सुदर्शन चक्रधर महाराष्ट्र के मराठी दैनिक देशोंनती व हिंदी दैनिक राष्ट्र प्रकाश के यूनिट हेड, कार्यकारी सम्पादक हैं. हाल ही में उन्हें जीवन साधना गौरव पुरस्कार से सम्मानित किया गया. अपने बेबाक लेखन से सत्ता व विपक्ष के गलियारों में हलचल मचा देने वाले सुदर्शन चक्रधर अपनी सटीक बात के लिए पहचाने जाते हैं. उनके फेसबुक पेज से साभार !
गणतंत्र दिवस से ‘बजट दिवस’ के बीच मात्र 5 दिनों का अंतराल था. यह काल शासकों के लिए ‘राजधर्म’ निभाने का होता है, मगर अफसोस! कि हमारे राजनेताओं ने इस दौरान न तो राजधर्म निभाया, न गणतंत्र के मानकों को! उत्तरप्रदेश के कासगंज में जो कुछ हुआ, उससे पूरा देश शर्मसार हो गया. लोकतंत्र पर ‘कलंक’ लग गया, किंतु ‘राजहठ’ वाले ‘प्रधानसेवक’ के चेहरे-माथे पर जरा-सी शिकन तक नहीं आयी. वे अपने ‘मन की बात’ कहते रहे और आम बजट बनवाते रहे! …और जब उनका बजट आया, तो उसमें भी वही ‘लालीपाप’ नए-नए शब्दों/ योजनाओं के साथ थमाए गए, जो विगत 4 साल से ये देते आ रहे हैं! सपने दिखाने, उम्मीदें बढ़ाने और झुनझुना बजाने की कला में ये ‘भाषणबाज’ प्रवीण हो चुके हैं! इन्हें जनता की अवस्था और देश की कुव्यवस्था दिखाई नहीं दे रही. दिख रहा है तो सिर्फ 2019 का आम चुनाव!
हम इनके चुनाव जीतने की कला और कुशलता के विरोधी नहीं हैं. देश में कोई सक्षम विकल्प नहीं होने के कारण ही ये राज कर रहे हैं. लेकिन उन्होंने कम से कम ‘राजधर्म’ तो निभाना चाहिए! वैसे, 16 साल पहले जब 2002 में इन्होंने राजधर्म नहीं निभाया, तो भला अब इनसे राजधर्म निभाने की उम्मीदें कैसे की जाए? …और ऐसे में ये अपने मातहत कार्यरत ‘राजयोगी’ को ‘राज-धर्म’ कैसे सिखा पाएंगे? इनकी पार्टी ने उत्तरप्रदेश में करीब साल भर पहले ही ‘अपराध मुक्त प्रदेश’ का नारा देकर चुनाव जीता था. तब लगा था कि भगवाधारी योगी, ‘यादवी’ और ‘मायावी’ राज से बेहतर शासन-प्रशासन चलाएंगे. मगर ‘मठ’ चलाने और शासन चलाने में बहुत फर्क होता है मित्रों…! अतः इनके योगी फेल हो गए, फ्लॉप हो गए! यूपी में गणतंत्र पर ‘गुंडा-तंत्र’ हावी हो गया! अपराधियों पर पुलिस का न कोई खौफ़ रहा, न नियंत्रण! यहां कानून-व्यवस्था का ऐसा तेल निकला कि राज्यपाल ने ही कासगंज की हिंसा और दंगे को ‘यूपी का कलंक’ बता दिया!
बड़ा ही चुभता हुआ सवाल है यह कि क्या ये लोग 2019 के लिए अपना वोट बैंक मजबूत करने ही नफरत फैलाने और लाशें बिछाने की सियासत कर रहे हैं? क्या ‘कासगंज कांड’ उसी का नतीजा है? क्या उसी के चलते चंदन गुप्ता की मौत हुई? और क्या उसी कारण नौशाद के पांव में गोली लगी? आखिर कौन हैं कासगंज के कसूरवार? हमें तो लगता है कि ये सफेदपोश राजनेता ही उत्तरप्रदेश के जरिए नफरत की आंधी और सांप्रदायिकता की आग को पूरे देश भर में फैलाने की साजिश कर रहे हैं, ताकि 2019 में ये लोग वोटों की फसल काट सकें! सतर्क रहना होगा देश को ऐसे तत्वों से, जो जनता के दिलो-दिमाग में सांप्रदायिकता का उन्मादी जहर डालते हैं, … और इसी कारण निर्दोष चंदन या अखलाक को बलि का बकरा बना दिया जाता है! यकीन मानिए, ऐसी घटनाओं में बड़ी-बड़ी सांप्रदायिक ताकतें पर्दे के पीछे ‘गेम’ खेलती रहती हैं! इनके खेल में जो फंस गया, वह ‘नफरत के धर्म का ध्वज’ उठा लेता है! अपने बच्चों और जवान होते किशोरों को इनके हाथों का खिलौना बनने से अब रोकना ही होगा! अन्यथा ये नफरत के सौदागर, निर्दोषों की लाशें बिछा कर उस पर अपनी घिनौनी राजनीति करते ही रहेंगे!
इस देश में अब यह भी डर लगने लगा है कि कब आपके हाथों में लहराता तिरंगा, माथे पर लगा तिलक, चेहरे पर बढ़ी दाढ़ी या सिर पर लगी टोपी,… मौत को दावत दे बैठे! क्योंकि यहां तो नफरत ही ‘धर्म’ बन चुका है! ऐसे नफरतवादी तत्व, उन भूखे जानवरों की तरह मासूमों-निर्दोषों पर टूट पड़ते हैं, जैसे उन्हें कई दिनों बाद शिकार मिला हो! फिर यही तत्व उसे चीरते-काटते हैं … और उसके मांस के रेशों को राजनीति के तंदूर पर सेंक कर अपना ‘वोट’ समझ कर बांटते-खाते हैं! क्योंकि इनके लिए ऐसे हालातों में किसी हिंदू या मुसलमान की मौत नहीं होती, बल्कि मौत होती है ‘देश-धर्म’ की! …और ऐसे में ‘राजधर्म’ भाड़ में झोंक दिया जाता है! यही इनका ‘राजहठ’ है! प्रस्तुत बजट इसी का एक नमूना है. तभी तो इन्हें न मध्यमवर्ग की मुसीबतें दिखीं, न नौकरीपेशा वर्ग की! इन्होंने गरीबों और किसानों को जो झुनझुना थमाया है, उसे भी कई बार बजा चुके हैं ये! अब लोग भी इनके ‘राज-हट’ को समझ चुके हैं. हमें तो लगता है कि इनका प्रिय जेटली ही कहीं 2019 में इन्हें फिर से ‘केटली’ न पकड़वा दें! तब हम सब मिलकर कहेंगे… ‘चायवाला जिंदाबाद’! – सुदर्शन चक्रधर