जलगांव (तेज समाचार प्रतिनिधि). राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये सभी को एकत्रित आकर कार्य करने की जरूरत है. अंतर्गत एवं बाहरी सुरक्षा के बारे में नागरिकों में बडे पैमाने पर अनास्था दिखाई देती है. राष्ट्रीय एकात्मता का अभाव हम में बड़े पैमाने पर दिखायी देता है. यही राष्ट्रीय सुरक्षा के सामने बड़ा आह्वान है. सक्षम एवं बलशाही देश निर्मिती के लिये सभी को एकत्रित आकर सामुहिक शक्ती का दर्शन शत्रू राष्ट्रों को करा देने की जरूरत होने की बात सेवानिवृत्त मेजर जनरल डा. जी.डी. बक्षी ने व्यक्त की.
उत्तर महाराष्ट्र विश्वविद्यालय के संरक्षण एवं सामारिकशास्त्र विभाग की ओरसे 27 फरवरी को भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के सामने के नयें आह्वान इस विषय पर राष्ट्रीय चर्चासत्र का आयोजन किया है. मंगलवार को इस दो दिवसीय चर्चासत्र का उद्घाटन मेजर जनरल डा.जी.डी.बक्षी के हाथों विश्वविद्यालय के सीनेट सभागृह में हुआ. इस दौरान विचारमंच पर उद्घाटन सत्र के अध्यक्ष जिलाधिकारी किशोर राजे निंबालकर, विशेष अतिथि पुलिस अधिक्षक दत्तात्रय कराले, सामाजिकशास्त्र प्रशाला की संचालिका डा.अर्चना देगांवकर, कला व मानव्यविद्या प्रशाला के संचालक डा.तुकाराम दौड एवं चर्चासत्र के समन्वयक प्रा.तुषार रायसिंह उपस्थित थे. उद्घाटन सत्र में पुलिस अधिक्षक दत्तात्रय कराले ने देश की अंतर्गत सुरक्षा के संदर्भ में मार्गदर्शन किया.
नागकिरों के सहयोग के बिना अंतर्गत सुरक्षा मजबुत नहीं करते आयेगी. इसका परिणाम बाहरी सुरक्षा यंत्रणा पर भी दिखायी देता है. जिसके कारण देश के नागरिकों को अंतर्गत एवं बाहरी सुरक्षा के लिये आपस के विवाद साईड में रखकर देश सुरक्षा का विचार प्रधानता से करने की बात दत्तात्रय कराले ने इस समय व्यक्त की. अध्यक्षीय भाषण में जिलाधिकारी किशोर राजे निंबालकर ने देश से आगे आतंकवाद, हिंसाचार, आपसी वाद-विवाद के कारण अंतर्गत सुरक्षा का सवाल निर्माण हुआ है. वह दूर करने के लिये सभी को एकत्रित आकर राष्ट्रहित को प्रधानता देने का विचार इस समय व्यक्त किया. उद्घाटन सत्र का स्वागतपर भाषण डा. तुकाराम दौड़ ने किया. संचालन एवं आभार डा.उस्मानी ने माना. उद्घाटन सत्र के बाद मेजर जनरल डा.बक्षी ने राष्ट्रीय सुरक्षा की भारतीय दृष्टी इस विषय पर बिजभाषण किया. विश्व में सुरक्षा संदर्भ का समीकरण तेजी से बदल रहा है.
सभी को अंतर्गत एवं बाहरी असुरक्षा महसूस हो रही है. भारत में लगभग २ हजार साल पहले मौर्य काल में अंतर्गत एवं बाहरी सुरक्षा की समस्या के बारे में आचार्य चाणक्य ने ठोस नीति का अवलंब किया था. यह चाणक्य नीति आज आचरण में लाने की जरूरत है. भारत को सुरक्षा के बारे में बडे पैमाने पर उपाय योजना करनी चाहिए. सुरक्षा यंत्रणा के लिये अन्य देश बडे पैमाने पर आर्थिक निवेश कर रहा है. किन्तू भारत में आर्थिक निवेश अन्यों की तुलना में कम है. उसे बढ़ाना जरूरी होने की बात उन्होने इस समय व्यक्त की.
भारत के आगे सुरक्षा यंत्रणा का सक्षमीकरण, राष्ट्रीय एकात्मता का विकास एवं उर्जा, तेल एवं पानी इस संदर्भ के स्वावलंबीता यह बड़ा आह्वान होने की बात उन्होने बीजभाषण में व्यक्त की. चर्चासत्र में दोपहर को दो सत्र लिये गए. इसमें मुंबई विश्वविद्यालय के डा.नियाकत खान ने भारत की मिलीटरी सुरक्षा के आगे के आह्वान एवं अवसर इस विषय पर तथा पुणे विश्वविद्यालय के श्रीकांत परांजपे ने कश्मीर समस्या एवं शासन की भुमिका इस विषय पर मार्गदर्शन किया. आज 28 फरवरी को दोपहर इस दो दिवसीय चर्चासत्र का समापन होगा.