सुदर्शन चक्रधर महाराष्ट्र के मराठी दैनिक देशोंनती व हिंदी दैनिक राष्ट्र प्रकाश के यूनिट हेड, कार्यकारी सम्पादक हैं. हाल ही में उन्हें जीवन साधना गौरव पुरस्कार से सम्मानित किया गया. अपने बेबाक लेखन से सत्ता व विपक्ष के गलियारों में हलचल मचा देने वाले सुदर्शन चक्रधर अपनी सटीक बात के लिए पहचाने जाते हैं. उनके फेसबुक पेज से साभार !
2014 में बात शुरू हुई थी ‘सबका साथ सबका विकास’ से. मगर 2018 आते – आते बात पहुंच गयी… ‘हमारा विकास सबका विनाश’ तक! यह विनाश सिर्फ राजनीतिक धरातल पर ही नहीं, सामाजिक – आर्थिक और संस्कारों का भी हो रहा है. तभी तो देश के कई राज्यों में महापुरुषों की मूर्तियां तोड़ी जा रही हैं, तो कुछ राज्यों में सत्ताधारी नेताओं- विधायकों द्वारा अफसरों को पीटा जा रहा है. सत्ता के उन्माद में किए जा रहे ये सारे पाप जनता देख रही है. समझ रही है. लेकिन इन सत्ताखोरों को अपनी गलतियां अभी नहीं दिख रही है. वे ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’ के फार्मूले पर चल रहे हैं. मगर भविष्य में जब सत्ता की यह लाठी इनके हाथ से छूट जाएगी, तब वही लाठी उनके सिर पर पड़े बिना नहीं रहेगी!
त्रिपुरा में ‘लाल किले’ को ढहा कर ‘कमल’ क्या खिला, भगवा-वीरों ने पूरे प्रदेश में कहर बरपा दिया. उसके नेताओं – कार्यकर्ताओं ने खुलेआम अभद्रता और गुंडागिरी का प्रदर्शन किया. पूरे राज्य में उन्माद फैलाया गया. हिंसा की गई. आखिर क्यों ? क्या मिला लेनिन की मूर्तियां तोड़ने से ? हालांकि रूसी क्रांति के नेता व्लादिमीर लेनिन का भारत से कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन उनके विचारों पर वामपंथी दल चल रहे हैं. त्रिपुरा में सत्ता के उन्मादियों ने लेनिन की दो मूर्तियां तोड़ीं, फिर तमिलनाडु में समाज सुधारक और द्रविड़ आंदोलन के संस्थापक ईवी रामास्वामी पेरियार की मूर्ति क्षतिग्रस्त कर दी. फलस्वरुप कोलकाता में वामपंथी छात्रों ने जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी की प्रतिमा पर कालिख पोत कर उसे क्षतिग्रस्त कर दिया. फिर तो देश भर में यह सिलसिला चल पड़ा. कहीं बापू, कहीं बाबा और कहीं महाबली की मूर्तियां विखंडित की गईं. लानत है कि हम अपने ही महापुरुषों की मूर्तियां, अपने ही एक गलत कदम के चलते तुड़वाने लगे!
जरा सोचिए,…. जब हम ही मूर्तियां तोड़ेंगे, तो भारत कैसे जोड़ेंगे? यहां मूर्तियां मायने नहीं रखतीं. विचार मायने रखते हैं. आदर्श और श्रद्धा-आस्था मायने रखती हैं. जिस तरह बापू या बाबा या मुखर्जी के विचारों को कोई हटा-मिटा नहीं सकता, उसी तरह पेरियार और लेनिन के विचारों को आप सत्ता की लाठी या बुलडोजर चला कर ध्वस्त नहीं कर सकते! अगर आप, औरों के विचारों को कीचड़ समझते हैं, तो उस पर पत्थर फेंकने से उसके छींटे आपकी उज्जवल-धवल कमीज पर भी आ गिरते हैं ….और फिर आप ‘दागदार’ कहलाने लगते हैं! कहां तो भारत जोड़ने की बात हुई थी, मगर अब तो सत्ता के ‘पिलन्टू’ ही भारत तोड़ने पर आमादा दिख रहे हैं. बहिष्कार होना चाहिए इनका! कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए इन्हें!
अब सत्ता के नशे में चूर कुछ राज्यों के सत्ताधारियों की करतूतें भी देखें. दिल्ली की ‘आप’ सरकार के दो विधायकों ने पिछले दिनों मुख्य सचिव को पीट दिया. दोनों विधायक गिरफ्तार हो गए. बिहार में भाजपा के एक नेता ने सरेआम डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट को पीट दिया. कुछ नहीं हुआ. महाराष्ट्र के नागपुर में उमरेड के बीजेपी विधायक के सामने उसके गुर्गों ने भरी सड़क पर एक सब इंस्पेक्टर से मारपीट की. गुर्गों पर मामला बना, विधायक का कुछ नहीं बिगड़ा! सवाल है कि क्या यह लोकतंत्र, ऐसे ही ‘गुंडा-तंत्र’ के भरोसे चलेगा? कितना भी संसद में हंगामा कर लो, विधानसभा ठप कर लो, सत्ता के मद में मदहोश ये ‘सत्ताखोर’ अपनी हरकतों से बाज नहीं आएंगे! अगर जनता समझदार है, तो वही इनकी सत्ता की लाठी को अपने वोटों की ताकत से तोड़ सकती है. तभी भारत बचेगा. जय हिंद!
– सुदर्शन चक्रधर 96899 26102