जोधपुर की पूर्व राजमाता एवं पूर्व सांसद कृष्णा कुमारी के निधन पर अनछुए वाक्यों को ब्यान कर रहे हैं जोधपुर के सुधांशु टाक जी !
1971 की शुरूआत। देश में पाँचवे आम चुनावों की आहट सुनाई दे रही थी। चौथे चुनावों से ये चुनाव काफी अलग थे। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी… जो चौथे आम चुनावों में गूंगी गुडिया के नाम से उपहास का पात्र बनती थीं, वो अब सता और संगठन पर अपनी पकड़ कायम कर चुकी थीं। कांग्रेस का दबदबा एक राष्ट्रीय राजनैतिक दल के रूप में बढ़ चुका था।
नारों और जुमलों की जुगाली शुरू हो चुकी थी। विपक्षी दल एकजुट हो कर ’इन्दिरा हटाओ’ का नारा बुलन्द कर रहे थे। वहीं बड़ी चतुराई से इंदिरा गांधी ने ये घोषणा कर दी थी कि विपक्षी दल भले ही संकुचित सोच के साथ व्यक्तिगत हमला करें और ’इंदिरा हटाओं’ का नारा बुलंद करें, लेकिन वो देश में गरीबों का उद्धार करेंगी और इसलिये उनका चुनावी नारा होगा-’गरीबी हटाओ’।
दरअसल उन दिनों सीमा पार से हो रही घुसपैठ और सुस्त औद्योगिकीकरण के चलते देश की सरकार भी आर्थिक तंगी से गुजर रही थी। हर तरह से उन उपायों पर गौर किया जा रहा था जिनसे पैसा बचाने का उपक्रम हो सके। कांग्रेसी नेताओं के 1947 के वादों के पूरा ना होने के कारण पूर्व राजघरानों से पार्टी के संबंध खराब हो चुके थे।
यही कारण था कि बचत के कई तरीकों में से एक तरीका जो अमल में लाया जाना प्रस्तावित था वो सीधा-सीधा पूर्व राजघरानों को प्रभावित करता था। सरकार इन घरानों को दिए जाने वाले प्रीवी पर्स- हाथ खर्च को खत्म करने के लिये संविधान का 26 वां संशोधन ला रही थी।
’ये विश्वासघात है। हम सभी से जो वायदे नेहरू और पटेल ने किये थे…ये उससे बिल्कुल विपरीत है। लोकतंत्र और एकीकरण के नाम पर पहले ही प्रजा को ठगा गया…टैक्स बेतहाशा बढा दिये गये और अब हम! कांग्रेस इस तरीके से हम सभी को सड़क पर लाने की साजिश कर रही है,‘ राजदादी बदन कुंवर ने अपने विश्वासपात्रों से बातचीत के दौरान चिंता प्रकट की।
’आप सही फरमा रही है राजदादी जी। गुजरात, हैदराबाद, हिमाचल और हरियाणा से सूचना मिली है। सभी पूर्व राजघरानों में इसी तरह का रोष है,’ एक सरदार ने अपनी सहमति जताई।
’आप लोग स्वर्गीय महाराजा हनवंत सिंह जी की बात याद करो! उन्होंने कहा था कि अगर राजा- महाराजाओं को अपनी शक्ति, अपना अस्तित्व बनाए रखना है तो जनता की-वोटों की ताकत से ही अपने आप को पुर्नजीवित करना होगा,’ दूसरे सरदार ने कहा।
’लेकिन मारवाड़ में सबसे प्रतिष्ठा की सीट #जोधपुर है। हम अगर वहाँ भी कांग्रेस को चुनौती नहीं दे सके तो फिर कहीं भी उम्मीद नहीं रखनी चाहिए। मुझे पता चला है कि लगभग सभी बड़े राजघराने अपने उम्मीदवार कांग्रेस के सामने उतारने का मानस बना रहे हैं,’ राजदादी ने कहा ।
’लेकिन मम्मा! हमारे पास कहाँ है उम्मीदवार जो कांग्रेस की आंधी का मुकाबला कर सके!’? राजमाता कृष्णा कुमारी ने स्वाभाविक प्रश्न किया।
’तुम! तुम लड़ोगी इस बार का चुनाव। उस सीट से जहाँ हनवंत सिंह जीते पर अपनी जीत देख नहीं पाए। तैयार हो जाओ। हमें गिरदीकोट में एक आम सभा करनी होगी। राजपूतनियाँ हर चुनौती के लिये तैयार रहती हैं। तुम्हें उस सभा में भाषण देना होगा।’
राजमाता ने अपनी सास से ये निर्णय भरा आदेश सुन कर गरदन घुमाई तो सामने दीवार पर मुस्करा रहे हनवंतसिंह की तस्वीर नजर आयी।
मार्च 1971 में चुनाव से पहले हुई सबसे बड़ी आमसभा निर्दलीय प्रत्याशी कृष्णा कुमारी की थी। एक बड़े सांकेतिक परिवर्तन को मारवाड़ के लाखों लोगों ने महसूस किया।
शायद पहली बार परदे से सार्वजनिक सभा में आई राजमाता ने जब कहा- ’समय बदलने से क्या संबंध बदल जाते हैं….!‘
लाखों हाथ ’नहीं! नहीं!! नहीं बदलते संबंध…’ और ‘जय-जय‘ के नारों के साथ हवा में उठ गए और सबसे मजबूत दिखने वाली कांग्रेस ने मारवाड़ में अपनी नींव हिलती महसूस की।
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जोधपुर की पूर्व राजमाता एवं पूर्व सांसद कृष्णा कुमारी का सोमवार रात डेढ़ बजे निधन हो गया।
सादर/साभार
सुधांशु