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भारत को करनी चाहिए बलूच नेताओं की मदद – अशोक श्रीवास्तव

Tez Samachar by Tez Samachar
November 18, 2016
in दुनिया
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भारत के सार्वजानिक मंच पर पहली बार बलूचिस्तान का मुद्दा उठा कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर गर्मियां पैदा कर दी. भारतीय मिडिया ने मानवधिकार उल्लंघन के इस विषय को जिस तरह से उठाया उससे पकिस्तान की बौखलाहट साफ़ देखी जा सकती है. प्रधानमंत्री द्वारा की गई बात के उपरान्त तेज़ी से घटनाक्रम बदलते रहे. त्वरित ही दूरदर्शन जैसे सरकारी प्रसारण मंच ने बलूचिस्तान के निर्वासित और बलूच रिपब्लिकन पार्टी (बीआरपी) केअध्यक्ष ब्रह्मदाग बुगती का एक साक्षात्कार प्रसारित कर मीडिया की दिशा ही बदल दी. इन सबके बाद ही आकाशवाणी पर बलूचिस्तान भाषा में प्रसारण की घोषणा की गई . डी.डी.न्यूज़ के वरिष्ठ संवाददाता अशोक श्रीवास्तव द्वारा जिनेवा में लिए गए इस साक्षात्कार को ही मीडिया क्षेत्र में बलूचिस्तान सुर्ख़ियों के लिए टर्निग प्वाईंट माना जा रहा है. वरिष्ठ संवाददाता अशोक श्रीवास्तव द्वारा लिया गया यह साक्षात्कार भारतीय मीडिया के किसी भी चैनल पर प्रसारित प्रथम प्रयास था. उनसे साक्षात्कार के अनछुए पहलुओं पर बातचीत की    unnamed पत्रकार विशाल चड्ढा (9890874467 )  ने, इस साक्षात्कार को विशेष रूप से महाराष्ट्र के  दैनिक जलगाँव तरुण भारत के दीपावली अंक के लिए लिया गया है…साभार

प्रश्न – बलूचिस्तान आज़ादी पर आपके प्रसारित साक्षात्कार ने इस मुद्दे पर गर्मागर्म बहस छेड़ दी है. अब तक राष्ट्रिय व अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में कश्मीर की बात की जाती रही है किन्तु अब बलूचिस्तान के मानवाधिकार, अधिकार व आज़ादी पर बहस हो रही है. इस गंभीर विषय पर अचानक कहाँ से योजना बनी ?

