मुंबई (तेज समाचार डेस्क). संजय दत्त की विवादित और उलझनों से भरी जिन्दगी पर आधारित फिल्म संजय दत्त की बायोपिक ‘संजू’ ने पहले ही दिन दर्शकों की वाहवाही लूट ली. फिल्म में संजय दत्त का रोल निभा रहे रणबीर कपूर की एक्टिंग की सभी जमकर तारीफ कर रहे हैं. ये कहानी शुरू होती है संजू की ड्रग्स से दोस्ती से. एक अनजान आदमी जिसे फिल्म में एक मिस्त्री बताया गया है संजू की फिल्म ‘रॉकी’ के सेट पर उन्हें ड्रग्स देता है. ड्रग्स पहले संजय दत्त को उनकी प्रेमिका से दूर करता है, फिर मां से और फ़िर खुद अपनी ही ज़िन्दगी से.
सारी बातों के बीच संजू को अमरीका में कमलेश नाम का एक दोस्त मिलता है. एक सख्त पिता दोस्त बन जाते हैं. ज़िन्दगी पटरी पर लौटने लगती है लेकिन फिर कुछ ऐसा होता है कि दोस्त पिता सब दूर हो जाते हैं. मगर रुकिए ये तो बस आधी कहानी है, पिक्चर तो अभी बाकी है मेरे दोस्त और बाकी की पिक्चर के लिए आप बिल्कुल पैसे खर्च कर सकते हैं और संजू देखना तो बनता है.
‘संजू’ की अगर हम बात करें तो जितना ट्रेलर में है उतनी ही फ़िल्म भी है. लेकिन चूंकि ये संजय दत्त की ज़िंदगी है, तो लेखक डायरेक्टर राजकुमार हिरानी और अभिजात जोशी की जोड़ी ने अपने सिग्नेचर स्टायल से हटकर भी कुछ ट्राई किया है और इसमें डबल मीनिंग लाइंस तक को फ़िल्म का हिस्सा बनाया है. लेकिन संजू की कहानी और इसके ट्रीटमेंट की मुश्किल ये है कि ये घटनाओं की शक्लसी ज़्यादा और एक बायोपिकसी कम नज़र आती है. आप फ़िल्म देखने के बाद एक अधूरापन सा महसूस करेंगे.
पिता-बेटे के रिश्ते में इमोशनल मूवमेंट कई जगह बेअसर हैं जबकि इसके उलट संजू और उनके अमरीका में रहने वाले दोस्त कमलेश के बीच के सीन काफी मज़बूत और इमोशनल कर देने वाले हैं. हिरानी की पिछली फिल्मों में सपोर्टिंग कास्ट काफी अहमियत लिए हमने देखें हैं लेकिन यहां दिया मिर्ज़ा, मनीषा कोइराला, अनुष्का शर्मा के करिदार में बहुत कुछ नहीं था करने के लिए.
अब बात करते हैं फिल्म के सबसे अहम हिस्से यानी की एक्टिंग की. ये कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा की फ़िल्म की जान रणबीर कपूर हैं. आप को ये एक्टर पूरी फिल्म में ये एहसास होने नहीं देगा कि आप संजय दत्त को स्क्रीन पर नहीं देख रहे हैं. कह सकते हैं की ये उनके करियर की सबसे दमदार भूमिका है. उन्होंने संजय दत्त को सही मायनों में जिया है. हर एक सीन में उन्होंने जान डाल दी है. उसके बाद अगर कोई ऐक्टर कमाल करता है तो वो हैं विकि कौशल, एक गुजराती एनआरआई दोस्त के किरदार में विकी का होमवर्क ज़बरदस्त रहा. वो रणबीर हो या परेश रावल दोनों ऐक्टर के साथ बेहतरीन सीन देते हैं. परेश रावल ने दत्त साहब की भूमिका में संजीदगी पेश की है, तो बाकी के एक्टर्स ठीक-ठाक हैं.
बात म्यूज़िक की करें तो फ़िल्म का म्यूजिक फ़िल्म के सिचुएशन के हिसाब से है. गाने सभी अच्छे हैं, लेकिन बैकग्राउंड म्यूज़िक कमज़ोर है. डायरेक्शन और तकनीकी पहलू के लिहाज़ से ये राजकुमार हिरानी की थोड़ी कमज़ोर फ़िल्म है. वो भावनाओं के साथ जो करते आये हैं वो यहां गायब सा लगा. लेकिन उन्होंने अपने स्टाइल को तोड़ा है वो काबिलेतारीफ है. कैमरावर्क आर्ट डायरेक्शन हर दौर के हिसाब से हैं, खासतौर पर फ़िल्म के कॉस्ट्यूम्स, कारें और माहौल सब फ़िल्म को फील देते हैं. आखिर में बस यही कहेंगे कि ये संजय दत्त की जुबानी उनकी कहानी है जो फ़िल्म ने कुछ कमियों के साथ बख़ूबी कह दी है.