हमारे देश में जिस प्रकार से राजनीति में अपराध व्याप्त होता जा रहा है, उसके कारण सज्जन व्यक्तियों के लिए राजनीति में कोई जगह नहीं है. ऐसे में सवाल यह आता है कि जब राजनीति से सज्जनता समाप्त हो जाएगी, तब देश में कैसी राजनीति की जाएगी. इसका विश्लेषण किया जाए तो राजनीति का घातक स्वरुप का ही आभास होता है. देश में कई बार अपराधियों के राजनीति में प्रवेश प्रतिबंधित करने की मांग की गई, लेकिन जब राजनेता ही अपराध में लिप्त हों तो उनसे यह कैसे उम्मीद की जा सकती है कि वह राजनीति के शुद्धीकरण का समर्थन करेंगे. आज देश में कई राजनेता ऐसे हैं जिन पर कई प्रकार के आपराधिक आरोप लगे हैं, इतना ही नहीं कई नेताओं पर आरोप सिद्ध भी हो चुके हैं. इसके बाद भी वे सक्रिय राजनीति में भाग ले रहे हैं और चुनाव भी लड़ रहे हैं. बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव इसका प्रमाण हैं. उन पर आरोप ही सिद्ध नहीं हुआ, बल्कि उन्हें सजा भी मिल चुकी है. हालांकि सजा के बाद वे चुनाव नहीं लड़े, लेकिन चुनाव में प्रमुख भूमिका का निर्वाह किया.
– चुनाव आयोग भी हुआ सक्रिय
राजनीति में बढ़ रहे अपराधीकरण को लेकर अब चुनाव आयोग भी सक्रिय होता दिखाई दे रहा है. वास्तव में वर्तमान राजनीतिक स्वरुप को देखते हुए यह आसानी से कहा जा सकता है कि देश में बढ़ रहे सभी प्रकार के अपराधों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रुप से समर्थन मिलता रहा है. इसी कारण से अपराधी प्रवृति के व्यक्ति भी आज राजनीति का आसरा लेते हुए दिखाई दे रहे हैं. इससे राजनीति का स्वरुप भी बिगड़ता जा रहा है. चुनाव आयोग ने सर्वोच्च न्यायालय में भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर की गई एक याचिका के सुनवाई के दौरान स्पष्ट रुप से कहा कि दागी नेताओं के चुनाव लड़ने पर पूरी तरह से रोक लगाई जाए. चुनाव आयोग की यह मंशा निश्चित रुप से वर्तमान राजनीति को सुधारने का एक अप्रत्याशित कदम है. वर्तमान में देखा जा रहा है कि देश के कई सांसद और विधायकों पर आपराधिक प्रकरण दर्ज हैं, इतना ही नहीं कई नेताओं को दोषी भी ठहराया जा चुका है, लेकिन इसके बाद भी वे चुनाव में तो भाग लेते ही हैं, खुलेआम चुनाव प्रचार भी करते हैं. ऐसे में स्वाभाविक तौर पर यह सवाल आता है कि आपराधिक छवि रखने वाले नेता किस प्रकार की राजनीति करते होंगे. यह भी स्वाभाविक है कि जो जैसा होता है, वह वैसे ही लोगों को पसंद करता है, इसलिए यह कहा जा सकता है कि आपराधिक छवि वाले राजनेता निसंदेह राजनीति में अपराध को ही बढ़ावा देने वाले ही सिद्ध होंगे. अगर देश में राजनीति को अपराध मुक्त करना है तो सबसे पहले यही जरुरी है कि राजनीति से अपराध के संबंधों को समाप्त किया जाए.
