जामनेर(तेज़ समाचार प्रतिनिधि ):27 मई कि रात 9 बजे निगम के चकाचौंध तिराहे कि फ़ोरलेन के फुटपाथ पर हमेशा की तरह जनजीवन सामान्य था , दिनभर तपती धुप से परेशान लोग परीवार के साथ सुकून के कुछ पल बिताने इस वक्त शहर के तिराहो पर चहलकदमी करते दिखायी पड रहे थे , तभी अचानक बीओटी मार्केट के सामने एक बखेडा खडा हो गया . सुत्रो के मुताबीक किसी बात को लेकर बजरंगपुरा और जामनेर पुरा इलाके के कुछ युवाओ के बीच व्यक्तीगत रूप से हाथापायी हो गयी जमकर लात – घुसे चले बताया गया की धुनायी मे कीसी शख्स को सिर पर चोट भी आयी .
मौके पर पहुची पुलिस ने जमावडे को खंडीत किया . दौरान पिडीत पक्ष मे बदले की भावना को बल मिला और फीर से भिड सडको पर हावी होने लगी तब भी पुलिस आयी पहला सिन रीप्लाय हुआ . मामला शांत हो गया . किसी हिंदी फील्म के तयशुदा सिन्स कि तरह आए दिन शहर मे भिडतंत्र के आतंक के ऐसे सिन्स देखे जाना अब आम बात हो गयी है . छोटी छोटी बातो को लेकर आपस मे भिड जाने वाले युवाओ के आपसी झगडो के समर्थन मे सडको पर जुटती भिड आखिर तत्क्षण न्याय करने के लिए इतनी आमादा कैसे हो रहि है ? यह सवाल आम नागरीको मे पुछा जाने लगा है . इस तरह भिडतंत्र से पैदा कीए जाते उन्मादी आतंक से सार्वजनीक जनजीवन को प्रभावीत किए जाने के खुले प्रयासो के चलते शहर मे कानून व्यवस्था नाम की संस्था है भी या नहि ? आखिर शहर की सभ्य संस्कृति को यह कौनसी दिशा देने का प्रयास कीया जा रहा है ? क्या इसके पिछे कोई साजीश तो नहि है ? इतना सब कुछ सिलसिलेवार ढंग से धडल्ले से होने के बाद भी आश्चर्य की बात यह है की शहर का क्राइम रेट जिरो बताया जाता है यानी संवेदनशील मामले फ़ाइल हि नहि किए जाते . क्या यहि वह कारण तो नहि जो लोकतंत्र पर भिडतंत्र को हावी होने के लिए मुफीद माहौल बना रहा है .
अगर यहि यथास्थिती बनी रहि तो उमदा और गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा की एकमात्र उपलब्धी वाले जामनेर की छबी आनेवाले बरसो मे शायद कुछ और होगी , जिसकी कल्पना से हि बुद्धिजिवी सिरह उठते है . जनता को यह उम्मीद है की प्रशासन जिरो क्राइम रेट के झूठे गौरव के लिए नगर की सौहाद्र तथा शांतिप्रियता से समझौता नहि करेगा .