अशोक श्रीवास्तव – २५ दिसम्बर २०१५ , सुबह के करीब साढे चार बज रहे थे . अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी काबुल की सड़कों पर घना अँधेरा था. एक बुलेट प्रूफ गाडी में मैं और मेरा कैमरामन एअरपोर्ट की तरफ बढ़ रहे थे. धुंध भरी सड़कों पर सिर्फ सुरक्षा बलों के जवान दिख रहे थे. कई सुरक्षा चक्रों से गुजरते हुए हम एअरपोर्ट पहुंचे और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विमान की प्रतीक्षा करने लगे . प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी उस दिन भारत के सहयोग से बनी अफ़ग़ानिस्तान के संसद की नई ईमारत का उद्घाटन करने काबुल पहुँच रहे थे. मैं अकेला भारतीय पत्रकार था जो काबुल में इस ऐतिहासिक घटना की रिपोर्टिंग करने के लिए वहां मौजूद था.दिन के करीब १२ बजते बजते अफ़ग़ान संसद का उद्घाटन कार्यक्रम समाप्त हो गया था, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को यहाँ से वापस दिल्ली लौटना था. अचानक खबर आई की नरेन्द्र मोदी का विमान काबुल से सीधा दिल्ली के लिए उड़ान नहीं भरेगा. विमान अब लाहौर जायेगा, लाहौर यानी पाकिस्तान. चंद मिनटों में ये ब्रेकिंग न्यूज़ साल २०१५ की सबसे बड़ी खबर बन गयी. वर्ष २००२ के बाद पहली बार कोई भारतीय प्रधानमंत्री पाकिस्तान जा रहा था. उसके बाद उस दिन जो कुछ हुआ वो कभी न भूलने वाला इतिहास बन चुका है. भारत – पाकिस्तान में तमाम राजनेता हतप्रभ थे , राजनयिक हैरान और पत्रकार परेशान थे की आखिर ये क्या हो रहा है. चुनावों से पहले जो नरेन्द्र मोदी पाकिस्तान चुनौती देते नज़र आ रहे थे, प्रधानमंत्री बनने के बाद नवाज़ शरीफ के जन्मदिन पर उनका इस तरह पाकिस्तान जाना बहुत से लोगों को नागवार गुज़रा था. मुझे याद है मैंने भी जब २०१४ के लोकसभा चुनावों के दौरान नरेन्द्र मोदी का सबसे चर्चित और विवादित इंटरव्यू किया था , उस इंटरव्यू में भी पाकिस्तान के संबंधों पर सवाल मैंने पुछा था तब उसके जवाब में नरेन्द्र मोदी ने कहा था की भारत पाकिस्तान संबंधों में समस्या दिल्ली की है. उनका इशारा साफ़ था की भारत की सरकार पाकिस्तान से सही तरीके से ‘डील’ नहीं कर रही.तो क्या अब प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेन्द्र मोदी पाकिस्तान की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ा कर, पाकिस्तान का दौरा करके पाकिस्तान से ‘डील’ करना चाहते हैं ? ये तो अटल बिहारी वाजपयी सहित कई प्रधानमंत्री कर चुके हैं. इससे उन्हें भला क्या हासिल होगा ? ये सवाल सबके मन में उठ रहा था, मोदी के विरोधियों में भी और उनके समर्थकों में भी.उस दिन, दिन भर चले नाटकीय घटनाक्रम के बाद देर शाम मैंने एक ट्वीट किया और लिखा- ‘साल २०१६ , नरेन्द्र मोदी की पाकिस्तान नीति का निर्णायक वर्ष होगा’.

करीब ८ महीने बाद १२ अगस्त २०१६ को मेरा यह आंकलन सही साबित हुआ जब कश्मीर पर नई दिल्ली में सर्वदलीय बैठक के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर और बलूचिस्तान में मानवाधिकारों का मुद्दा उठाया. मोदी सिर्फ इतने पर ही नहीं रुके ,तीन दिन बाद १५ अगस्त को लालकिले की प्राचीर से राष्ट्र को संबोधित करते हुए उन्होंने एक बार फिर बलूचिस्तान का जिक्र किया और वहां के लोगों को धन्यवाद किया और एक नया इतिहास लिख दिया , क्यूँकी आज तक कभी ऐसा हुआ नहीं की लाल किले की प्राचीर से किसी प्रधानमंत्री ने ऐसा बलूचिस्तान का जिक्र किया हो. मैं मानता हूँ ये मोदी का मास्टर स्ट्रोक है.

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प्रश्न – प्रधानमन्त्री द्वारा बलूचिस्तान की बात उठाने के बाद ही आपको क्यों लगा की प्रसारण माध्यमों में यह विषय उठाना चाहिए ?