– राजनेताओं के लिए विशेष अदालतें आयोजित की जाए
चुनाव आयोग द्वारा सर्वोच्च न्यायालय से की गई मांग आज समय की आवश्यकता है. सर्वोच्च न्यायालय ने केन्द्र सरकार से यह भी कहा है कि राजनेताओं के प्रकरणों के निपटारे के लिए विशेष न्यायालयों के गठन की कार्यवाही की जानी चाहिए. ये विशेष अदालतें केवल नेताओं के प्रकरणों की सुनवाई करें और उनका जल्दी निपटारा करें. न्यायालय ने विशेष अदालतें गठित करने पर छह सप्ताह में सरकार को योजना पेश करने को कहा है. इसके साथ ही न्यायालय ने चुनाव लड़ते समय नामांकन में आपराधिक मुकदमों का ब्यौरा देने वाले 1581 विधायकों और सांसदों के मुकदमों का ब्योरा और स्थिति पूछी है. इसके अंतर्गत उन राजनेताओं से उनके प्रकरणों की वर्तमान स्थिति मांगी गई है. ऐसे सभी नेताओं पर चुनाव आयोग ने रोक लगाने की मांग की है. ऐसा होने पर अपराधी प्रवृति के राजनेता कभी चुनाव नहीं लड़ पाएंगे. उन्हें आजीवन चुनाव लड़ने से वंचित किया जाएगा. अभी तक नियम यह था कि सजा पूरी होने के बाद जेल से छूटने पर केवल छह साल के लिए चुनाव लड़ने पर ही प्रतिबंध रहता था. चुनाव आयोग की पूरी हो जाने पर ऐसे नेताओं पर आजीवन प्रतिबंध लग जाएगा.
– दागी नेताओं पर लगनी चाहिए चुनाव लड़ने पर रोक
दागी नेताओं को चुनाव लड़ने से रोकने के लिए और राजनीति को अपराध मुक्त करने के लिए यह बहुत आवश्यक है कि आपराधिक प्रवृति के नेताओं को चुनाव लड़ने से रोका जाए. इतना ही नहीं ऐसे नेताओं को चुनाव प्रचार करने से भी रोकना बहुत जरूरी है. चुनाव आयोग की तरह ही सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी भी यही प्रमाणित कर रही है कि वह भी अपराध से राजनीति को मुक्त करने की मंशा रखता है. ऐसा ही भाव प्रदर्शित करने वाला बयान केन्द्र सरकार की ओर से दिया गया है. यानी सभी राजनीति को शुद्ध करना चाहते हैं, लेकिन वे कभी नहीं चाहेंगे जो राजनीति को माध्यम बनाकर अपराध को बढ़ावा देते हैं.
– 6 सप्ताह में योजना पेश करने के निर्देश
सुनवाई के दौरान जब केन्द्र सरकार की ओर से पेश एडीशनल सालिसीटर जनरल एएनएस नदकरणी ने कहा कि सरकार राजनीति से अपराधीकरण दूर करने का समर्थन करती है. सरकार नेताओं के मामलों की सुनवाई और उनके जल्दी निपटारे के लिए विशेष अदालतों के गठन का विरोध नहीं करती. हालांकि जब कोर्ट ने विशेष अदालतों के गठन के लिए ढांचागत संसाधन और खर्च की बात पूछी तो नदकरणी का कहना था कि विशेष अदालतें गठित करना राज्य के कार्यक्षेत्र में आता है. इस दलील पर नंदकरणी को टोकते हुए पीठ ने कहा कि आप एक तरफ विशेष अदालतों के गठन और मामले के जल्दी निस्तारण का समर्थन कर रहे हैं और दूसरी तरफ विशेष अदालतें गठित करना राज्यों की जिम्मेदारी बता कर मामले से हाथ झाड़ रहे हैं. ऐसा नहीं हो सकता. पीठ ने सीधा सवाल किया कि केन्द्र सरकार केन्द्रीय योजना के तहत नेताओं के मुकदमों के शीघ्र निपटारे के लिए विशेष अदालतों का गठन क्यों नहीं करती. जैसे फास्ट ट्रैक कोर्ट गठित किये गए थे उसी तर्ज पर सिर्फ नेताओं के मुकदमे सुनने के लिए विशेष अदालतें गठित होनी चाहिए. केन्द्र के विशेष अदालतें गठित करने से सारी समस्या हल हो जाएगी. कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया कि वह विशेष अदालतें गठित करने के बारे में छह सप्ताह में कोर्ट के समक्ष योजना पेश करे. पीठ ने कहा कि योजना पेश होने के बाद विशेष अदालतों के गठन के लिए ढांचागत संसाधन जजों, लोक अभियोजकों व कोर्ट स्टाफ आदि की नियुक्ति जैसे मसलों पर अगर जरूरत पड़ी तो संबंधित राज्यों के प्रतिनिधियों से पूछा जाएगा. इस मामले में 13 दिसंबर को फिर सुनवाई होगी.
(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं)