नई दिल्ली ( तेज़ समाचार प्रतिनिधि ) – राइट टू प्राइवेसी यानी निजता का अधिकार को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को बड़ा फैसला सुनाया है । कोर्ट ने निजता को मौलिक अधिकार माना है । नौ जजों की बेंच ने सर्वसम्मति से ये फैसला लिया है ।नौ जजों की संवैधानिक पीठ ने इस मसले पर 6 दिनों तक मैराथन सुनवाई की थी । जिसके बाद 2 अगस्त को पीठ ने अपना फैसला सुरक्षित कर लिया था. पीठ की अध्यक्षता चीफ जस्टिस जेएस खेहर कर रहे हैं।
इस मामले में याचिकाकर्ता और मशहूर वकील प्रशांत भूषण ने कोर्ट से बाहर आकर बताया कि कोर्ट ने निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार माना है और कहा है कि ये अनुच्छेद 21 के तहत आता है । आधार कार्ड वैध है या अवैध है, इस पर अभी कोर्ट ने कुछ नहीं बोला है । आधार कार्ड के संबंध में मामला छोटी खंडपीठ के पास जाएगा । प्रशांत भूषण ने बताया कि इस फैसले का मतलब ये है कि अगर रेलवे, एयरलाइन जैसे रिजर्वेशन के लिए जानकारी मांगी जाती है, तो ऐसी स्थिति में नागरिक अपने अधिकार के तहत उससे इनकार कर सकेगा ।
यह फैसला सरकार के लिए तगड़ा झटका है। केंद्र सरकार ने कोर्ट में कहा था कि निजता मौलिक अधिकार नहीं है। अब इस फैसले का सीधा असर आधार कार्ड और दूसरी सरकारी योजनाओं के अमल पर होगा। लोगों की निजता से जुड़े डेटा पर कानून बनाते वक्त तर्कपूर्ण रोक के मुद्दे पर विचार करना होगा। सरकारी नीतियों पर अब नए सिरे से समीक्षा करनी होगी। यानी आपके निजी डेटा को लिया तो जा सकता है, लेकिन इसे सार्वजनिक नहीं किया जा सकता। हाालंकि, इस फैसले से आधार की किस्मत नहीं तय होगी। आधार पर अलग से सुनवाई होगी। बेंच को सिर्फ संविधान के तहत राइट टु प्रिवेसी की प्रकृति और दर्जा तय करना था। 5 जजों की बेंच अब आधार मामले में ये देखेगी कि लोगों से लिया गया डेटा प्रिवेसी के दायरे में है या नहीं। अब सरकार के हर कानून को टेस्ट किया जाएगा कि वो तर्कपूर्ण रोक के दायरे में है या नहीं। कुछ जानकारों का मानना है कि इस अधिकार के तहत सरकारी योजनाओं को अब चुनौती दी जा सकती है।
केंद्र सरकार के मसले पर भूषण ने बताया कि निश्चित तौर पर कोर्ट का ये फैसला केंद्र सरकार को बड़ा झटका है । क्योंकि केंद्र सरकार निजता को मौलिक अधिकार मानने के विरोध में थी । इस फैसले के बाद अब एक अलग बेंच गठित की जाएगी. ये बेंच आधार कार्ड और सोशल मीडिया में दर्ज निजी जानकारियों के डेटा बैंक के बारे में फैसला लेगी ।
सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने इस मसले पर सुनवाई के दौरान अपना पक्ष रखा था. केंद्र का पक्ष रखते हुए एडिशनल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी थी कि आज का दौर डिजिटल है, जिसमें राइट टू प्राइवेसी जैसा कुछ नहीं बचा है । तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट को ये बताया था कि आम लोगों के डेटा प्रोटेक्शन के लिए कानून बनाने के लिए केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज बीएन श्रीकृष्णा की अध्यक्षता में दस लोगों की कमेटी का गठन कर दिया है. उन्होंने कोर्ट को बताया है कि कमिटी में UIDAI के सीइओ को भी रखा गया है।