नई दिल्ली ( तेज़ समाचार प्रतिनिधि ) – गुरूवार को साल 2018 के लिए सरकार अपना आम बजट पेश करने जा रही है. आम बजट में सरकार पिछले साल विभिन्न स्त्रोतों के द्वारा कमाई गई धनराशि और अगले साल के लिए विभिन्न क्षेत्रों के लिए अपने प्लान को जनता के सामने प्रस्तुत करती है.
01 फरवरी गुरूवार को पेश होने वाले बजट पर आम नागरिक से लेकर हर वर्ग के लोगों की नज़रे इस पर रहेंगी. सरकार इस बार तमाम अन्य फैसलों के साथ ही इनकम टैक्स में क्या राहत देती है, किसानों को क्या राहत मिलेगी? 2019 में आम चुनावों से पहले यह वित्त मंत्री अरूण जेटली पेश करने की तैयारी में है.
आम बजट समझने से पहले बज़त से जुड़े कुछ शब्दों के बारे में जानना जरुरी है. पूर्व के दशकों में लोगों को बजट में सस्ती होने वाली व महंगी होने वाली चीजों के बारे में उत्सुकता रहती थी. अब बहुत से प्रावधान बदल रहे हैं. बजट की भाषा भी समझने का प्रयास किया जाता है.
फरवरी में क्यों पेश होता है बजट?
बजट पहले फरवरी के आखिरी वर्किंग डे पर पेश होता था, लेकिन मोदी सरकार ने इसे अब बदल दिया. इसे फरवरी के पहले वर्किंग डे में पेश करने का फैसला लिया था. इसलिए फरवरी में बजट पेश होता है. वित्त मंत्री सुबह 11 बजे अपने बजट भाषण से शुरू करते हुए बज़ात पेश करेंगे .
आम बजट और अंतरिम बजट?
आम बजट की तरह यह अंतरिम बजट या वोट फॉर अकाउंट में सिर्फ सरकार के खर्चें की ही जानकारी होती है. इसमें नई योजनाओं और टैक्सेशन में भी किसी तरह के बदलाव का ऐलान नहीं होता है.
डायरेक्ट टैक्स यानी की प्रत्यक्ष कर ?
डायरेक्ट टैक्स यानी की वह टैक्स, जिसे आपसे सीधे तौर पर वसूला जाता है. मसलन, इनकम टैक्स, व्यवसाय से आय पर कर, शेयर या दूसरी संपत्तियों से आय पर कर, प्रॉपर्टी टैक्स अदि.
इनडायरेक्ट टैक्स यानी की अप्रत्यक्ष कर ?
इन्डायरेक्ट टैक्स यानी वह टैक्स, जिसे आप सीधे नहीं जमा कराते, लेकिन यह आप ही से किसी और रूप में वसूला जाता है. देश में तैयार, आयात या निर्यात किए गए सभी सामानों पर लगाए जाने वाले कर को अप्रत्यक्ष कर कहते हैं. इसमें उत्पाद कर और सीमा शुल्क शामिल किए जाते हैं.
क्या उम्मीद बजट से ?
सरकार की ओर से इनकम टैक्स और कॉर्पोरेट टैक्स में काटौती किए जाने की उम्मीद की जा रही है. किसी भी सरकार के आखिरी फुल बजट पर पैनी नज़र होती है. वह तमाम स्कीमों के लिए क्या फंड आवंटित करती है. गौरतलब है कि पीएम मोदी ने पहले ही इंटरव्यू में सचेत कर दिया था कि यह लुभावना बजट नहीं होगा.
इनकम टैक्स ?
वह टैक्स, जो सरकार आपकी आय पर आपसे लेती है. वर्तमान में लागू नियमों के मुताबिक आपकी आमदनी के पहले ढाई लाख रुपये पर कोई कर नहीं लगता. ढाई लाख के बाद की कमाई पर टैक्स लगता है.
औद्योगिक कर ?
ये टैक्स औद्योगिक प्रतिष्ठानों पर लगाया जाता है. यह टैक्स उस प्रतिष्ठान के मालिक पर लगाये गये व्यक्तिगत कर से अलग होता है.
एक्साइज़ ड्यूटी ?
यह देश में बने और यहीं बिकने वाले सामान पर वसूला जाता है. कंपनियों को फैक्ट्री में से सामान निकालने से पहले इसे भरना ज़रूरी है. ज़रूरी नहीं कि एक ही तरह की चीज़ों पर बराबर एक्साइज़ ड्यूटी लगाई जाए. यह सरकार की कमाई के सबसे बड़े साधनों में से एक है.
