बीते दिनों कुछ बुद्धिजीवी मित्रों के साथ बैठकी के दौरान अचानक जब सोशल मीडिया का जिक्र चला तो एक मित्र ने सवाल उठाया कि जो मीडियाकर्मी सोशल मीडिया पर सक्रिय नहीं हैं उन्हें अन-सोशल या हिंदी में असामाजिक कहा जा सकता है क्या? सवाल दिलचस्प था, पर बैठकी ऐसी थी कि सवाल हंसी-ठठे में उड़ गयाl लेकिन आज ‘वर्ल्ड सोशल मीडिया डे’ पर यह सवाल फिर मेरे सामने है। जवाब तलाशने के झंझट में नहीं पड़ना चाहताl लेकिन मैं दिल-ओ-दिमाग से यह मानता हूं कि सोशल मीडिया एक बहुत अहम प्लेटफार्म है जिसने मीडिया का डेमोक्रेटाईज़ेशन कर दिया है और पत्रकारों के चेहरों से नकाब भी उतार दिए हैंl
याद कीजिए वो दौर जब सिर्फ मीडिया था, सोशल मीडिया नहीं। तब मीडिया वन वे ट्रैफिक की तरह था। संपादक ने जो संपादकीय लिख दिया वो अंतिम सत्य, टेलिविज़न के महारथी एंकरों ने कैमरे के सामने बैठ कर जो ज्ञान दे दिया वो माह-ज्ञान। लेकिन अब टू वे ट्रैफिक है।
सोशल मीडिया ने आम लोगों को ताकत दे दी है, बड़े-बड़े संपादकों की संपादकीय टिप्पणियों पर आम लोगों को टिप्पणी करने का अधिकार भी है और ताकत भी। एक एंकर अपने शो का राजा हो सकता है, लेकिन सावधान, शो में आपने कोई गलत तथ्य दिया, कोई चालाकी दिखाई तो सोशल मीडिया पर ‘रियल टाइमटॉ’ में पब्लिक आपको कटघरे में खड़ा कर देगी। स्टार एंकर्स को सोशल मीडिया पर फैन भी मिलते हैं, आलोचक भी। हालांकि कई स्टार एंकर्स के दिमाग इतने चढ़ जाते जाते हैं कि वो आलोचकों को तुरंत ब्लॉक कर देते हैं। वो कबीर दास का दोहा भूल चुके हैं- निंदक नियरे राखिए…(मुझे खुद भी दो बड़े पत्रकार ने ब्लॉक दिया है, जिनका मैं कभी खुद फैन हुआ करता था।)
सोशल मीडिया ने समाज पर एक और बड़ा उपकार किया है उसने मुखौटा लगाए पत्रकारों-एंकरों को बेनकाब कर दिया है। अपनी लेखनी और टीवी प्रोग्रामों में हम पत्रकार ‘निष्पक्ष’ और ‘विचारधारा विहीन’ होना का दिखावा करते हैं। लेकिन सोशल मीडिया पर आपको साफ पता चल जाएगा कि कौन कहां खड़ा है। मैं किसी पत्रकार के किसी वैचारिक झुकाव को गलत नहीं मानता लेकिन गलत तब होता है जब आप अपने वैचारिक आग्रहों को सही साबित करने के लिए वैचारिक या तथ्यात्मक बेईमानी करते हैं। और सोशल मीडिया की यही खूबसूरती है कि यहां आपकी चोरी पकड़ी जाती है। सोशल मीडिया पर ऐसे हज़ारों सिपाही तैनात हैं जो कलम (और माइक) के सिपाहियों के पुराने बयान- ट्वीट निकाल कर बेईमानों को बेनकाब कर देते हैं।
मैं स्वयं ट्विटर पर सक्रिय हूं। पब्लिक ब्रॉडकास्टर से जुड़े होने के कारण अपने चैनल पर मेरी सीमाएं हैं। अक्सर जो मुद्दे वहां नहीं उठा पाता, जो वहां नहीं कह पाता सोशल मीडिया पर दिल खोल कर उठा लेता हूं, कह लेता हूं। सूकून मिलता है। मैं जो हूं, जैसा हूं टीवी के पर्दे से ज़्यादा सोशल मीडिया पर दिखाई देता हूं। …तो देखते रहिए @ashokshrivasta6