नई दिल्ली. नोटबंदी को कल यानी 8 नवंबर को एक साल पूरा हो रहा है. कांग्रेस इस निमित्त कुछ ज्यादा ही आक्रामक हो रही है और कांग्रेस के साथ ही राकां व अन्य विपक्षी पाटियों ने 8 नवंबर को काला दिवस के रूप में मनाने का ऐलान किया है. इसके साथ ही वरिष्ठ नेताओं की ओर से भी नोटबंदी को लेकर तीखे बयान आ रहे हैं. इसी श्रृंखला में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने गुजरात में नोटबंदी को सरकार की ऑर्गनाइज्ड लूट बताया था. मनमोहन सिंह के इस बयान पर फाइनेंस मिनिस्टर अरुण जेटली ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में करारा जवाब दिया है. जेटली ने कहा कि नोटबंदी का फैसला अभूतपूर्व था. सरकार ने इसके जरिए अर्थव्यवस्था के भविष्य को बदलने का काम किया है. जेटली ने ये भी कहा कि लूट तो 2जी, कॉमनवेल्थ और कोयला घोटाले में हुई.
एक साल पहले का यथार्थ बदलना था
जेटली ने कहा, सरकार का ये आदेश हुआ था कि जो बड़े नोट हैं, वो लीगल टेंडर नहीं रहेंगे. कुछ वक्त के लिए, कुछ चीजों के लिए उस करंसी का प्रयोग हो सकता था. इसके बाद रिजर्व बैंक ने नई करंसी अनाउंस की थी. ये एक वॉटरशेड मूवमेंट था हमारी अर्थव्यवस्था के लिए. पूरे साल इस पर चर्चा होती रही. बीजेपी की ओर से हम लोग ये मानते हैं कि देश की अर्थव्यवस्था और देश के व्यापक भविष्य के लिए जो यथार्थ था उसे बदलना था. किसी भी अर्थव्यवस्था में कैश का डोमिनेशन 12.2 फीसदी हो और उसमें भी 86 फीसदी बड़े नोट हों. एक स्वाभाविक विचार है कि अगर कैश ज्यादा होता हो तो टैक्स इवेजन ज्यादा होता है. इससे ये होता कि जो टैक्स देता है वो उसका भी देता है जो टैक्स नहीं देता. यानी वो दोहरा कर देता है. क्योंकि टैक्स तो देना ही है. इसलिए साधन संपन्न आदमी जब साधन को जेब में रख लेता है तो ये अन्याय है. क्योंकि ये गरीब का हक है.
– भ्रष्टाचार के कारण जमा हुआ धन
जेटली ने कहा कि राजनीतिक व्यवस्था में जब ज्यादा कैश होता है तो ये एक भ्रष्टाचार का केंद्र और कारण बनता है. लेकिन, इस पर रोक लगाना कठिन होता है. सरकार ने एक के बाद एक कदम उठाए. एसआईटी, ब्लैक मनी लॉ, विदेशों से ट्रीटी को संशोधित करना. ट्रांसपेरेंसी ज्यादा लाना. खर्च किस तरह से हो. उस पर कंडीशन लगाना, बेनामी कानून लाना. इन डायरेक्ट व्यवस्था बदलना. इसके कई स्वाभाविक परिणाम हमने साल भर में देखे हैं. कैश का बैंकों के अंदर आना. इसलिए चाहे उसका एक्सपेंडिचर म्युचुअल फंड में हो, इंश्योंरेंसेज में हो. इन सब क्षेत्रों में अगर हम देखें तो पिछले एक साल में रिर्सोस बढ़े हैं. बैंकों के पास पैसा आया. फॉर्मल इकोनॉमी में पैसा और सुधार आया. नोटबंदी हर समस्या का हल नहीं है. लेकिन, इसने एजेंडा बदला.
