देश में बढ़ते जा रहे दुष्कर्म मामलों के विरोध में बड़ी कार्रवाई करते हुए केन्द्र सरकार ने दोषियों को फांसी की सजा देने का अभूतपूर्व निर्णय लिया है। इसके लिए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने आपराधिक कानून संशोधन अध्यादेश 2018 को मंजूरी देकर कानून की मान्यता दे दी है। राष्ट्रपति द्वारा इस अध्यादेश की मंजूरी देने के बाद यह देश भर में लागू हो गया। इस अध्यादेश के लागू होने के बाद दुष्कर्म करने वालों को कड़ी सजा देना संभव हो सकेगा। सवाल यह आता है कि संस्कारित भारत देश में इस प्रकार के अपराध की प्रवृति कैसे पैदा हो रही है? ऐसा वातावरण बनाने के पीछे वे कौन से कारण हैं, जिसके चलते समाज ऐसे गुनाह करने की ओर कदम बढ़ा रहा है। गंभीरता से चिंतन किया जाए तो इसके पीछे अश्लील साइटों का बढ़ता प्रचलन ही माना जाएगा, क्योंकि वर्तमान में मोबाइल के माध्यम से हर हाथ में इंटरनेट है। भारत में पोर्न साइटों के देखने का प्रतिशत बढ़ने से यही कहा जा सकता है कि समाज का अधिकांश वर्ग इसकी गिरफ्त में आता जा रहा है। इसके अलावा इसके मूल में छोटे परदे पर दिखाए जाने वाले षड्यंत्रकारी धारावाहिक भी हैं।
कहा जाता है कि सात्विकता ही संस्कारित विचारों को जन्म देती है, जो सात्विक कर्म और सात्विक खानपान से ही आ सकती है। हम सात्विक रहेंगे तो स्वाभाविक है कि हमारे मन में बुरे कामों के लिए कोई जगह नहीं होगी। लेकिन आज हमारे कर्म बेईमानी पर आधारित हैं, कई परिवार बेईमान के पैसे से उदर पोषण करते हैं। हम जान सकते हैं कि ऐसे लोगों की मानसिकता कैसी होगी? जिसका चिंतन ही बुराई के लिए समर्पित होगा, वह अच्छा काम कर पाएगा, ऐसी कल्पना बहुत कम ही होगी। इन्हीं कारणों से भारत में संबंधों की मर्यादाएं टूट रही हैं। इन्हीं मर्यादाओं के टूटने से दुष्कर्म की घटनाएं भी बढ़ रही हैं। लेकिन ऐसी घटनाओं के बाद राजनीति की जाना बहुत ही शर्मनाक है।
वर्तमान में दुष्कर्म की घटनाओं को लेकर कांगे्रस सहित विपक्षी राजनीतिक दलों की ओर से जिस प्रकार से तीव्रतम विरोध किया जा रहा है, वह केवल राजनीतिक षड्यंत्र ही कहा जाएगा। देश में उनकी सरकार के समय भी ऐसे अनेक वीभत्स कांड हुए हैं, लेकिन देश में जब निर्भया दुष्कर्म की वीभत्स घटना हुई उस समय पूरा देश विरोध में था, लेकिन कांगे्रस के बड़े-बड़े नेता निर्भया मामले में विरोध करने के लिए आगे नहीं आए। इस मामले के बाद कांगे्रस की सरकार ने कठोर कानून भी बनाया, लेकिन उस कानून के बाद भी देश में दुष्कर्म की घटनाएं रुकने का नाम नहीं ले रही हैं, इतना ही नहीं उस समय पिरोधी दलों के नेताओं ने दुष्कर्म तो चलते रहते हैं, ऐसे भी बयान दिए। आज वही कांगे्रस के नेता कह रहे हैं कि थाने जाओ तो पूछा जाता है कि कितने आदमी थे। आज कठुआ मामले में कांगे्रस को इसका दर्द समझ में आ रहा है।
