नई दिल्ली. अपने एक साक्षात्कार में एयर मार्शल अर्जन सिंह ने इस बात पर अफसोस जताया था कि यदि 1965 की जंग थोड़ी और लंबी चली होती, तो आज दुनिया के नक्शे से पाकिस्तान का नाम-ओ-निशान मिट गया होता. अर्जन सिंह को ता जिन्दगी इस बात का मलाल रहा और यह बात उन्होंने हर उस मौके पर दोहराई जब-जब 1965 की जंग का जिक्र हुआ.
1965 में पहली बार जब एयरफोर्स ने जंग में हिस्सा लिया तो अर्जन सिंह ही उसके चीफ थे. जंग शुरू होने पर डिफेंस मिनिस्टर यशवंत राव चह्वाण ने सिंह को ऑफिस में बुलाया. उनसे पूछा गया कि एयरफोर्स कितनी देर में आर्मी की मदद के लिए पहुंच सकती है. सिंह ने जवाब दिया… एक घंटे में, लेकिन महज 26 मिनट बाद हमारे लड़ाकू विमान पाकिस्तान की तरफ उड़ान भर चुके थे. हालांकि, अर्जन सिंह को यह जंग जल्दी खत्म होने का हमेशा मलाल रहा. अर्जन सिंह सेकंड वर्ल्ड वॉर से लेकर अपनी आखिरी जंग तक अजेय रहे.
– बचपन से देखा था पायलट बनने का सपना
अपने एक साक्षात्कार में अर्जन सिंह ने अपने बारे में खुल कर बात की थी. इस साक्षात्कार में अर्जन सिंह ने अपने बारे में बताया कि ‘मेरा जन्म पाकिस्तान के लायलपुर (अब फैसलाबाद) में हुअा. घर लाहौर-कराची एयर रूट में था. प्लेन को उड़ते देखकर ही पायलट बनने सपना देख लिया. मुझे 1938 में महज 19 की उम्र में फ्लाइट कैडेट चुना गया. ट्रेनिंग दो साल की थी. पर इससे पहले ही दूसरा विश्व युद्ध छिड़ गया और में युद्ध में भेज दिया गया. क्रैश लैंडिंग से लेकर कोर्ट मार्शल तक बहुत सी बातें हैं, जिन्हें याद कर सीना चौड़ा हो जाता है. पर इस बात का अफसोस भी है कि जब हम 1965 में युद्ध जीत चुके थे और पाकिस्तान को तबाह करने की स्थिति में थे, तभी युद्ध विराम हो गया. जबकि हम उस वक्त पाकिस्तान के किसी भी हिस्से को नष्ट कर सकते थे. हमारे पास मेहर सिंह और केके मजमदूार जैसे बेहतरीन पायलट थे. जबकि पाकिस्तान अंबाला पार करने की स्थिति में भी नहीं था. दिल्ली- मुंबई-अहमदाबाद पहुंचना तो उसके सपने से भी दूर था. पर हमारे नेताआें ने युद्ध खत्म करने का निर्णय लिया.’
– 2002 में बने इकलौते मार्शल
अर्जन सिंह को 2002 में एयरफोर्स का पहला और इकलौता मार्शल बनाया गया. वे एयरफोर्स के पहले फाइव स्टार रैंक ऑफिसर बने. 1965 की जंग में उनके कंट्रिब्यूशन के लिए भारत ने उन्हें इस सम्मान से नवाजा था. उन्हें 1965 में ही पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया गया. सिंह 1 अगस्त 1964 से 15 जुलाई 1969 तक चीफ ऑफ एयर स्टाफ (CAS) रहे.
– महज 44 वर्ष की उम्र में बने CAS
सिंह की लीडरशिप में पहली बार एयरफोर्स ने किसी जंग में हिस्सा लिया था. जब वे CAS बने तब उनकी उम्र महज 44 साल थी. उन्होंने 1939 में IAF ज्वाइन की और 1970 में 50 साल की उम्र में रिटायरमेंट लिया. इसके बाद उन्होंने स्विट्जरलैंड और वेटिकन के एम्बेस्डर के तौर पर भी अपनी सेवाएं दीं.
– 60 विभिन्न प्रकार के एयरक्राफ्ट उड़ाए
अपने करियर के दौरान सिंह ने 60 अलग-अलग तरह के एयरक्राफ्ट्स उड़ाए. फ्लाइंग के लिए उनकी ये दीवानगी 1969 में रिटायरमेंट तक जारी रही. उन्होंने वर्ल्ड वार 2 के पहले के बाइप्लेंस से लेकर जीनट्स और वैम्पायर जैसे एयरक्राफ्ट भी उड़ाए. इसके अलावा सुपर कॉन्स्टेलेशन जैसे ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट भी उड़ाए.
– अादेश मिलते ही 26 मिनट में बोला पाकिस्तान पर हमला
1 अगस्त 1964 को एयर स्टाफ का चीफ बने. इस दौरान देश को जंग का सामना करना पड़ा. पाकिस्तान ने ऑपरेशन ग्रैंड स्लैम लॉन्च किया. कश्मीर के अखनूर सेक्टर को पाकिस्तान के जवानों ने निशाना बनाया. यही वो वक्त था, जब डिफेंस मिनिस्टर ने उनसे पूछा कि कितनी देर में एयर सपोर्ट मिल जाएगा तो सिंह ने कहा कि एक घंटे में. लेकिन मात्र 26 मिनट में ही एयरफोर्स ने पाकिस्तानी फौजों पर हमला बोल दिया. इस जंग में सिंह ने एयरफोर्स को लीड किया. अयूब खान की कश्मीर को हथियाने की कोशिश निश्चित तौर पर इंडियन आर्मी और इंडियन एयरफोर्स की बहादुरी की वजह से नाकाम हो गई.
– सिंह के नाम पर रखा एयर बेस का नाम
IAF ऑफिशियल के मुताबिक 2016 में पानागढ़ बेस का नाम एयरफोर्स स्टेशन अर्जन सिंह कर दिया गया. इससे पहले एयरफोर्स ने किसी शख्स के नाम पर बेस का नाम नहीं रखा था. यहां IAF के स्पेशल ऑपरेशंस प्लेन C0130J रखे जाते हैं.
– रिटायर्ड एयरफोर्स पर्सनल को दिए 2 करोड़
सिंह ने दिल्ली के पास अपने फार्म को बेचकर 2 करोड़ रुपए ट्रस्ट को दे दिए. ये ट्रस्ट रिटायर्ड एयरफोर्स पर्सनल्स की वेलफेयर के लिए बनाया गया था.