शिरपूर (तेज़ समाचार प्रतिनिधि ): आदिवासी किसानों के लिये रहनेवाली सरकारी कृषी योजनाओं का लाभ आदिवासी किसानों को न मिलके, शहर के चुनिंदा ठिबक दुकानदारोंने ऊठाने का मामला शिरपूर मे सामने आया है। तहसिलके अनपढ आदिवासी किसानों को करोडों रूपयोंमे फसाया गया। अज्ञानता का फायदा ऊठाकर ठिबक कर्जके नामपर किसानों के हाथों मामुली रकम थमाके, खेतीपर लाखोंका बोझ चढाने की शिकायत शिरपूर पुलीस थाना,सांगवीमे कि गई है।
प्राप्त जानकारी नुसार तहसिल के सुलेे गाँवकी लक्ष्मीबाई मनश्या भील (उम्र 70) की खंबाला परिसरमे ईनामी खेती है। उन्हें 2014 मे शहर के एक दुकानदारने ठिबक के नामपर 3 लाख 89 हजार का कर्ज निकाल दिया। बीच हालही मे लक्षीबाईने खेत का सातबारा निकाला तो खेतीपर देना बैंक का पीककर्ज 7 लाख, ठिबक कर्ज 5 लाख, और बैंक ऑफ महाराष्ट्रका पीककर्ज 4 लाख 12 हजार एवंम ठिबक कर्ज 3 लाख 95 हजार इन दो बैंकोके कूल मिलाके 20 लाख 7 हजार का बोझ दिखाया गया। जिसके संदर्भ मे लक्ष्मीबाईने दुकानदार के खिलाफ सांगवी पुलिस थानेमे लिखित शिकायत शिकायत दर्ज कराई है। जिसकी जाँच सहायक पुलीस निरीक्षक किरणकुमार खेडकर कर रहे है।
लक्ष्मीबाई भीलने दुकानदारसे पुछताछ करनेपर दुकानदारने ठिबक कर्ज के 3 लाख 95 हजार रूपये का हिसाब दिया। जिसमे ठिबक माल, सबसिडी की फाईल पास करवाना, कर्ज दिलवाने का खर्च एवंम कमिशन, व्हॅट, बिजली का बील, मृत्यु नोंद, वकील फी, गाडी किराया आदी खर्च बताया। लेकिन वास्तवमे 1लाख 6 हजार मिलने का दावा लक्ष्मीबाईने किया।
आदिवासी क्षेत्र मे केवल यह एक मामला नहीं बल्की करोडों रूपयों के घोटाले की जानकारी सामने आ रही है। विशेष बात ये है कि, यहाँ सबसे जादा लूट आदिवासी किसानों की हुई है। गौरतलब बात ये है की, कई किसानों के पास थोडीसी और सुखे की खेती है फिर भी ऊन्हे कर्ज दिया गया। और जो ठिबक माल दिया गया वह भी नॉन आयएसआय होनेकी शिकायत है।
बडी संख्या मे लुटे गये किसान
तहसिल के आदिवासी क्षेत्र के लगभग 400 से 500 किसानों को फँसाया गया है। और यह गबन – घोटाला 35- 40 करोड मे होने का अंदाजा जताया जा रहा है। आदिवासी अनपढ किसान का सातबारा लानेवाले को दस हजार रुपए का इनाम दिया जानेकी जानकारी है। इससे घोटाले का अंदाजा लगाया जा सकता है। किसानभी शुरूआती दौरमे पैसों की आसमे सातबारा दे रहे थे। किसान को आरंभ मे मामुली रकम दी गई। लेकिन जब सातबारा निकाले तो लाखों का बोझ होने की जानकारी किसानों को मिली। जिससे आदिवासी किसान तिलमिला ऊठे और ऊन्हे फँसाया जानेका एहसास हुआ।
तहसिल के अधिकतर आदिवासी किसान अनपढ है। ऊन्हे सरकारी योजनाओं की जानकारी तक नही रहती है। लेकिन किसानों के नामपर कालाबाजार करनेवालोंकी संख्या मे दिनबदिन बढोत्तरी होती गई। जिनके नामपर खेती है ऊन्हे पैसोंका लालच दिखाया जाता था। लेकिन बादमे किसानों को अँधेरेमे रखकर सातबारा निकालकर बैंकमे जमा करके ठिबक कर्ज निकाला जाने लगा। जिसकी अब सिधी शिकायत पुलीस थानेमे होनेसे घोटालेबाजों की पाँवो तले की जमीन सरक गई है।
किसानों को नही था पता
कर्ज के बोझतले दबे किसानों को बैंक पता ही नहीं। सभी कागजातोंकी पूर्तता, अंगुठा दुकानमेही लिया जाता था। अनपढ किसानों के लिये मानो ठिबक का दुकान हि बैंक था। लेकिन वास्तवमे योजना का लाभ किसानों न मिलते हुए, ‘नाचे कुदे बंदर, खिर खाये फकीर’ ऐसी अवस्था तहसिल के आदिवासी किसानों की है।