पुणे. मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए 1000 से अधिक वर्षों से चली आ रह तीन तलाक की कुप्रथा पर भारत में रोक लगा दी है. एक हजार साल पुरानी इस कुप्रथा पर 5 जजों की बेंच ने अपने फैसले में कहा कि तीन तलाक असंवैधानिक है. कोर्ट ने कहा कि तीन तलाक कुरान के मूल सिद्धांतों का हिस्सा नहीं है. इसके साथ ही कोर्ट ने सरकार से इस पर कानून बनाने को कहा. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का हर ओर स्वागत किया जा रहा है. पुणे के पढ़े-लिखे मुस्लिम युवक-युवतियों ने भी इस फैसले पर खुशी जाहिर की है.
महिलाओं के हित में लिए गए इस फैसले में एक कंपनी में बतौर एचआर ऑफिसर काम करने वाली 23 वर्षीय सीमा खान ने खुशी जाहिर करते हुए कहा कि, महिला सशक्तिकरण में यह एक बहुत ही बड़ा क़दम है. सही मायनों में यह महिलाओं को उनका हक़ दिलाने में एक बहुत ही अहम कदम उठाया गया है. कोई एक शब्द किसी के भविष्य का फैसला नहीं कर सकता. इस फैसले के बाद कोई भी मुस्लिम महिला डर के साये में नहीं जीयेगी. अब मुस्लिम महिलाओं को एक तरह से अपने फैसले खुद लेने की आज़ादी मिल गई है. प्रगतिशील भारत में जहां हम महिलाओं को आगे लाने का हर संभव प्रयास किया जा रहा है, वहां ऐसी प्रथा महिलाओं के लिए बेड़ियों का काम करती हैं. धीरे-धीरे ये बेड़ियां तोड़ी जा रही हैं, जो हमारे देश के लिए सबसे अच्छा है.
एमआईटी कॉलेज से एमबीए की पढ़ाई कर रहे अल्ताज़ वसाया का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैलसा बहुत ही सही है. जहां एक ओर हम तरक्की की ओर बढ़ रहे है, वहां इस तरह की प्रथा किसी भी रूप में स्वीकार नहीं की जा सकती है. किसी ज़माने में अगर बुजुर्गों ने किसी तरह की कुप्रथा को चलाने की गलती की थी, तो अब इसे सुधारना चाहिए, ना की उसी पुरानी प्रथा को ढोते रहना चाहिए. समय के साथ हर किसी को बदलना चाहिए, और बदलते हुए भारत में ऐसी प्रथाओं को बदलना ही चाहिए. मै पूरी तरह से सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से इत्तफाक रखता हूं. यह एक पूरी तरह से पुरुष प्रधान प्रथा है, जिसमे सीधे तौर से महिलाओं पर अत्याचार है. जिसमें कोई भी मर्द उनको नीचा दिखाते हुए तलाक बोल देता है.
वहीं इस फैसले पर अपनी बात रखते हुए एक आईटी कंपनी में नौकरी करने वाली 24 साल की करिश्मा भालदार कहती है, आज के दौर मे भी ऐसी प्रथा समाज में होना, यह बात हजम करना ही मुश्किल है. जहां एक शब्द तीन बार कहने से कोई किसी को अपनी ज़िन्दगी से बाहर निकाल सकता है. मुस्लिम समाज या तीन तलाक ही एक मुद्दा था, जो गलत था, जिसे अब सही किया जा रहा है. एक औरत के लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं है कि उसका पति उसे अचानक किसी दिन शादी कर के तलाक दे दें और दूसरी शादी कर ले. लेकिन अब इस फैसले से औरतों का भविष्य सुरक्षित है.