जीएसटी का बजट पर असर ?
बजट स्पीच दो हिस्सों में होती है. पहले भाग में सरकार मौजूदा योजनाओं के लिए बजट और नई योजनाओं के ऐलान आदि किए जाते हैं. दूसरे पार्ट में टैक्स की बात होती है. जिसमें इस बार जीएसटी लागू होने के बाद में डायरेक्ट टैक्स की संख्या तौर पर बात होगी. इनडायरेक्ट टैक्स के मामले में सिर्फ पेट्रोल पर लगने वाले टैक्स और कस्टम ड्यूटी पर ऐलान होंगा.
FDI यानी कि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश ?
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई): किसी विदेशी कंपनी द्वारा भारत स्थित किसी कंपनी में अपनी शाखा, प्रतिनिधि कार्यालय या सहायक कंपनी द्वारा निवेश करने को प्रत्यक्ष विदेशी निवेश कहते हैं.
राजस्व कर यानी की Tax revenue ?
सरकार टैक्स लगा कर जो रेवेन्यू हासिल करती है, उसे टैक्स रेवेन्यू कहा जाता है. आमतौर पर सरकार विभिन्न प्रकार के टैक्स लगाती है, ताकि योजनागत और गैर-योजनागत व्यय के लिए धन (पैसा) एकत्र कर सके. आमतौर पर सरकार की इनकम का प्राथमिक व प्रमुख स्रोत टैक्स ही होता है.
गैर राजस्व कर यानी की Non tax revenue ?
नॉन टैक्स रेवेन्यू वह राशि है, जो सरकार टैक्स के अतिरिक्त अन्य साधनों से एकत्र करती है. इसमें सरकारी कंपनियों के डिसइनवेस्टमेंट से मिली राशि, सरकारी कंपनियों से मिले हुए लाभांश और सरकार द्वारा चलाई जाने वाली विभिन्न इकोनॉमिक सर्विसेज के बदले में मिली राशि शामिल होती है.
प्राथमिक घाटा ?
देश के वित्तीय घाटे और ब्याज की अदायगी के अंतर को प्राथमिक घाटा कहते हैं. प्राथमिक घाटे के आंकड़े से इस बात का पता चलता है कि किसी भी सरकार के लिए ब्याज अदायगी कितनी बड़ी या छोटी समस्या है.
चालू खाते का घाटा यानी कि Current account deficit ?
चालू खाते का घाटा यानी करंट अकाउंट डेफिसिट देश में फॉरेन करंसी की टोटल इंवेस्टमेंट और निकासी का अंतर बताता है. फॉरेन करंसी की इंवेस्टमेंट, एक्सपोर्ट, कैपिटल मार्केट में इंवेस्टमेंट, डायरेक्ट फॉरेन इंवेस्टमेंट और विदेशों में रह रहे लोगों द्वारा स्वदेश भेजे गए पैसे यानी रेमिटेंस के जरिए होती है. जब फॉरेन करंसी की निकासी आवक से ज्यादा होती है, तो घाटा होता है.
राजस्व घाटा यानी कि Revenue Deficit ?
राजस्व घाटे का मतलब सरकार की अनुमानित राजस्व प्राप्ति और एक्सपेंडिचर में अंतर होता है. आमतौर पर किसी वित्त वर्ष के लिए सरकार राजस्व प्राप्ति और अपने खर्च का एक अनुमान लगाती है. लेकिन, जब उसका व्यय उसके अनुमान से बढ़ जाता है, तो इसे राजस्व घाटा कहा जाता है.
सब्सिडी ?
किसी सरकार द्वारा व्यक्तियों या समूहों को नकदी या कर से छूट के रूप में दिया जाने वाला लाभ सब्सिडी कहलाता है. भारत जैसे कल्याणकारी राज्य (वेलफेयर स्टेट) में इसका इस्तेमाल लोगों के हितों को ध्यान में रखते हुए किया जाता है. केंद्र सरकार ने आजादी के बाद से अब तक विभिन्न रूपों में लोगों को सब्सिडी दे रही है, चाहे रसोई गैस सब्सिडी हो या फूड सब्सिडी. लेकिन, सरकार अब धीरे-धीरे सब्सिडी को खत्म करने की ओर कदम बढ़ा रही है.
