सुदर्शन चक्रधर महाराष्ट्र के मराठी दैनिक देशोंनती व हिंदी दैनिक राष्ट्र प्रकाश के यूनिट हेड, कार्यकारी सम्पादक हैं. हाल ही में उन्हें जीवन साधना गौरव पुरस्कार से सम्मानित किया गया. अपने बेबाक लेखन से सत्ता व विपक्ष के गलियारों में हलचल मचा देने वाले सुदर्शन चक्रधर अपनी सटीक बात के लिए पहचाने जाते हैं. उनके फेसबुक पेज से साभार !
‘अच्छे दिन’ हवा हुए, उनके प्रलोभन की तरह,
तड़प रही धरती, जल बिन जोगन की तरह।
मुद्दा नफरत का छोड़, दिल से दिल मिले…
हर मन से बरसे अमन, अब सावन की तरह।।
कर्नाटक में चुनाव हो गया… महाराष्ट्र में तनाव हो गया! औरंगाबाद में दंगा हो गया… और प्रशासन नंगा हो गया! दो निर्दोष नागरिकों की मौत हो गई. एक दिव्यांग बुजुर्ग दंगाइयों द्वारा लगाई गई आग में झुलस कर मर गए. एक 17 वर्षीय किशोर पुलिस फायरिंग में मारा गया. 10 पुलिसकर्मियों समेत पचासों लोग घायल हो गए. सैकड़ों दुकानें- वाहन फूंक दिए गए. शहर के कई इलाकों में कर्फ्यू लग गया. दंगा इसी का नाम है! निर्दोषों को मारना- काटना- जलाना इसी का काम है! यकीन मानिए, इसके पीछे सियासत का बड़ा दिमाग है. यह सांप्रदायिक तत्वों की आग है! क्योंकि अगले बरस चुनाव है, ….इसीलिए राज्य में तनाव है!
कहने को बात मामूली थी, किंतु बिगड़ गई. शहर के एक इलाके में हर वर्ष पवित्र रमजान माह के दौरान लगने वाले बाजार पर वर्चस्व की थी. एक ‘धनुषधारी’ सियासी दल के लोग इसमें दखल दे रहे थे. बाजार नहीं लगने देने पर वहीं खड़े थे, …मगर बाजार-प्रेमी उसे वहीं लगाने पर अड़े थे! इससे बात बहुत आगे बढ़ गई ….और दो कौम, एक-दूसरे पर दंगों के रूप में चढ़ गई! फिर नफरत की इस आग में घी डाला, कार्पोरेशन के जल प्रदाय विभाग ने. उसके कर्मचारी एक विशेष समुदाय के लोगों के घरों में लगे अवैध नल कनेक्शन काटने लगे. पानी नहीं मिलने से इनका खून खौलने लगा. यहां का बच्चा-बच्चा पानी-पानी बोलने लगा. मुद्दा उछला, कि हमारी ही बस्ती के अवैध नल कनेक्शन क्यों काटते हो? दम है, तो दूसरे समुदाय के घरों के भी काटो! कुछ पार्षदों ने भी इसमें अपनी राजनीतिक रोटियां सेंक लीं. उनके लिए ‘वोट बैंक’ का सवाल हो गया ….और देखते ही देखते रातों-रात बवाल हो गया!
अब मुद्दे की बात. जब पुराने औरंगाबाद के उन तीन इलाकों में रात भर पथराव, आगजनी, तोड़फोड़, फायरिंग होती रही, दंगाई लोग खून-खराबा करते रहे, तब शहर की पुलिस कहां सोयी हुई थी? रात भर दंगाई मस्त …और पुलिस पस्त क्यों थी? ये परिस्थिति आखिर इतनी क्यों बिगड़ी? औरंगाबाद में पूर्णकालिक कमिश्नर भी नहीं है इन दिनों. जबकि महाराष्ट्र का यह महानगर बेहद संवेदनशील है. इसी वर्ष रामनवमी के दिन भी यहां भयानक हिंसा-तोड़फोड़ और आगजनी हुई थी. प्रदेश के मुख्यमंत्री (जो खुद गृहमंत्री भी हैं) को इसकी समझ और सूझबूझ नहीं थी क्या? ना खुद कोई दूसरा गृहमंत्री रख रहे हैं, न औरंगाबाद में कोई कमिश्नर भेज रहे हैं! कमिश्नर की इस खाली पोस्ट की भरपाई राज्य के विशेष पुलिस महासंचालक (स्पेशल आईजी) मिलिंद भारंबे कर रहे हैं. मगर अकेला चना क्या भाड़ झोंकेगा? स्थिति संभालते-संभालते हैं उनकी भी नाक में दम आ गया. राज्य के मंत्रियों ने भी यहां पहुंचकर अपनी राजनीति कर डाली. क्योंकि आगे चुनाव है, …बहरहाल वहां तनाव है!
अब इस बवाल पर कुछ चुभते हुए सवाल. कर्नाटक में मतदान की पूर्व रात्रि में ही यहां दंगा भड़काना, कहीं कोई सोची -समझी साजिश तो नहीं थी? क्या कर्नाटक में मतदान पर इसका असर पड़ा होगा? क्या बाजार पर वर्चस्व की जंग और पानी के लिए दंगा होना, आधुनिक भारत के लिए शर्मनाक नहीं है? क्या यही है आपका ‘न्यू इंडिया’? जहां मामूली-सी बात पर दो समुदाय आपस में मरने-मारने पर उतारू हो जाए! क्या पानी के बहाने खून बहाना जायज है? मोदी सरकार की महिला व बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने 27 साल पहले (जब वे वीपी सिंह सरकार में वन एवं पर्यावरण मंत्री थीं) कहा था कि “50 साल बाद पानी के लिए विश्व युद्ध होगा!” तो क्या 27 साल में ही उनकी भविष्यवाणी देश के भीतर ‘गृहयुद्ध’ के रूप में साकार होने लगी है? देश के कई इलाकों-संभागों में आज पानी नहीं है. राष्ट्रपति भवन भी पानी के लिए तरस रहा है. हम सब लोग भी यहां पानी के लिए मर-खप रहे हैं!
अब कैसे होगा बेड़ा पार? शर्म करो सरकार!