अशोक श्रीवास्तव – बलूच लोग 11 अगस्त को अपना आज़ादी दिवस मानते हैं. दूसरे दिन 12 अगस्त व 15 अगस्त को प्रधानमंत्री ने बलूचिस्तान का मुद्दा उठाया तो मुझे लगा की अब बलूचिस्तान की बात होनी चाहिए. यदि सही बताऊँ तो मैं लगभग डेढ़ साल से बलूचिस्तान के ऊपर कवरेज़ कर रहा था . बलूचिस्तान के लोगों ट्विटर व सोशल मीडिया के माध्यम से मुझसे संपर्क किया. उनका कहना था की आप सीनियर पत्रकार हैं, बलूचिस्तान पर अपने माध्यम से कुछ बात उठाइए . मैंने उन लोगों से बलूचिस्तान पर जानकारियाँ मंगवाई. मेरे पास जो तस्वीरें आईं वो बलूची लोगों की थी, ये तस्वीरें देख कर किसी का भी कलेजा काँप जाता. किसी की आँख नहीं थी , किसी के सर में छेद कर रखा था तो किसी के शरीर से अंग निकाल रखा था.यह तस्वीरें दर्शा रहीं थी की पाकिस्तान किस बेरहमी से बलूचिस्तान के लोगों को मार रहा है. सोशल मीडिया पर मैं लगातार बलूचिस्तान पर यह सब लिख व देख रहा था . जब प्रधानमंत्री ने इस मुद्दे पर कहकर बात की तो मुझे लगा की अब वक्त आ गया है की मुझे डी डी न्यूज़ के माध्यम से इस पर कुछ काम करना चाहिए. त्वरित ही मैंने डी डी की डायरेक्टर जनरल को प्रस्ताव दिया गया . एक प्रक्रिया के उपरांत बलूचिस्तान के निर्वासित और बलूच रिपब्लिकन पार्टी (बीआरपी) के अध्यक्ष ब्रह्मदाग बुगती का साक्षात्कार करना तय हुआ. ब्रह्मदाग बुगती का जिनेवा या विदेश में जा कर भारतीय मीडिया पर साक्षात्कार करने का यह पहला मौका था. यह एक एक्सक्लूसिव साक्षात्कार था इस लिए इसका ज्यादा ज़िक्र भी नहीं किया गया.

प्रश्न – साक्षात्कार को लेकर क्या उत्सुकता थी और आपका क्या अनुभव रहा ?

अशोक श्रीवास्तव – लगातार 14 -15 घंटे की यात्रा कर हमारी टीम शाम लगभग साढ़े सात बजे जिनेवा पहुँचे. हमने बुगती से बात की तो उन्होंने कहा की आप अभी आये हैं थके होंगे इस लिए कल इंटरव्यू कर लें. मैं एक्साइटेड था. मैंने सोचा की हम जिस काम के लिए आयें हैं पहले वह करना चाहिए. और मैंने उसी दिन साक्षात्कार करने की बात कही. हम रात लगभग 11.30 बजे ब्रह्मदाग बुगती के निवास पर पहुंचे. मेहमान नवाजी के साथ रात ढाई बजे साक्षात्कार ख़तम हुआ. दुसरे दिन हमारी टीम वापिस लौट आई.

प्रश्न – क्या बलूचिस्तान पर त्वरित साक्षात्कार पीएमओ की कोई रणनीति का हिस्सा था ?

अशोक श्रीवास्तव – बिलकुल यह साक्षात्कार मेरा निजी प्रयास था, मुझे डी डी के अधिकारीयों का सहयोग था, कुछ बाते नहीं खोली जा सकती हैं .

प्रश्न – साक्षात्कार के दौरान बलूचिस्तान में चल रही मानवीय बर्बरता पर आपका क्या नजरिया रहा ?