राजकोषीय घाटा यानी कि Fiscal Deficit ?
वित्तीय घाटा बताता है कि किसी वित्त वर्ष के दौरान सरकार की कुल आमदनी (उधार को छोड़कर) और कुल खर्च का अंतर कितना है. वित्तीय घाटे के बढ़ने का मतलब होता है कि सरकार की उधारी बढ़ेगी. यहां ये समझना जरूरी है कि अगर उधारी बढ़ेगी, तो ब्याज की अदायगी भी बढ़ेगी. ब्याज का बोझ बढ़ने से सरकार के राजस्व घाटे पर नकारात्मक असर पड़ेगा.
राजकोषिय घाटा ?
फिस्कल डेफिसिट यानी राजकोषिय घाटे का अर्थ जो सरकार को होने वाली आय और खर्च के बीच के अंतर से होता है. इसमें सरकार की आय में उसके द्वारा लिए गए कर्ज को शामिल नहीं किया जाता है. आमतौर पर सरकार इसे जीडीपी के अनुपात में मापती है. इस साल राजकोषीय घाटे के जीडीपी के 3.2 प्रतिशत रहने का अनुमान है. 29 जनवरी को सरकार को आर्थिक सर्वे पेश किया गया जिसमें अर्थव्यवस्था के आकड़े और ग्रोथ की जानकारी दी गई.
सरकार के मुख्य आय और खर्च ?
इन दोनों को ही कैपिटल और रेवेन्यू के अंतर्गत अलग किया जा सकता है. कैपिटल एक्सपेंडिचर का इस्तेमाल सड़कें बनाने और लोन माफ करने जैसे कदमों के लिए होता है. दूसरी ओर रेवेन्यू एक्सपेंडिचर का इस्तेमाल सैलरीज देने और प्रशासनिक खर्चों के लिए होता है. इसी तरह कैपिटल रिसीप्ट्स यानी आय को सरकार को मिलने वाले घरेलू और विदेशी राजस्व के तौर पर देखा जाता है. इसमें राज्य सरकारों की ओर से चुकाए गए लोन, सरकारी कंपनियों के विनिवेश, टैक्स कलेक्शन, सरकारी कंपनियों का लाभांश और टेलिकॉम लाइसेंस जैसी आय शामिल है.
80C की बचत ?
आप अपनी आमदनी में से इंश्योरेंस, सीपीएफ, जीपीएफ, पीपीएफ, नेशनल सेविंग्स सर्टिफिकेट (एनएससी), टैक्स बचाने वाले म्यूचुअल फंड, पांच साल से ज़्यादा की एफ़डी, होम लोन के प्रिंसिपल (मूलधन) जैसे निवेशों में लगा सकते हैं, और ऐसे ही निवेशों को जोड़कर डेढ़ लाख रुपये तक के निवेश पर टैक्स में छूट दी जाती है… इस डेढ़ लाख रुपये को आपकी कुल आय में से घटा दिया जाता है और उसके बाद इनकम टैक्स का हिसाब लगाया जाता है.
अनुदान मांगे ?
बजट में शामिल सरकार के खर्चों के अनुमान को लोकसभा अनुदान की मांग के रूप में पास करती है. हर मंत्रालय की अनुदान की मांगों को सरकार सिलसिलेवार तरीके से लोकसभा से पास कराती है.
लेखानुदान मांगें ?
बजट को संसद में पारित कराने में लंबा समय लगता है. ऐसे में सरकार एक अप्रैल से पहले पूरा बजट पारित नहीं करा पाती. इस स्थिति में अगले वित्त वर्ष के शुरुआती दिनों के खर्च के लिए सरकार संसद की मंजूरी लेती है. इन्हीं मांगों को लेखानुदान मांगें कहते हैं..
यदि चुनाव अपै्रल 2019 में तो आखिरी बजट कैसे?
चुनाव जब करीब होते हैं तो सरकार उससे पहले अंतरिम बजट पेश करती है, जो दो महीनें के लिए होता है, जिसके लिए सरकार को ससंद की मंजूरी लेना होती है. अंतरिम बजट में सिर्फ सरकार के खर्चों का हिसाब होता है, लेकिन इसमें आय का ब्योरा शामिल नहीं होती है. इसलिए चुनाव से एक साल पहले पेश होने वाला बजट की सरकार का आखिरी पूर्ण बजट होता है.