सूर्य से प्रकाश के अतिरिक्त ध्वनि भी प्रसारित होती है. यह आवाज इतनी मंद होती है कि पृथ्वी पहुंच ही नहीं पाती. पिछले दिनों अमरीका के अंतरिक्ष संस्थान ’नासा’ ने सूर्य से प्रसारित होने वाली ध्वनि को पकडने का प्रयत्न किया. नासा के वैज्ञानिकों को उस समय घोर आश्चर्य हुआ जब उन्हें पता चला कि सूर्य से लगातार “ऊँ“ की ध्वनि निकल रही है. भारत में ओंकार को बीज-मंत्र और अनहद नाद माना जाता है. हजारों वर्षों से भारतीय साधक और वैज्ञानिक “ऊँ“ की साधना करते आऐ हैं. सहस्त्रों वर्ष पहले उन्होंने सूर्य की ध्वनि का कैसे सुना होगा यह भी आश्चर्य का विषय है.
गौरवपूर्ण काल – पुरातत्व खोजों से ज्ञात होता है कि भारत के भू-भाग का मानव जाति के प्रारम्भ ही गहरे से भी गहरा सम्बन्ध था. पत्थरयुगीन मानव हिमालय के निम्न भाग में घूमता रहा. भारत के प्राचीनतम निवासी आर्य थे. आर्य किसी जाति का नाम नहीं है बल्कि वह गुणवाचक संज्ञा है. ’आर्य’ शब्द संस्कृत का शब्द है. किसी भी यूरोपियन भाषा का नहीं है. वैदिक साहित्य में यह शब्द बहुत बार आया है. ऋगवेद में यह शब्द 31 बार तथा अथर्ववेद में 5 बार यह श्रेष्ठ व्यक्ति के रूप में प्रयुक्त हुआ है.
प्रामाणिक प्राप्त तथ्यों, पुरातत्व साधनों तथा ऐतिहासिक ग्रन्थों से यह सिद्ध हो गया है कि आर्य भारत के मूल निवासी थे, वे कहीं भारत के बाहर से नही आये और न ही आक्रमणकारी के रूप में भारत पर आक्रमण कर यहां के मूल निवासियों को खदेडा परन्तु, यह भी सही है कि संस्कृति, सभ्यता तथा नैतिक जीवन का विस्तार करने, समय-समय पर आर्य भारत से बाहर गए. वैदिक सभ्यता भारत की आध्यात्मिकता का आदि स्त्रोत तथा विश्व में कर्म सिद्धान्त की दाता है. वेदों में चार पुरूषार्थ धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष का वर्णन है.
चारों मूल वेदों के हिन्दी में अनुवादकर्ता प्रो. (डॉ) ओमप्रकाश के अनुसार वेदों को ’मानव जाति के आदिग्रन्थ, प्राचीनतम आर्य संस्कृति की प्राचीनतम ज्ञान राशि तथा विश्व के लिए सर्वकालिक मार्गदर्शक दीप-स्तम्भ’ कहा है. इसमें मानव जीवन के आदर्शो, जीवन मूल्यों तथा जीवन प्रणाली का आदर्श प्रस्तुत किया. वैदिक संस्कृति में ग्राम, ग्राम-समुदाय तथा ग्राम पंचायतें होती थीं. खेतीबाडी तथा पशुपालन के महत्व दिया जाता था. परिवार मिलकर सामूहिक कार्य, यज्ञ तथा परस्पर विचार करते थे. इसमें से राष्ट्र-समिति भी बनी थी.
भारत में विविधता में एकता का गुण इसी काल में प्रारम्भ हुआ. वर्णाश्रम व्यवस्था बनी तथा जीवन को सफल बनाने के लिए संस्कारों की व्यवस्था एवं संस्कृति की भाषा संस्कृत थी. जो विष्व की जननी भाषा है. वैदिक सभ्यता में राजा से प्रजा तक सभी को कर्तव्यों के प्रति जागरूक किया है न कि अधिकारों के प्रति. संयुक्त परिवार प्रणाली थी तथा समाज में महिलाओं का बडा सम्मान था. प्रारम्भ में प्रकृति-पूजा प्रचलित थी तथा जीवन में नैतिकता को सर्वोच्च स्थान दिया जाता था. ’सादा जीवन उच्च विचार’ यह सामान्य जीवन का आदर्श था. जीवन का लक्ष्य सतकर्म करते हुए मोक्ष प्राप्ति होना था. (साभार – भोपाल विसंके)