जिला प्रशासन गहरी निंद मे, अनियंत्रीत हूए शाला संचालक
अकोला(अवेस सिद्दीकी):दाखले की तारीख करीब आते ही शालाओ द्वारा पालको के जेब खाली करने का काम जारी हो जाता है। अपने बच्चो को अच्छी शाला मे पढ़ाने की झुटी आन बान शान मे पालक पिसे जा रहे है। एवं संचालक अपनी जेबे भरने सक्रीय है शहर मे मानो शिक्षा का बाजारी करण हो गया है। जाबजा दूकाने खूली है अच्छी सुविधा के नाम पर आपसे मोटी रकम निकालने, जिला परिषद एवं नगर निगम के शालाओ मे मूलभूत सूविधा का अभाव पालको ने कान्व्हेंट संस्कृती की ओर रूख बढाने लगा है। जिसकी वजह से शाला प्रवेश हेतू डोनेशन के रेट भी बढने लगे है। प्रति साल डोनेशन मे बढ़ोतरी हो रही है। शहर के कुछ मशहूर शालाओ मे ४० से ६० हजार एवं कही-कही तो एक लाख रूपये तक डोनेशन लेने का गोरखधंदा जारी है। एैसे मे गरीब पालक अपने बच्चे को अच्छी शाला मे कैसे पढ़ाए? विद्या के नाम पर मोटी रकम मिलने की वजह से शहर के साथ-साथ ग्रामीण भाग मे भी नर्सरी, कॉन्व्हेंट का बोला बाला ऩजर आ रहा है। पालको की मानसीकता समझकर शिक्षा संस्था सचालको द्वारा डोनेशन अन्य शिक्षा शूल्क के नाम पर पालको की जेबे खाली की जा रही है। शिक्षा शुल्क पर नियंत्रण हो इस लिए विगत साल शासन ने शुल्क नियंत्रण कायदा निर्माण किया था। जिसके अनुसार निजी नर्सरी से कनिष्ठ महाविद्यालयो के शुल्क निर्धारण का अधिकार संस्था संचालक को न देते हुए पालक एवं शिक्षक संघ को दिया गया। शिक्षा शुल्क बढ़ोतरी का प्रस्ताव संस्था चालको को पालक एंव शिक्षा संघ से सामने रख ना होता है तथा उनकी संमती से शिक्षा शुल्क बढ़ाया जाता है। विंâतू इसके विपरीत सभी अंग्रेजी सेमी अंग्रेजी शालाओ मे पालक एवं शिक्षक संघ कागज मे ही दबे रह गऐ है। संस्था संचालक हर साल १० से १५ प्रतिशत शिक्षा शुल्क मे बढ़ोतरी कर रहे है। साथ ही शाला प्रवेश स्पर्धा निर्माण होने के वजह से डोनेशनकी रकम मे भी काफी बढ़ोतरी हुई है। शहर मे कई शालाओ मे तो प्रवेश शुल्क के साथ शिक्षा शुल्क भी पालको पर लाद दिए है। इस मनमानी शुल्क वसूली मे गरीब कहा जाए अमीर तो शुल्क भर लेते है इसी के चलते शहर मे हजारो बच्चे हर वर्ष शिक्षा के अधिकार से वंचीत रह जाते है।
शुल्क नियंत्रण कायदा साबीत हो रहा नाकाम
शुल्क नियंत्रण कायदा अमल मे आने के बावजूद पालको की लूट रूक नही रही। शुल्क नियंत्रण कायदा भंग करने वाले सरेआम सर उठाते नजर आ रहे है। शिक्षा विभाग आखे बंद किए हुए है। शहर मे नामांकित शालाओ द्वारा हर साला १० से १५ प्रतिशत तक शिक्षा शुल्क वसूला जा रहा पालको से लाखो रूपये अवैध रूप से वसूलने का गोरख धंदा जोरो से जारी है। एवं जि.प शिक्षा विभाग मुक दर्शक बना हुआ है एैसे मे शिक्षा विभाग की खामोशी संदेह जनक है। कही एैसा तो नही शिक्षा अधिकारी की मिली भगत से शिक्षा शुल्क लगातार बढ़ाया जा रहा है। क्यो शिक्षा आधी कारवाई करने से परेज कर रहे है? आखीर शिक्षा विभाग मुक दर्शक क्यो? क्या शिक्षा विभाग को संचालकों द्वारा कोई नजराना दिया जा रहा है। जिसकी वजह शिक्षा विभाग खामोश है। संस्थाओ द्वारा अधिकारीयो को कारवाई न करने के एवेज मे मोटी रकम पहुचाए जाने की चर्चाए शिक्षा विभाग मे ही जारी है।