जामनेर (तेज समाचार डेस्क). मानसून और बीमारियां इन दोनों का वैसे तो काफी पुराना और घनिष्ठ संबंध रहा है. बीमारियों की रोकथाम के लिए उच्चतम संस्थाओं ने विभिन्न मानकों पर जहां स्थानीय ईकाइयों की जिम्मेदारियां तय कर रखी है, वहीं इन जवाबदेहियों के प्रति संबंधित संस्थाओं का रवैया अब तक ढुलमुल ही दिखायी पड़ रहा है. इन दिनों जामनेर में मच्छरों की पैदावार इतनी बढ़ गई है कि लोगों का स्वास्थ्य पूरी तरह से खतरे में आ गया है. मलेरिया, टाइफाइड के मरीजों से अस्पताल पट गए है. लेकिन प्रशासन अभी भी इस ओर से अपनी आंखें मूंदे बैठा है.
स्वच्छ भारत अभियान प्रतियोगिता के लिए सूबे में पहला स्थान प्राप्त कर वाहवाही लूट चुकी जामनेर निगम की जमीनी हकीकत कुछ और ही दास्तां बयां कर रही है. नगर में आए दिन मुख्य सड़कों पर साफ-सफ़ाई दिखायी तो पड़ रही है, लेकिन विकास की आंस में नेताओ के मुताबिक सार्वजनिक स्वास्थ सुरक्षा से समझौता कर चुके आम लोगों को उखाड़ी गई सड़कों और ध्वस्त ड्रैनेज सिस्टम के कारण शहर में मच्छरों की पैदावार इतनी बढ़ गई है कि लोगों को टाईफाइड, मलेरिया जैसी संक्रामक बीमारियों का जोखिम उठाना पड़ रहा है. अस्पतालों के बेड मरीजों से पटना शुरू हो गए है. उपजिला अस्पताल की लैब में भी मरीजों की काफी भीड़ सदैव लगी रहती है.
जलगांव में शायद मेडिकल हब तो बन जाएगा, लेकिन जनता आस लगाए बैठी है कि नगर में ऐसे किसी बेहतरीन मल्टिपर्पज स्वास्थ क्लब की जो आम लोगों के हित में हो. निगम का कोई अस्पताल शहर में नहीं है. बीते साल डेंगू से कुल तीन लोगों की मौत हो गई थी. इनमें एक सात महीने की गर्भवती भी थी. यह आंकडा मीडिया सोर्सेज का है. तब डेन्गू जैसी आपदा का जनता ने मिलकर सामना किया. कटघरे में खड़ा प्रशासन बहुत लेट हरकत में आया था. प्रशासन पर वही सुस्ती आज भी बरकरार है या यूं कहे उससे अधिक. प्रशासन द्वारा दार्शनिक स्वच्छता पर जोर जरूर दिया जा रहा है. शहर के अर्थचक्र में निजी स्वास्थ्य सेवा को लाभ पहुंचाने मच्छरों ने काफी योगदान दे रखा है. ऐसा उपहास बुद्धिजीवियों द्वारा किया जा रहा है.
बहरहाल संक्रामक बीमारियों से लड़ने के लिए अपने पूर्वावर्ती अनुभवों के सहारे आम लोगों ने अपनी मानसिकता बना ली है. अब प्रशासन का जिम्मा बनता है कि वह इस जनसहयोग को हथियार बना कर अपनी ओर से कुछ करने की पहल करे.