– आतंकवाद को फंडिंग पर लगी रोक
जेटली ने कहा, कि बड़े नोट कम हुए. टेरर फंडिंग पर काफी हद तक रोक लगी. स्वाभाविक है कि किसी भी लोकतंत्र में इसकी आलोचना करने वाले भी होंगे. एक तर्क ये कि लोगों ने सारा पैसा बैंक में जमा कराया. ये तो अच्छा हुआ. जब ये बैंक में आता है तो ओनरशिप पता लग जाती है. 10 लाख ऐसे हैं जिन्हें टैक्स नेट में आना पड़ा. शेल कंपनियों का पता लगाना सरल हुआ. केवल बैंक में चला जाना, उससे नोटबंदी की सफलता और विफलता का पता नहीं चलता. इससे हम देश को फॉर्मल इकोनॉमी और लैस कैश की तरफ ले जाने में कामयाब हुई. री मोनेटाइजेशन भी कुछ महीनों में कर दिया. ये विश्व के सामने अद्भुत उदाहरण है. कांग्रेस की तरफ से विशेष रूप से विरोध किया गया. 10 साल तक पॉलिसी पैरालिसिस था कुछ नहीं किया गया. प्रधानमंत्री जी ने एक स्ट्रक्चरल रिफॉर्म करके बदलाव लाने का प्रयास किया है.
– लूट तो 2जी, कॉमनवेल्थ और कोयला घोटाले में हुई
जेटली ने कहा, कि यूपीए और एनडीए में एक मूलभूत अंतर है कि एक जगह पॉलिसी पैरालिसिस दिखता है तो दूसरी तरफ स्ट्रक्चरल रिफॉर्म. हैरानी इस बात की है कि हम नैतिक रूप से सही कदम उठा रहे हैं और उसको लूट कहना. हमने काले धन के खिलाफ कार्रवाई की. ये सैद्धांतिक तौर पर सही है. लूट तो 2जी, कॉमनवेल्थ और कोयला घोटाले में हुई. इसलिए मुझे लगता है कि एथिक्स के मामले में हमारा और कांग्रेस का नजरिया अलग है. हम देश की सेवा करना चाहते हैं. इसलिए प्राथमिक तौर पर नपे-तुले कदम उठाए. बीजेपी की तरफ से मानते हैं कि इस देश को एक विकसित देश बनना है तो ये भी जरूरी है कि लैस कैश पर ध्यान देना होगा. साफ सुथरी इकोनॉमी होना जरूरी है. पार्टी और सरकार एक साथ खड़े हैं.
– कालेधन के खिलाफ कांग्रेस ने कुछ नहीं किया
जेटली के मुताबिक, कि हम इसे उचित मानते हैं. कांग्रेस का एक इतिहास है कि उन्होंने ब्लैकमनी के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाया. जहां तक सवाल टारगेट्स का है. तो कुछ पाइप लाइन में है. हमारी कुछ लोगों पर नजर है. असेसमेंट प्रॉसेस चल रहा है. नए नोटों को लाने का सिलसिला तो नोटबंदी के फौरन बाद ही शुरू हो गया था. हमने पूरी तैयारी की थी.
– मनमोहन सिंह को तुलनात्मक अध्ययन करना चाहिए
एक सरकार की जो तैयारी होनी चाहिए थी. वो हमने सब की थीं. मनमोहन को अपनी सरकार और हमारी सरकार का तुलनात्मक अध्ययन करना चाहिए. इंटरनेशनली और नेशनली. 2014 के पहले और 2014 के बाद. वो ग्लोबल राडार पर कहीं नहीं थी. आज ग्लोबल एजेंसीज हमारे विकास की तारीफ कर रही हैं. इसे बेहतर रेटिंग दे रही हैं. करंसी मैनेजमेंट रिजर्व बैंक करता है. हम चाहते हैं कि डिजिटल करंसी का इस्तेमाल बढ़े. पहले ऐसा नहीं होता था. मनरेगा और टी गार्डन के मजदूरों को पैसा उनके अकाउंट में मिल रहा है.