जलगाँव – जैन समाज हमेशा से उद्यमी व परिश्रमी रहा है. अपने मेहनतकश जीवन, विशवास निर्माण के गुण, लगन व निष्ठा के चलते ही सकल जैन समाज ने विभिन्न क्षेत्रों में अपनी ख्याति अर्जित की है. लेकिन उपभोगवादी संस्कृति में जैन समाज इन सबका प्रदर्शन नहीं करता. जैन धर्म में अनेक धार्मिक परम्पराएँ , प्रथा व व्रतस्थ जीवन का आधार मौजूद है. भगवान् महावीर के आदर्श तत्व व संस्कार का अनुकरण करने का प्रयास किया जाता है. भगवान् महावीर ने समाज को शिक्षा – दीक्षा देते हुए सामान्य जीवन जीने के मन्त्र भी दिए हैं. जैन धर्म के अनुयायी इन मन्त्रों को मनुष्य के गर्भ अवस्था से मृत्यु तक निर्वहन करते हैं. विशेष यह है की इन सब नियमों के पालन के लिए किसी प्रकार की कठोरता नहीं है किन्तु जैन धर्मीय होने का नैतिक बंधन अवश्य है.
जैन धर्म के कठोर व्रतों में दीक्षा परंपरा, धार्मिक अनुशासन का एक मुलभुत भाग है. जीवन के उतार पर विरक्त होने, वानप्रस्थ स्वीकार करने के संस्कार तो लगभग प्रत्येक समाज में हैं. किन्तु जैन धर्म में दीक्षा परंपरा में व्रतस्थ रहने का कर्म यां कठोर कार्य यह किसी भी उम्र में होना स्मरणीय है. ख़ास बात यह है की यह विरक्ति साधक की इच्छा पर ही जाग्रत होती है. यदि हम जैन धर्म के साधू , संत, मुनि यां साध्वी जीवन को देखें तो उनके जीवन कार्यों से कठोर व्रतस्थ कार्य स्पष्ट होते हैं. जैन दीक्षा यह मनुष्य को भौतिक, शारीरिक सुखों से पूरी तरह से अलिप्त रखता है. वहीँ दीक्षा ही मनुष्य को परमार्थ , बौद्धीक सुख व समृद्धी का साक्षात्कार कराती है. जैन दीक्षा यह आत्म कल्याण के लिए है. जैन धर्म अर्थात आत्म कल्याण के लिए समस्त विजय.
मनुष्य अपने जीवन में नौकरी , व्यापार , व्यवसाय आदि में सफलता के लिए प्रयासरत रहता है. इसके अलावा शारीरिक, मानसिक विकार, लोभ , प्रलोभन पर भी विजय पाना महत्वपूर्ण होता है. इन सब पर विजय पाने के लिए ही दीक्षा रूपी संस्कार प्रमुख व प्रभावी होते हैं.
भगवान् महावीर ने दीक्षा लेने वाले साधकों को अहिंसा, सत्य, ब्रम्हश्चर्य, आचरण, अपरिग्रह आदि पांच मूल महाव्रतों का पाल्लं करने के निर्देश दिए. भगवान् महावीर का कहना है की निग्रह, निश्चय व त्याग करने वाला कर्म से साधू कहलाता है.
जैन धर्म में निरंतर दीक्षा महोत्सवों का आयोजन किया जाता है. इस परमार्थ के कठोर किन्तु आनंदित मार्ग पर व्रतस्थ रहने वाले साधकों , अनुयायियों को जैन मुनियों की उपस्थिति में दीक्षा दी जाती है. इसके पीछे का मूल कारण यह है की , दीक्षा प्राप्त करने के बाद किस प्रकार से जीवन यापन करना है, इस बात का अनुभा दीक्षार्थियों के साथ साथ अन्य को भी हो सके. इतना ही नहीं इस बात का अंदाजा व अनुभव भी उपस्थितों को पता चलता है की, जैन संत, साधू मुनि एवं साध्वी कैसा जीवन यापन करते हैं.
जलगाँव शहर में आगामी 06 फरवरी २०१७ को नागौर राजस्थान को हिमांशी कांकरिया को दीक्षा देने के लिए जैन भागवती दीक्षा समारोह होने जा रहा है. अखिल भारतीय श्री जैन रत्न हितैषी श्रावक संघ की और से यह पावन कार्यक्रम आयोजित किया गया है. रतनलाल सी. बाफना स्वाध्याय भवन में होने वाले इस कार्यक्रम के लिए जलगाँव का श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ सहयोग कर रहा है. इससे पहले भी जैन मुनि – संतों से पावन हुई जलगाँव की इस धरती पर जैन भागवती दीक्षा समारोह हो चुके हैं. दीक्षा लेने जा रहीं नागौर की हिमांशी कांकरिया बारहवीं की परीक्षा उत्तीर्ण कर अपना सारा समर्पण धर्माचरण में लगा दिया. वह हिंदी के अलावा अंग्रेजी, गुजराती ,व राजस्थानी भाषा बोल व पढ़ सकती हैं.
इस दीक्षा महोत्सव में ०५ फरवरी को भव्य शोभा यात्रा निकाली जायेगी. इस दौरान नागौर के कांकरिया परिवार का स्वागत सम्मान भी किया जायेगा. दुसरे दिन 06 फरवरी को सुबह ८.३० बजे जैन भागवती दीक्षा समारोह का शुभारम्भ होगा. विशेष बात यह है की व्याख्यात्री महासती इंदुबालाजी म. सा. व व्याख्यात्री महासती सुमतीप्रभाजी म. सा. आदि ठाणा ९ श्रमण संघीय तपस्वीराज श्रद्धेय श्री कानमुनिजी म. सा. आदि ठाणा व वर्धमान तप आराधिका महासती श्री सुशिलाकुंवर जी म. सा. आदि ठाणा के सानिध्य में यह दीक्षा समारोह संपन्न होगा.
इस दीक्षा महोत्सव का आयोजन जलगाँव के सुप्रसिद्ध उद्योगपति, शाकाहार प्रणेता रतनलाल सी. बाफना के नेतृत्व में विभिन्न संगठन कर रहे है. इनमे अखिल भारतीय श्री जैन रत्न हितैशी श्रावक संघ के अध्यक्ष पी. शिखरमल सुराणा, महामंत्री पूणराज अबानी, श्री जैन रत्न हितैशी श्रावक संघ जलगाँव के अध्यक्ष कंवरलाल संघवी, मंत्री पद्मचंद नाहर, वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ के अध्यक्ष दलीचंद जैन, मंत्री कस्तूरचंद बाफना एवं नागौर के कांकरिया परिवार प्रमुख हैं. इस जैन भागवती दीक्षा समारोहके लिए महार्शात्र, मध्यप्रदेश , गुजरात , राजस्थान से लोगों का आगमन होगा.