श्रीनगर (तेज समाचार डेस्क). पिछले लंबे समय से महबूबा मुफ्ती सरकार के साथ गठबंधन में भाजपा कसमसा रही थी. भाजपा अपने मूल एजेंडे पर स्वतंत्र रूप से काम नहीं कर पा रही थी. बढ़ती आतंकी घटनाओं के बीच भाजपा स्वयं को बंधा हुआ महसूस कर रही थी. रमजान में भी महबूबा सरकार की जिद के कारण सीज फायर लागू किया गया, लेकिन इस दौरान सर्वाधिक आतंकी घटनाओं और सैनिकों के शहीद होने से भाजपा काफी आहत महसूस कर रही थी. इन्हीं सब मुद्दों के चलते मंगलवार को भाजपा ने अपना समर्थन वापस ले लिया. मंगलवार को भाजपा के सभी विधायकों ने इस्तीफें दे दिए. इसके साथ ही मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने भी अपना इस्तीफा सौंप दिया है. दोनों दलों के बीच तीन साल पहले गठबंधन हुआ था. भाजपा के साथ गठबंधन टूटने के बाद कांग्रेस और पीडीपी ने एकदूसरे के साथ गठबंधन की संभावना से इनकार किया है. वहीं, नेशनल कॉन्फ्रेंस नेता उमर अब्दुल्ला ने भी किसी गठबंधन की संभावना से इनकार किया है. देर शाम राज्यपाल एनएन वोहरा ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने के लिए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को रिपोर्ट भेजी.
– गठबंधन टूटने के दो कारण
राम माधव ने कहा, कि घाटी में आतंकवाद, कट्टरवादिता, हिंसा बढ़ रही है. ऐसे माहौल में सरकार में रहना मुश्किल था. रमजान के दौरान केंद्र ने शांति के मकसद से ऑपरेशंस रुकवाए. लेकिन बदले में शांति नहीं मिली. जम्मू और कश्मीर क्षेत्र के बीच सरकार के भेदभाव के कारण भी हम गठबंधन में नहीं रह सकते थे.
गठबंधन टूटने की पहली वजह जो बताई जा रही है, वह है रमजान के दौरान सुरक्षाबल आतंकियों के खिलाफ ऑपरेशन रोक दें, इसे लेकर भाजपा-पीडीपी में मतभेद थे. महबूबा के दबाव में केंद्र ने सीजफायर तो किया लेकिन इस दौरान घाटी में 66 आतंकी हमले हुए, पिछले महीने से 48 ज्यादा. ऑपरेशन ऑलआउट को लेकर भी भाजपा-पीडीपी में मतभेद था. दूसरी- पीडीपी चाहती थी कि केंद्र सरकार हुर्रियत समेत सभी अलगाववादियों से बातचीत करे. लेकिन, भाजपा इसके पक्ष में नहीं थी.
– कश्मीर में बाहुबली नीति नहीं चलेगी : महबूबा
महबूबा ने कहा कि कश्मीर में बाहुबल की नीति नहीं चलेगी. भाजपा के साथ गठबंधन का मकसद मेल-मिलाप, पाकिस्तान के साथ अच्छे रिश्ते और यहां के लोगों के साथ बातचीत का था. हमने तीन साल अपनी तरफ से इस मकसद को पूरा करने की कोशिश की. युवाओं से केस वापस लिए, एकतरफा संघर्ष विराम घोषित किया. हमारा मानना है कि जम्मू-कश्मीर में डराने-धमकाने वाली या बाहुबल की नीति कामयाब नहीं हो सकती. जैसे ही भाजपा ने समर्थन वापस लिया, मैंने अपना इस्तीफा राज्यपाल को भेज दिया. हमारा किसी और के साथ गठबंधन करके सरकार बनाने का इरादा नहीं है.
– सरकार नहीं बनाएगी कांग्रेस
कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा, कि पीडीपी के साथ कांग्रेस के सरकार बनाने का सवाल ही नहीं उठता. लेकिन, भाजपा पीडीपी सरकार के सिर पर सारी तोहमत मढ़कर भाग नहीं सकती है. इस सरकार में सबसे ज्यादा जवान शहीद हुए. सबसे ज्यादा आतंकी हमले हुए और सीजफायर वॉयलेशन हुआ.
– बिना किसी संकेत के टूटा गठबंधन : पीडीपी
पीडीपी नेता रफी अहमद मीर ने कहा, कि भाजपा के इस फैसले से हमें आश्चर्य हुआ. हमें इस तरह के कोई संकेत नहीं मिले थे.
– हमसे किसी ने संपर्क नहीं किया : नेशनल कॉन्फ्रेस
राज्य में 15 सीटों वाली नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने कहा, कि मैंने गवर्नर से मुलाकात की और कहा कि नेशनल कॉन्फ्रेंस को न तो 2014 में जनादेश मिला था, न 2018 में हमारे पास बहुमत है. हमसे किसी ने संपर्क नहीं किया और हम भी किसी से संपर्क नहीं कर रहे. ऐसी स्थिति में राज्य में राज्यपाल शासन लगाने का ही रास्ता बचता है.
– लोगों का जीना हुआ मुश्किल : राम माधव
राम माधव ने कहा, कि गृह मंत्रालय और एजेंसियों से सूचनाएं लेने के बाद हमने मोदीजी और अमित शाह से सलाह ली. हम इस नतीजे पर पहुंचे कि इस गठबंधन की राह पर चलना भाजपा के लिए मुश्किल होगा. घाटी में आतंकवाद, कट्टरपंथ और हिंसा बढ़ रही है. लोगों के जीने का अधिकार और बोलने की आजादी भी खतरे में है. पत्रकार शुजात बुखारी की दिनदहाड़े हत्या कर दी गई. ये स्थिति की गंभीरता को बताता है. रमजान के दौरान हमने ऑपरेशन रोके, ताकि लोगों को सहूलियत मिले. हमें लगा कि अलगाववादी ताकतें और आतंकवादी भी हमारे इस कदम पर अच्छी प्रतिक्रिया देंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
– राज्यपाल शासन की संभावना
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अब राज्यपाल शासन के अलावा कोई और विकल्प नहीं है. भाजपा भी यही चाहती है ताकि राज्यपाल के शासन में कड़ी कार्रवाई करके वह शेष देश में अपनी छवि सुधार सके. दलीय स्थिति भी नए गठबंधन की तरफ इशारा नहीं करती. पीडीपी (28), कांग्रेस (12) और अन्य (7) को मिलाएं तो 47 सीटें होती हैं. ऐसे में सरकार तो बन सकती है, लेकिन कांग्रेस यह जोखिम उठाने को कतई तैयार नहीं होगी. महबूबा मुफ्ती के इस्तीफे के बाद तो सारी संभावनाएं खत्म ही हो गई हैं. नेशनल कॉन्फ्रेंस फिलहाल कुछ भी कर पाने की स्थिति में नहीं है. लेकिन, भाजपा चाहे तो नेशनल कॉन्फ्रेंस और कुछ निर्दलीयों को मिलाकर सरकार बना सकती है और अपना मुख्यमंत्री भी. क्योंकि, भाजपा (25), नेशनल कॉन्फ्रेंस (15) मिलाकर 40 होते हैं. अन्य जो 7 हैं, उनमें से चार इधर आ जाएं तो सरकार बन सकती है. नेशनल कॉन्फ्रेंस एक बार एनडीए का हिस्सा रह चुकी है.