नई दिल्ली (तेज समाचार डेस्क). गुरुवार को देश में कईं जगहों पर हुए उपचुनावों के परिणाम घोषित किए गए. इन उपचुनावों में भाजपा को स्थानीय गठबंधनों के कारण हार का सामना करना पड़ा है. हालांकि भाजपा उपचुनावों में मिली इस हार को अभी गंभीरता से नहीं ले रही है, लेकिन ये परिणाम बहुत कुछ संकेत दे रहे हैं. अगर विपक्ष एकजुट होता है, तो भाजपा की हार की आशंका को नकारा नहीं जा सकता. जहां भी विपक्ष बंटा हुआ नजर आता है, वहां भाजपा जीत जाती है. इस बार उपचुनाव में यही देखने को मिला.
– 2019 के लिए भाजपा को बनानी होगी मजबूत रणनीति
जाहिर है कि ऐसे में 2019 तक क्या यही रणनीति बनी रहेगी. क्या विपक्षी पार्टियां अपने अहं को पीछे रख सकती हैं. छोटी से छोटी पार्टी क्यों न हो, सबकी आकांक्षा चुनाव जीतने की रहती है. वह सौदेबाजी पर अड़ी होती है. यही वजह है कि कई बार समझौते नहीं होते हैं. इसका खामियाजा ऐसी ही पार्टियों को भुगतना पड़ता है. मतलब साफ है. उन्हें कहीं न कहीं अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण रखना होगा. अति महत्वाकांक्षा के चक्कर में ज्यादा से ज्याद सीटों की मांग न करें.
– कैरान लोकसभा सीट पर विपक्ष का कब्जा
कैराना लोकसभा सीट, जो भाजपा की सीट थी, वहां अब विपक्षी का कब्जा हो गया है. यह जाट बहुल क्षेत्र है. 2013 में यहां पर दंगे हुए थे. उसके बाद 2014 के चुनाव में जबरदस्त गोलबंदी हुई थी. भाजपा चुनाव जीत गई. बसपा और सपा अलग-अलग चुनाव लड़ी थी. भाजपा के हुकुम सिंह को 50 फीसदी से ज्यादा वोट हासिल हुआ था. यानी सपा, बसपा और आरएलडी के वोटों को मिला दें, उससे भी ज्यादा वोट. लेकिन इस बार स्थिति पलट गई.
– सिर्फ हिन्दुत्व फैक्टर से काम नहीं चलेगा
2017 विधानसभा चुनाव में भी भाजपा ने पांच में से चार विधानसभा पर कब्जा जमाया था. यहां मुस्लिम 35 फीसदी हैं. विधानसभा में दलितों ने बड़ी संख्या में भाजपा का समर्थन किया था. नूरपुर विधानसभा सीट पर भी ऐसा ही कुछ हुआ. यहां के किसान गन्ना के मूल्यों को लेकर सरकार से नाराज चल रहे थे. ये माना जा सकता है कि हिंदुत्व फैक्टर ही अकेले भाजपा को जीत नहीं दिलाएगी. जातीय अपील धर्म पर भारी पड़ रहा है.
– गोरखपुर-फूलपुर उपचुनाव ने दिए खतरे के संकेत
2014 में भाजपा को 71 सीटें मिली थीं. 2019 में विपक्षी एकता यूपी में भाजपा का खेल बिगाड़ सकती है. गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा उपचुनाव पहले ही ये संदेश दे चुका है.
बिहार में जोकीहाट और झारखंड में जेएमएम की जीत से विपक्ष गदगद है. जहां तक जोकीहाट की बात है, तो हाल ही में लोकसभा उपचुनाव हुए थे, उस दौरान भी जोकीहाट से जेडीयू की हार हुई थी. लिहाजा, अभी यहां से कोई निष्कर्ष निकालना सही नहीं होगा.
– सहयोगी पार्टियों से बात करनी होगी
दूसरी बात ये है कि बिहार में भाजपा के पास जेडीयू जैसी मजबूत सहयोगी है. लिहाजा, यहां के परिणाम यूपी की तर्ज पर जाएंगे, ऐसी संभावना कम दिखती है. हालांकि, उपचुनाव में हार पर जेडीयू के केसी त्यागी ने कहा कि भाजपा के सहयोगी अलग-थलग महसूस कर रहे हैं. इसका अर्थ है कि भाजपा को अपने सहयोगियों से बात करनी होगी. उसे जेडीयू और शिवसेना की नाराजगी दूर करनी होगी.
– वोट के बंटवारे से पालघर जीती भाजपा
पालघर लोकसभा में भाजपा की जीत का श्रेय विपक्षी वोट के बंटवारे को जाता है. यहां शिवसेना ने अपना उम्मीदवार खड़ा किया था. भंडारा-गोंदिया लोकसभा उपचुनाव में कांग्रेस ने एनसीपी का साथ दिया. भाजपा ये सीट भी हार चुकी है. पलूस काडेगांव विधानसभा सीट पर कांग्रेस को निर्विरोध जीत मिली है. पंजाब में कांग्रेस ने अकाली-भाजपा को झटका दे दिया है.
– सहयोगियों की संख्या बढ़ानी होगी
लिहाजा, कहा जा सकता है कि भाजपा को अपने सहयोगियों की संख्या बढ़ानी होगी. उनके साथ साम्यता स्थापित करनी होगी. जहां-जहां भाजपा मजबूत है, वहां उसे अपने सहयोगियों को मनाना होगा. हो सकता है, कई बार भाजपा को ऐसी स्थिति में अपनी सीटें गंवानी भी पड़े, तो उसे इस पर खुले मन से विचार करना चाहिए.
– भाजपा को अपनी छवि बचानी होगी
भाजपा को अपनी छवि तोड़नी होगी. जीतने के लिए किसी भी उम्मीदवार को टिकट देना उतना महत्वपूर्ण नहीं होता है, जितना महत्व पार्टी की छवि को बचाना होता है. देश हर हाल में 1996 वाली स्थिति नहीं देखना चाहता है, जहां छोटी पार्टियां बड़ी पार्टी को ‘ब्लैकमेल’ करे या फिर देश में अस्थायी सरकार की बहाली हो.