अशोक श्रीवास्तव – ब्रह्मदाग बुगती से साक्षात्कार के दौरान मैंने मानवाधिकार हनन पर अधिक बात नहीं की . क्योंकि आप सोशल मिडिया पर जायेंगे तो तस्वीरें , बर्बरता सबके बारें तमाम जानकारियाँ मिल जाएँगी. हां ! इसे रोका कैसे जा सकता है इस बात हुई . जब मैं बलूचिस्तान पर रिसर्च कर रहा थ तब मुझे पकिस्तान के कुछ अखबारों की ख़बरें पढने को मिलीं की बलूचिस्तान मुद्दे पर ब्रह्मदाग बुगती पकिस्तान सरकार से बातचीत करने को तैयार हैं. कुछ बातों पर डील हो सकती है. मुझे लगा की ब्रह्मदाग बुगती बातचीत के लिए तैयार हैं तो मानवाधिकार हनन पर भी बात करेंगे, लेकिन जब मैंने बुगती से इस बारे में बात की तो उन्होंने पूरी तरह से खंडन करते हुए बताया की पाकिस्तानी अखबार झूठ बोलते हैं. हम बात जरुर करना चाहते हैं लेकिन सिर्फ बलूचिस्तान की आज़ादी पर ही बातचीत होगी. उन्होंने कहा पाकिस्तान सरकार , आर्मी आये, बैठे, हम उनसे कहेंगे बलूचिस्तान हमारा देश है यहाँ से अपनी सेना हटाओ, हमें आज़ादी दे दो, इससे ज्यादा कोई बातचीत नहीं होगी . ब्रह्मदाग बुगती ने साक्षात्कार के दौरान बताया की हमने कई बार पाकिस्तान पर भरोसा किया, कई बार सोचा साथ रह लें, लेकिन पकिस्तान अब भरोसे के लायक ही नही है. वहां की आर्मी ने हमेशा बलूच लोगों को मार के निकाला है. अब पकिस्तान चीन के साथ मिलकर आर्थिक कोरिडोर बना रहा है, वो बलूचिस्तान व पीओके से गुजरेगा. यह पकिस्तान की सीधी सीधी साजिश है. चीन की सेना प्रवेश कर जाये फिर पाकिस्तानी आर्मी के लोग , पंजाबी लाकर वहां बसा दिए जाएँ.ऐसा करके बलूच लोगों को अल्पसंख्यक बना दिया जाये. इस सारे षड्यंत्र में पकिस्तान पूरी तरह से बलूच को ख़त्म करने पर अमादा है. ऐसे में हम पकिस्तान के साथ बिलकुल नहीं रह सकते और हमें हमारा स्वतंत्र बलूचिस्तान चाहिए. मुझे लगता है की भारत भी कई बार पकिस्तान से धोखा खा चुका है. अब बलूचिस्तान भी धोखा खाए.इस लिए मुझे लगता है की अब कोई रास्ता नहीं बचा है. अब सिर्फ बलूचिस्तान बने तभी वहां के लोगों का नरसंहार रोका जा सकता है.और इसके लिए भारत को कूटनीतिक टूर पर कुछ बडे कदम उठाने होंगे, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर समर्थन जुटाने होंगे. साथ ही साथ बलूच लोगों के बीच भी एकता करानी होगी. इन सबको एक मंच पर लाना पड़ेगा. मुझे लगता है की भारत इसमें बड़ी भूमिका निभा सकता है. क्योंकि दिक्कत यह है की बलूचिस्तान के नेता अपनी जान बचाने के लिए पाकिस्तान से निकल चुके हैं, कोई कनाडा में रह रहा है, कोई इसराइल में रह रहा है. यह सभी नेता आन्दोलन के लिए ज्यादा हलचल नहीं कर सकते. आखिर मिले तो कहाँ मिलें. इन सबके लिए भारत को अहम् भूमिका निभानी चाहिए, तभी बलूचिस्तान आन्दोलन किसी कामयाबी की ओर बढेगा.

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प्रश्न – भारत की भूमिका को लेकर क्या कूटनीति हो सकती है ?

अशोक श्रीवास्तव – बिलकुल कूटनीति के तहत बलूचिस्तान के निर्वासित नेताओं को भारत में राजनीतिक आश्रय दिया जाना चाहिए. मुझे लगता है की सरकार वा सत्तारूढ़ बीजेपी में बहुत सारे लोगों का कहना है की इनको राजनीतिक शरण देनी चाहिए. लेकिन मुझे लगता है की सरकार में , विदेश मंत्रालय में जो ब्यूरो क्रेटिक सेटअप है वह पुरानी विचारधारा का है. प्रधानमंत्री जिस तरह से अग्रेसिव सोचते हैं, नया सोचते हैं, यह ब्यूरो क्रेटिक सेटअप उस तरह से तालमेल नहीं बैठा प रहा है . मुझे लगता है वहां थोड़ी सी दिक्कतें आ रही होंगी. भारत के पास तकनिकी रूप से देखें तो कोई कानून भी नहीं है जिसके तहत उन्हें राजनितिक शरण दे सकें. प्रधानमंत्री मोदी जिस तरह से साहसिक फैसले लेने के लिए जाने जाते हैं, इस मोर्चे पर भी कोई साहसिक फैसला ज़रूर लेंगे.

