मुरैना. शिक्षक पति नूरबख्श की दिवंगत शाकिरा बेगम की आखिरी इच्छा थी कि महिलाओं के लिए मस्जिद हो. नूरबख्श ने चाहा कि जमीन बेचकर उनका इलाज करा दिया जाए लेकिन शाकिरा का मन था कि उसी जमीन पर महिलाओं के लिए मस्जिद बना दी जाए. नूरबख्श अपनी पत्नी की इच्छा के आगे हार गए और शाकिरा बेगम के इंतकाल के बाद उनकी दिली ख्वाहिश पूरी कर दी. मुरैना में प्राध्यापक नूरबख्श ने अपनी पत्नी की अंतिम इच्छा को ध्यान में रखते हुए महिला मस्जिद का निर्माण कराया है. यहां पुरुषों के प्रवेश पर पूरी तरह पाबंदी है.
शहर के सुभाष नगर में रहने वाले प्राध्यापक नूरबख्श की धर्मपत्नी शाकिरा बेगम की तबीयत खराब हुई और इलाज के लिए घर के बगल की जमीन बेचने की तैयारी की गई. बीमार बेगम ने इस भूखण्ड को बेचने नहीं दिया और समाज की महिलाओं को कुरान की आयतें व दीन ईमान की शिक्षा-दीक्षा देने के लिये महिला मस्जिद निर्मित करने की अंतिम इच्छा व्यक्त कर दी.
– जमकर हुआ विरोध
शाकिरा बेगम के इंतकाल के बाद नूरबख्श ने इस भूखण्ड में महिलाओं की मस्जिद अल शकीरा मस्जिद के नाम से निर्मित करा दी, वहीं दीन धर्म ईमान की शिक्षा के लिये शकीना बेगम को नियुक्त कर दिया. समाज के कई धर्मावलंबियों ने इस पर ऐतराज भी जताया और नूरबख्श के खिलाफ फतवा भी जारी कर चुके हैं. लेकिन अल शाकिरा मस्जिद में नमाज व अध्ययन के लिये महिलाओं व बच्चियों की संख्या निरंतर बढ़ रही है.
मस्जिद के निर्माणकर्ता नूरबख्श धीरे-धीरे अपनी आय के अनुसार मस्जिद को विशाल रूप में देने में लगे हुए हैं. नूरबक्श की बहू सबीना सिद्दीकी का कहना है कि मेरी सास पहले मोहल्ले की औरतों को कुरआन शरीफ पढ़ाया करती थीं. उनके इंतकाल के बाद उनके नाम से यह मस्जिद बनाई गई. इस इलाके के अधिकतर घरों में इतनी जगह नहीं है कि महिलाएं घर पर नमाज पढ़ सकें इसलिए वह यहां आती हैं. साथ ही कई महिलाओं को कुरआन शरीफ और धर्म से जुड़ी अन्य बातों को समझने यहां आती है.
– पुरुषों को प्रवेश नहीं
अल शकीरा मस्जिद में ईद की नमाज के साथ-साथ जुमे की नमाज भी निर्धारित समय पर निरंतर अदा की जाती है. महिलायें व बच्चियां भी उत्साह के साथ इस मस्जिद व मदरसे में आती है. इस मस्जिद में पुरुषों का प्रवेश प्रतिबंधित रखा गया है.
अल शाकिरा मस्जिद में महिलाओं को नमाज अदा महिला इमाम द्वारा अदा नहीं करवाई जाती बल्कि महिला शिक्षिका शकीना बेगम द्वारा सिखाई गई नमाज की आयतों को स्वयं ही पढ़कर अदा की जाती है. बहरहाल अल शाकिरा मस्जिद में महिलाएं शिक्षिका की अध्ययन पश्चात नमाज व कुरान की आयतें पढ़ रही हैं. समाज को चाहिए कि नूरबख्श की इस पहल में सहयोग कर देश के सामने एक नई मिसाल पेश करे.