नई दिल्ली. गत कई महीनों से देश में तीन तलाक का मुद्दा चर्चा और विवाद का कारण बना हुआ है. सुप्रीम कोर्ट में चल रहे तीन तलाक के मामले में आज सुप्रीम कोर्ट ने अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए तीन तलाक पर 6 माह की रोक लगा दी है. अब आगामी 6 माह तक मुस्लिक महीलों को तलाक-तलाक-तलाक कह कर छोड़ देना, कथिक मुस्लिम पुरुषों के लिए मुमकिन नहीं होगा. कोर्ट ने इसे असंवैधानिक करार दी दिया है. साथ ही कोर्ट ने सरकार को कानून बनाने के लिए कहा है.
आपको बता दें कि विभिन्न सामाजिक संगठनों ने भी तीन तलाक पर बैन लगाने की मांग की थी. इस मामले पर अदालत में 11 से 18 मई सुनवाई की गई थी. इसके बाद अदालत ने फैसले को सुरक्षित रख लिया था. सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा था कि ऐसे भी संगठन हैं, जो कहते हैं कि तीन तलाक वैध है, लेकिन मुस्लिम समुदाय में शादी तोड़ने के लिए यह सबसे खराब तरीका है. तीन तलाक पर रोक लगाने के लिए यूपी की प्रथम महिला काजी ने भी समर्थन किया था.
– देश की पहली महिला काजी हिना जहीर नकवी ने बताया कुप्रथा
मुस्लिम समाज में ‘तीन तलाक’ की प्रथा पर रोक लगाने से जुड़े भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन की मांग का उत्तर प्रदेश की प्रथम महिला काजी ने भी समर्थन किया था. हिना जहीर नकवी ने इस प्रथा को ‘कुरान की आयतों का गलत मतलब निकाला जाना’ करार दिया है. नकवी ने पीएम नरेंद्र मोदी की अगुआई वाली सरकार से भी इस मामले में दखल देने की मांग की थी. नकवी का कहना था कि मौखिक रूप से तलाक देने की प्रथा का समाज में गलत इस्तेमाल हुआ है. उन्होंने कहा कि इस प्रथा ने मुस्लिम महिलाओं की जिंदगी को खतरे में डाल दिया है. इससे सिर्फ तलाक को बढ़ावा मिल रहा है. नकवी ने कहा था कि मैं तीन तलाक की पूरी तरह से निंदा करती हूं. यहां तक कि कुरान में इस तरह का कोई निर्देश नहीं दिया गया, जिससे मौखिक तलाक को बढ़ावा दिया जाए. यह कुरान की आयतों को गलत मतलब निकाला जाना है.
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आपको बता दें कि मार्च, 2016 में उतराखंड की सायरा बानो नामक महिला ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करके तीन तलाक, हलाला निकाह और बहु-विवाह की व्यवस्था को असंवैधानिक घोषित किए जाने की मांग की थी. बानो ने मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लीकेशन कानून 1937 की धारा 2 की संवैधानिकता को चुनौती दी है.
कोर्ट में दाखिल याचिका में शायरा ने कहा है कि मुस्लिम महिलाओं के हाथ बंधे होते हैं और उन पर तलाक की तलवार लटकती रहती है. वहीं पति के पास निर्विवाद रूप से अधिकार होते हैं. यह भेदभाव और असमानता एकतरफा तीन बार तलाक के तौर पर सामने आती है.
– 50 हजार लोगों ने किए थे हस्ताक्षर
गौरतलब है कि करीब 50 हजार मुस्लिम महिलाओं व पुरुषों ने तीन तलाक की प्रथा पर बैन से जुड़ी याचिका पर दस्तखत किए हैं. इस याचिका की शुरुआत भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन ने किया था. उसने मांग की थी कि राष्ट्रीय महिला आयोग इस मामले में दखल दे.