नई दिल्ली ( तेज समाचार संवाददाता ) – बुंदेलखंड से ताल्लुक रखने वाली युवा कवियत्री डॉ. ऋतू दुबे (तिवारी) के पहले कविता संग्रह ‘तेरी मेरी बातें’ का लोकार्पण समारोह 15 दिसम्बर’17 दोपहर 2 बजे से निस्कोर्ट मीडिया कॉलेज,वैशाली सेक्टर 1, ग़ाज़ियाबाद में संपन्न होगा ।
लोकार्पण समारोह कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ कवि श्री मदन कश्यप करेंगे। जबकि कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वरिष्ठ पत्रकार एवं समीक्षक श्री अनन्त विजय होंगे।
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल कम्युनिकेशन रिसर्च एंड ट्रेनिंग (निस्कोर्ट मीडिया कॉलेज) (मैक्स हॉस्पिटल वैशाली के सामने तथा समीपस्थ मेट्रो स्टेशन कौशाम्बी) पर होने वाले इस समारोह में नई दिल्ली, नोयडा, ग़ाज़ियाबाद से जुड़े पत्रकार , साहित्यकार , कवी , आलोचक आदि हिस्सा लेंगे ।
मूलतः ललितपुर ( बुंदेलखंड ) की रहने वाली डॉ. ऋतू दुबे (तिवारी) का विवाह झांसी में हुआ. दोनों क्षेत्र ही साहित्य व शौर्य की विधाओं से जुड़े रहे हैं. इसी लालन पालन के माहोल का असर डॉ. ऋतू दुबे (तिवारी) के लेखन में बेबाकी से दिखाई देने लगा. बुन्देलखंडी प्रभावको उनकी लेखनी में सहजता से देखा जा सकता है-
माँ तुम एक सांस की तरह हो, जिसका होना कोई बड़ी बात नही लगती l
जिसका सुबह से शाम तक साथ-साथ चलना, स्वभाविक सा होता है l
भोर से ही हमें पोसने में तुम, चकरघिन्नी सी फिरती हो घर-आंगन में l
कभी करछी से परांठा पलटती, कभी स्कूल बेल्ट थमाती, तो कभी झट से बाल काढ़तीl
तुम दूधवाले से ले कर कामवाली तक, के हिसाब किताब में, कभी नहीं बिसराती
मेरे माथे पर स्कूल जाते जाते एक स्नेह भरा चुम्बन देनाl
और मैं, बस में बैठे सहपाठियों को देख कर, झेंप सी जाती… क्या माँ पसीना आ रहा है तुम्हें !
मत करो अच्छा नहीं लगता!!
तुम सारे घर का प्रबंध कर, भागती हो आफिस, बिना कुछ खाये पिये l
छोटी सी नौकरी चुनी तुमने, ताकि समय से घर आ सको मेरे लिये !
मगर तुम घरेलू और कभी-कभी गंवार सी लगती, जब मेरी हाई-फाई सहेलियों की मम्मियों के
सामने तुम मेरे स्कूल आती l
हड़बड़ाती,आफिस से हाफ डे लेकर, अपनी स्कूटी बड़ी गाड़ियों के बीच मे पार्क करती!!
न नेलपॉलिश ,न कटे बाल, न स्टाइलिश कपड़े, उफ़ काश तुम थोड़ा स्टाइलिश होतीं!!
मैं तुमसे दूर होती जा रही हूँ.. कुछ नहीं बताती मेरे स्कूल और दोस्तों की बातें..
तुम्हारे बनाये पास्ता और आलू के परांठों की, आज कितनी तारीफ हुई,
और हाँ तुम्हारी वजह से मेरा प्रोजेक्ट फर्स्ट आया.. तुमसे कोई बात नही करती अब!
हमारी दुनियाँ अलग है शायद!
जेनरेशन गैप… कई दिनों बाद इस चुप्पी के बीच, आज पुराने कागजों में तुम्हारी फाइल मिली!
खोला तो ढेरों सार्टिफिकेट… अरे तुम तो हरफनमौला थीं माँ!
डांस,गाना, नाटक,भाषण और पेंटिंग भी… पढ़ने में भी अव्वल… इतनी डिग्री लीं तुमनें..
मगर बस मेरे जन्म तक… फिर तुमने खुद को समेट लिया!
सब कुछ मेरे हिसाब से,बड़ी नौकरी छोड़ कर ,मेरा ध्यान रखा… इस सब के दौरान ही शायद,
तुम दुनियाँ से पिछड़ गई माँ!!
मगर बिना किसी पछतावे और कड़वाहट के तुम, मेरी प्यार में डूबी माँ ही रहीं!!
संतुलन साधती..खुद को उपेक्षित करती, और अपना सब कुछ मुझ पर लुटाती, मेरी माँ!!
माफ़ी से काम नही चलेगा , अब मेरी बारी है तुम्हें निखारने की, खुद से मिलवाने की…
माँ तुम सच में निराली हो ! तुम सा तो कोई हो भी नहीं सकता!! – डॉ. ऋतू दुबे (तिवारी)
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