प्रश्न – क्या राजनितिक शरण को लेकर भी तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर दिक्कतें आ सकती हैं ?

अशोक श्रीवास्तव – ब्रह्मदाग बुगती की ही बात करें तो वो इतने सने से स्वित्ज़रलैंड में रह रहे हैं. उन्हें अब तक राजनितिक शरण नहीं मिल रही है. इसके लिए पकिस्तान का राजनीतिक ,कुटनीतिक दवाब तो है ही, लेकिन एक बड़ी समस्या यह भी है की स्विस बैंक में पकिस्तान के नेता व आर्मी के प्रमुख लोग हैं उनका अरबों – खरबों रुपया पड़ा हुआ है. स्वित्ज़रलैंड की इकोनोमी के महत्त्व के कारण भी बुगती को शरण नहीं मिल पा रही है.स्वित्ज़रलैंड कभी भी ब्रह्मदाग बुगती व उनके समर्थकों को वहां से जाने के लिए कह देगा तो बड़ी समस्या हो जाएगी. यह निर्वासित पाकिस्तान जाने पर मार दिए जायेंगे. इन लोगों को राजनितिक शरण देने पर भारत को गंभीरता से विचार करना चाहिए.

प्रश्न – ब्रह्मदाग बुगती के लिए गए इस साक्षात्कार से मीडिया में बहुत से पहलु सामने आये हैं, कोई ऐसा अनछुआ पहलू जिसे आप सांझा करना चाहेंगे ?

अशोक श्रीवास्तव – मुझे लगता है की पकिस्तान मीडिया हमेशा से फैलाते रहे हैं की बलूचिस्तान में भारत आग लगा रहा है ,बलूचिस्तान की अस्थिरता को भारत हवा दे रहा है. साक्षात्कार से पहले जब मैं पाकिस्तानी रिपोर्ट्स का अध्ययन किया तो पता चला की पकिस्तान मीडिया मीडिया फैला रही है ब्रह्मदाग बुगती को भारत ने पासपोर्ट ज़ारी किया. जब मैं बुगती से बात की तो उन्होंने पकिस्तान मीडिया को चुनोती दी की उनका पासपोर्ट स्वित्ज़रलैंड में जमा है. कोई भी आकर देख सकता है . तब ब्रह्मदाग बुगती ने पहली बार मीडिया के सामने सार्वजनिक किया की उनके पास अफगानिस्तान का पासपोर्ट है.यह एक बड़ी चीज़ थी जो उन्होंने बताई. ब्रह्मदाग बुगती ने बताया की जब पाकिस्तान ने उनके दादा अकबर बुगती को मार दिया थ तब वह लगभग 50 – 60 दिन तक पैदल चलते हुए अफगानिस्तान पहुंचे थे, उस समय हामिद करज़ई की सरकार थी. वहां पर भी ब्रह्मदाग बुगती पर चार – पांच बार हमले हुए. जिसके बाद हामिद करज़ई ने उन्हें वहां से सुरक्षित जाने के लिए कहा और पासपोर्ट ज़ारी किया . इस सारे साक्षात्कार से यह स्पष्ट हुआ की पकिस्तान द्वारा भारत को लेकर जो कुप्रचार किया जाता है वह कितना झूठा है. अभी तक भारत ने बलूचिस्तान को लेकर कुछ नहीं किया होगा किन्तु अब वक्त आ गया है की भारत को बलूच नेताओं की मदद करनी चाहिए, यही कूटनीति का भी तकाज़ा है .

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