वास्तव में दोनों मामलों को देखकर यही कहा जा सकता है कि कांगे्रस की कथनी और करनी में जमीन आसमान का अंतर है। उसकी सरकार होती है तब उनकी कार्यशैली अलग प्रकार की हो जाती है, लेकिन जब विपक्ष में होते हैं तब पूरा आरोप सरकार पर लगा देते हैं। हालांकि यह बात सही है कि सरकार को अन्याय को समाप्त करने के लिए मजबूती के साथ प्रयास करने चाहिए, लेकिन कांगे्रस ने ऐसा अपनी सत्ता के समय क्यों नहीं किया। आज कांगे्रस ऐसे बयान दे रही है कि जैसे उनके शासनकाल में सब ठीक था, लेकिन नरेन्द्र मोदी की सरकार आने के बाद पूरा देश खराब हो गया। अभी हाल ही में भाजपा सांसद हेमा मालिनी ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि वर्तमान में दुष्कर्म के मामलों का ज्यादा ही दुष्प्रचार किया जा रहा है। बात सही भी है जिन मामलों में देश के नीति निर्धारकों को शर्म आना चाहिए, उन मामलों पर राजनीति की जा रही है, कांगे्रस की भूमिका को देखकर यही कहा जा सकता है कि बुरा जो देखन में चला, बुरा न मिलया कोय, जो दिल खोजा आपना मुझसे बुरा न कोय। जब हम किसी पर आरोप लगाते हैं तो हमें अपना भी अध्ययन करना चाहिए, कि हम किस देश के निवासी हैं, उस देश के संस्कार क्या हैं? ऐसे मामलों में सरकार का साथ देने की बजाय हम राजनीति करने लगते हैं, क्या यह शर्म की बात नहीं है?
इसलिए ही राष्ट्रवादी संगठनों द्वारा हर बार कहा जाता है कि जब तक भारत में बुरी बातों का प्रचार बंद हो जाएगा और अच्छी बातों का सकारात्मक प्रचार किया जाएगा, उस दिन समाज अच्छी राह पर चल सकता है। हर दिन समाचार माध्यमों में समाज द्वारा किए गए बुरे कामों को ही प्रचारित किया जाना वर्तमान का फैशन बन गया है। हमारे देश के समाचार माध्यमों को भी सोचना चाहिए कि बुरी बातों का प्रचार कभी अच्छा नहीं हो सकता। इस देश में अच्छे भी काम हो रहे हैं, अच्छे कामों को प्रचारित किया जाएगा तो देश का मानस बदल सकता है। यह सत्य है कि एक बुराई को सौ बार बोला जाए तो वह सत्य जैसा प्रतीत होने लगता है, और समाज के सामने उसका अच्छा पक्ष नहीं आने के कारण वह सच को विस्मृत करने लगता। ऐसे में उसे बुराई का तो ध्यान रहता है, लेकिन सच क्या है, इसका पता नहीं होता।
अब देश में एक ऐसा कानून बन गया है कि 12 साल की बच्चियों से दुष्कर्म करने वालों को फांसी की सजा दी जाएगी। इस मामले में सरकार ने अपना काम कर दिया है, इससे सरकार की मंशा भी स्पष्ट हो जाती है कि वह दुष्कर्मियों से कठोर कानून से निपटना चाहती है। लेकिन सबसे बड़ा सच तो यह है कि हमारे देश में मात्र कानून बना देने से ही अपराध समाप्त नहीं हो सकते, इसके लिए समाज का जागरुक होना भी जरुरी है। कानून का पालन करना समाज और प्रशासन की जिम्मेदारी है। कानून का भय पैदा होना चाहिए। अब जिम्मेदारी अधिकारियों और समाज की है कि वह कानून का उपयोग करते हुए देश से दुष्कर्म जैसे अन्याय को समाप्त करने की दिशा में पहल करे। नहीं तो यह कानून भी पहले की तरह ही केवल कानून बनकर रह जाएगा।