुदर्शन चक्रधर महाराष्ट्र के मराठी दैनिक देशोंनती व हिंदी दैनिक राष्ट्र प्रकाश के यूनिट हेड, कार्यकारी सम्पादक हैं. हाल ही में उन्हें जीवन साधना गौरव पुरस्कार से सम्मानित किया गया. अपने बेबाक लेखन से सत्ता व विपक्ष के गलियारों में हलचल मचा देने वाले सुदर्शन चक्रधर अपनी सटीक बात के लिए पहचाने जाते हैं. उनके फेसबुक पेज से साभार !
असली नाम तो उसका है आसुमल हरपलानी, लेकिन धर्म की दुकान चलाने के लिए वह बन गया आसाराम! मगर, कर्म से है वह झांसाराम, …जो आज भारत के माथे पर ‘कलंक’ की तरह चस्पा है. संत के चोले में लिपटा यह बदमाश, असंत, पाखंडी, पापी, धूर्त, मक्कार, ढोंगी, कुकर्मी, दुष्कर्मी और बलात्कारी साबित हो चुका है. मरते दम तक जेल में ही पड़ा रहेगा यह बूढ़ा बाबा. अगर हाईकोर्ट कोई राहत दे दे, तो बात और होगी. उसके अनुयायियों बनाम अंधभक्तों को यही उम्मीद है कि उनका कथित निर्दोष ‘परमपूज्य बापू’ छूट जाएगा, जबकि भारत के 99 फीसदी लोग अब उसे बापू, संत या महाराज मानने से इनकार कर चुके हैं. क्योंकि वह तो संत के भेष में राक्षस निकला! अगर सच्चा संत होता, तो अपनी नाबालिग शिष्या के साथ कुकर्म कैसे करता? छी: ! जरा भी शर्म नहीं आई इस बुड्ढे-खूसट को!
‘गीतोपदेश’ है कि ‘जब पाप का घड़ा भर जाए, तो वह फूटता ही है.’ झांसाराम के साथ भी यही हुआ. इसी झांसाराम का एक घोषवाक्य है कि ‘ईश्वर के सिवाय कहीं भी मन लगाया, तो अंत में रोना ही पड़ेगा.’ …और ऐसा ही हुआ. वह ईश्वर-भक्ति छोड़ हवस का पुजारी बना, तो मृत्यु तक उम्रकैद की सजा सुनते ही अदालत में सबके सामने रो पड़ा! आखिर जेल जाने की उसकी इच्छा भी पूरी हो गयी. मगर ‘अब पछताए होत क्या, जब चिड़िया चुग गई खेत!’ कभी साइकिल के पंक्चर बनाने वाले और टपरी पर चाय बेचने वाले आसाराम ने आखिर कैसे देश-विदेश में फैलाया 400 आश्रमों का मकड़जाल? कैसे बन गया वह 10 हजार करोड़ की संपत्ति का मालिक? क्या हरपलानी ने जमीनें नहीं हड़पी? न जाने कितने मासूमों -अनुयायियों -सेवादारों का दिल दुखाया होगा इसने! इसके कुकृत्यों और कर्मकांडों को देख-सुन-पढ़ कर देश की जनता बोल रही है कि इस पापी को तो फांसी होनी चाहिए थी! या फिर इस कथित बापू को किसी ‘टापू’ पर ले जाकर कोड़ों से मारना चाहिए था! मगर कानून इसकी इजाजत नहीं देता.
बहरहाल, इस निर्लज्ज पाखंडी के असंख्य अनुयायी आज भी इसकी तरफदारी कर रहे हैं. लोगों को फोन करके अथवा ‘व्हाट्सऐप ग्रुप’ पर मैसेज भेज कर अपने ‘आका’ को निर्दोष बता रहे हैं. पिछले 24 दिसंबर को हमने इसी ‘चक्रव्यूह’ में पाखंडी बाबा वीरेंद्र दीक्षित की ‘सेक्स जेल’ के विश्लेषण में इसी धूर्त आसाराम के जोधपुर केस का मात्र जिक्र किया था. तब इसके देश भर के 253 अनुयायियों ने हमें फोन कर-कर के 3 दिनों तक परेशान किया था. जोधपुर की अदालत का फैसला इन सभी अंधभक्तों के मुंह पर झन्नाटेदार तमाचा है! अब सब अपने ‘लाल हो चुके गाल’ सहला रहे हैं. उसके छूट जाने की आस में मन बहला रहे हैं. किंतु कटु -सत्य यही है मित्रों… कि आसाराम जैसे लोग ही भारतीय संत परंपरा और लोगों में उनके प्रति आस्था का फायदा उठाते हैं. वे धर्म की आड़ में अधर्म करके अपने सफेद चोले के नीचे अपने आपराधिक कृत्य को ही नहीं छुपाते, बल्कि अपनी पैशाचिक प्रवृत्तियों का पोषण भी करते हैं. हमारे देश की भोली लड़कियों -नारियों में धार्मिक प्रवृत्ति अधिक होती है. इसी का फायदा ऐसे झांसाराम उठाते हैं!
इन ‘झांसारामों’ के नाम कुछ भी हो सकते हैं. ये किसी भी धर्म या मजहब के हो सकते हैं. रामरहीम, नित्यानंद, भीमानंद, रामपाल, वीरेंद्र दीक्षित हों अथवा लखनऊ के मदरसे का काजी हो… या दिल्ली का मौलाना शाहबाज खान! पकड़े जाने से पहले तक ऐसे बाबा या मौलाना आस्था और धर्म का आडंबर खड़ा कर अपने पीछे ‘अंधभक्तों’ की भीड़ जुटाते हैं. अपनी लोकप्रियता की चमक से इतराते हैं. तब राजनेता भी इनके चरणों में गिरते दिखते हैं. यही राजनेता उन्हें सत्ता का वैभव प्रदान करते हैं. तब ऐसे ही धूर्त और मक्कार बाबा, अपने शिष्यों की नजर में ‘भगवान’ जैसा स्थान पाकर अपने घृणित कृत्यों को अंजाम देते रहते हैं. किन्तु जब से ऐसे पापी-पाखंडी पकड़े जाने लगे हैं, उन पर कानूनी शिकंजा कसा जाने लगा है, तब से इनके यौन शोषण से पीड़ित लड़कियां -महिलाएं हौसले के साथ सामने आने लगी हैं. इन सबके बावजूद लगता नहीं कि समाज में ऐसे ‘झांसारामों’ का प्रभाव जल्दी खत्म होगा. इसलिए सब से यही अपील है कि ऐसे फर्जी संतों के चंगुल में जाने से खुद भी बचें और अपनी बहू-बेटियों को भी बचाएं!